बाबूलाल की इस तरह की गोलमोल बातें सुन कर गांव वाले अलगअलग अर्थ निकाल रहे थे. कुछ लोग मान रहे थे कि बाबूलाल ने स्वीकार कर लिया है कि उस के पास पारस मणि है और कुछ लोगों को साफसाफ महसूस हुआ कि ऐसा कुछ भी नहीं है, मगर गांव में बाबूलाल की अब तो बल्लेबल्ले अपने उफान पर थी.बाबूलाल यादव बड़े ठाटबाट से रहा करता था. वह एक तांत्रिक था. पूजा और तंत्रमंत्र से वह अच्छे पैसे कमा लेता था.
आज भी गांवदेहात में मजदूरी कोई बहुत ज्यादा नहीं है. लोग शहर की ओर पलायन कर जाते हैं या फिर गांव के धनी किसानों के यहां काम कर के जीवनयापन करते हैं. मगर बाबूलाल तांत्रिक होने के कारण बड़े मजे से अपनी जिंदगी गुजार रहा था.अच्छा पहनता, अच्छा खातापीता. लोग उसे बिना जमीनजायदाद के भी बड़ा आदमी मानते थे. उस की साख दिनोंदिन आसपास के गांव में भी फैलती चली जा रही थी.
छत्तीसगढ़ का जांजगीर-चांपा जिला धनधान्य से परिपूर्ण होने के कारण धान का सच्चे अर्थों में कटोरा कहा जा सकता है.जिले के जांजगीर थानांतर्गत गांव मुनुंद है, जहां लगभग ढाई हजार लोगों की बस्ती है और ज्यादातर लोग खेतीकिसानी कर के अपना जीवन बसर करते हैं. यहीं बाबूलाल यादव तंत्रमंत्र और झाड़फूंक करते हुए धीरेधीरे आसपास के गांवों में प्रसिद्ध हो गया था.
आसपास के गांवों ही नहीं, बल्कि उस के पास आसपास के जिलों कोरबा, बिलासपुर से भी लोग आने लगे थे. वह किसी बीमारी भूतप्रेत आदि बाधाओं को दूर करने का दावा करता था. उस का प्रभाव बढ़ता ही चला जा रहा था.उस के पास कोई पारस मणि है, यह चर्चा भी आसपास के गांवों से होती हुई दूर तक प्रसारित हो चुकी थी.जिला चांपा जांजगीर के बाराद्वार निवासी टेकचंद जायसवाल, जो एक किसान परिवार से है, ने भी एक दिन जब यह सुना कि तांत्रिक बाबूलाल के पास पारस मणि है तो उस के मन में उत्सुकता पैदा हुई कि क्यों न इसी तरीके से पारस मणि को हथिया लिया जाए.
वह साहसी व्यक्ति के रूप में गांव में जाना जाता था. शरीर में ताकत थी और वह गांव में अच्छे रुतबे वाला था. टेकचंद ने जब यह बात सुनी तो उस ने अपने दोस्तों से पता लगाया कि आखिर माजरा क्या है.एक दिन उस ने गांव बिरगहनी के रहने वाले अपने एक दोस्त राजेश हरबंस से मोबाइल पर इस संबंध में बात की. फिर दोनों ने प्लान बनाया कि बाबूलाल यादव के गांव चलें और उस से मिल कर समझा जाए कि आखिर सचमुच उस के पास पारस मणि है या कोई अफवाह है. अगर उस के पास पारस मणि है तो उसे हथियाने की योजना बनाई जाए.
टेकचंद जायसवाल और राजेश हरबंस दोनों हमउम्र थे. टेकचंद अपनी बाइक से बाराद्वार से बिरगहनी आ पहुंचा. उस के बाद दोनों बाइक से बाबूलाल यादव से मिलने मुनुंद गांव की ओर बढ़ चले.
रास्ते में दोनों बातें कर रहे थे. टेकचंद ने बाइक चलाते हुए राजेश से पूछा, ‘‘राजेश भाई, क्या महसूस कर रहे हो तुम? क्या सच में पारस मणि होती है?’’‘‘हां, यह सच है कि पारस मणि होती है. मैं ने गूगल पर सर्च किया और पाया कि ऐसी पारस मणि का जिक्र हमारे ग्रंथों में भी है. मगर यह भी सच है कि उसे पाना आसान नहीं है, यह तो बड़े भाग्य से मिलती है. लाखोंकरोड़ों लोगों में से किसी एक के पास होती है.’’ राजेश ने कहा.
