मेजर अमित द्विवेदी की पोस्टिंग दिल्ली में आर्मी की इंजीनियरिंग विंग में थी. वहां से करीब 3 किलोमीटर दूर उन्हें दिल्ली कैंट की औफिसर्स कालोनी में सरकारी आवास मिला हुआ था. उन का घर से औफिस आनाजाना सरकारी जिप्सी से होता था. घर से औफिस का रास्ता केवल 20 मिनट का था. 23 जून, 2018 को अमित द्विवेदी अपने औफिस से दोपहर करीब 2 बजे घर पहुंचे.
मेजर द्विवेदी घर पहुंचे तो उन की पत्नी शैलजा दिखाई नहीं दी. उन्होंने अपने 6 वर्षीय बेटे अयान से शैलजा के बारे में पूछा. अयान ने बताया कि मौम अभी अस्पताल से नहीं लौटी हैं. शैलजा को अस्पताल में इतनी देर नहीं लगनी चाहिए थी, इसलिए मेजर अमित को थोड़ी चिंता हुई.
दरअसल, शैलजा की एड़ी में दर्द रहता था, जिस का इलाज आर्मी के बेस अस्पताल में चल रहा था. दर्द की वजह से वह कई दिनों तक अस्पताल में भरती भी रही थीं. बाद में उन्हें फिजियोथेरैपी के लिए रोजाना अस्पताल जाना पड़ता था. हर रोज वह पति के औफिस जाते समय उन की जिप्सी से अस्पताल चली जाती थीं. फिजियोथेरैपी के बाद वह पति के ड्राइवर पवन को फोन कर देती थीं. पवन जिप्सी ले कर अस्पताल पहुंच जाता था और वहां से शैलजा को घर छोड़ने के बाद औफिस लौट जाता था.
उस दिन शैलजा को अस्पताल में अपना एमआरआई कराना था, जिस के लिए उन्हें देर से अस्पताल जाना था. उस दिन वह पति के साथ नहीं गई थीं. बाद में उन्होंने ड्राइवर पवन को बुला लिया था. रोजाना की तरह उस दिन वह जिप्सी को अस्पताल के अंदर न ले जा कर अस्पताल के गेट पर ही उतर गई थीं. ड्राइवर वहीं से वापस चला गया था.
मेजर अमित बेटे अयान से पत्नी के बारे में पूछ ही रहे थे कि तभी घर के अर्दली ने बताया, ‘‘सर, मेमसाहब ने घर पर फोन कर के बताया था कि उन्हें लौटने में देर हो सकती है. साहब और अयान को लंच सर्व कर देना.’’
मेजर अमित ने सोचा कि हो सकता है, शैलजा के एमआरआई की रिपोर्ट मिलने में देर हो रही हो, इसलिए घर फोन कर के देर से लौटने को कहा है. मेजर द्विवेदी ने बेटे के साथ लंच कर के पत्नी का मोबाइल नंबर मिलाया. शैलजा का फोन स्विच्ड औफ था. उन्होंने सोचा कि वह डाक्टर के रूम में होगी, कोई डिस्टर्ब न हो, इसलिए फोन बंद कर लिया होगा. वैसे भी शैलजा तेजतर्रार और सुलझी हुई महिला थीं.
लापता हुईं शैलजा
आधे घंटे बाद मेजर अमित द्विवेदी ने फिर से पत्नी का नंबर मिलाया. शैलजा का फोन अब भी स्विच्ड औफ था. तब तक दोपहर के 3 बज चुके थे. अस्पताल के सभी डाक्टर 3 बजे से पहले ही ओपीडी के सभी मरीजों को देख चुके होते हैं. एक बार अमित द्विवेदी ने सोचा कि शैलजा कहीं और चली गई होगी, लेकिन ऐसा होता तो वह घर फोन जरूर करतीं.
मेजर अमित का मन नहीं माना तो उन्होंने आर्मी अस्पताल में फोन कर के शैलजा के बारे में पूछा. वहां से पता चला कि जो डाक्टर शैलजा का इलाज कर रहे थे, शैलजा उन के पास पहुंची ही नहीं थी. यह जान कर मेजर अमित का चिंतित होना स्वाभाविक था. वैसे भी उस दिन ड्राइवर पवन ने शैलजा को अस्पताल के गेट पर उतारा था.
इस से मेजर अमित की परेशानी बढ़ गई. वह सेना की जिस इंजीनियरिंग विंग में थे, उस विंग को उन्होंने पत्नी की गुमशुदगी की सूचना दे दी. शैलजा के गायब होने की बात सुन कर मेजर अमित के साथ काम करने वाले सेना के कई अधिकारी उन के घर पहुंच गए. अमित ने उन्हें पूरी बात बता दी. इस बीच अमित ने कई बार पत्नी का फोन भी मिलाया, लेकिन वह स्विच्ड औफ ही था.
मेजर अमित के साथियों ने इस संबंध में पुलिस को सूचना देने की सलाह दी. उसी दिन यानी 23 जून को पश्चिमी दिल्ली के थाना नारायणा को पुलिस कंट्रोल रूम से दोपहर करीब डेढ़ बजे सूचना मिली थी कि बरार स्क्वायर की मुख्य सड़क पर किसी महिला का एक्सीडेंट हो गया है.
पुलिस कंट्रोल रूम को यह जानकारी एक औटो चालक दीपक ने दी थी. एक्सीडेंट की खबर मिलते ही थानाप्रभारी सुनील चौहान पुलिस टीम के साथ बरार स्क्वायर