बाइक चलाते हुए टेकचंद ने कहा, ‘‘भाई, मेरी बात को तुम ने माना स्वीकार किया है. मुझे भी लगता है कि पारस मणि होती तो है. अब हमें यह पता करना है कि क्या बाबूलाल यादव तांत्रिक के पास पारस मणि है भी? और अगर है तो उसे कैसे प्राप्त किया जाए?’’ टेकचंद बोला.‘‘देखो भाई, कोई भी आदमी जिस के पास पारस मणि होगी, वह यह नहीं बताएगा कि मेरे पास है. अगर तुम्हारे पास होगी तो क्या भला किसी को बताओगे?’’ राजेश ने तर्क दिया.
‘‘हां, तुम्हारी बात भी बिलकुलसही है. अब कैसे पता करें भला?’’ टेकचंद बोला
‘‘इस का सीधा सा रास्ता यह है कि हम लोग गांव वालों से पता करेंगे. गांव वाले सच बताएंगे. गांव में कोई भी सच्चाई छिप नहीं सकती. और हो सकेगा तो बाबूलाल यादव से भी मिल कर के देखेंगे कि आखिर सच क्या है, वह कैसा आदमी है. बातचीत से भी बहुत कुछ समझ में आ जाएगा.’’
उस दिन टेकचंद और राजेश हरबंस बाबूलाल यादव के गांव मुनुंद पहुंचे और कुछ लोगों से बातचीत की. लोगों ने उन्हें दबी जुबान में बताया कि बाबूलाल के पास सचमुच पारस मणि है, मगर वह स्वीकार नहीं करता.
इस के बाद दोनों बाबूलाल से भी मिले. उस के हावभाव और बातचीत से दोनों ही बड़े प्रभावित हुए और जब घर लौटे तो दोनों इस बात को पूरी तरीके से मान चुके थे कि बाबूलाल के पास कुछ तो ऐसा है जिस से वह मालामाल हुआ है.टेकचंद और राजेश हरबंस ने धीरेधीरे महमदपुर निवासी रामनाथ श्रीवास, बलौदा की शांतिबाई यादव, कोरबा निवासी यासीन खान और अन्य कई लोगों से बातचीत कर के एक योजना पर अमल करने की कोशिश शुरू कर दी.
उन सभी ने यह प्लान बनाया कि अलगअलग तरीके से हम बाबूलाल यादव से उस के घर पर जा कर मिलेंगे. चूंकि वह तांत्रिक है, इसलिए अपना इलाज कराने का बहाना भी बना सकते हैं. बातचीत करते हुए हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि उस ने वह पारस मणि कहां छिपा रखी है या फिर ऐसी स्थिति पैदा हो जाए कि पारस मणि हमें दिखा दे तो हम लोग उसे हथिया लें.राजेश हरबंस और शांति यादव दोनों ही गांव बिरगहनी थाना बलौदा एक ही गांव के रहने वाले और आपस में परिचित थे. दोनों ने योजना बनाई कि शांतिबाई की बीमारी का हवाला देते हुए बाबूलाल यादव से मिला जाए.
राजेश हरबंस ऐसी परिस्थिति बनाएगा कि पारस मणि ले कर के खुद बाबूलाल खड़ा हो जाएगा.
शांतिबाई यादव की उम्र 21 वर्ष थी. वह दिखने में खूबसूरत और कमसिन थी. राजेश हरबंस उसे अपना परिचित बताते हुए एक दिन बाबूलाल यादव के घर पहुंच गया और इलाज की फरियाद की. शांतिबाई ने बाबूलाल से हंस कर बातें की और बताया कि उस के शरीर में हमेशा दर्द बना रहता है. कई डाक्टरों को दिखाया मगर वह ठीक नहीं हो पा रही है, इसलिए सोचा कि आप के पास झाडंफूंक करवाऊं.
बाबूलाल यादव ने शांतिबाई का इलाज शुरू किया. उसे तंत्रमंत्र कर के भभूत दी और कहा कि कोई बाधा है जिसे वह एक महीने में ठीक कर देगा. इस के लिए उसे हर सप्ताह आना पड़ेगा.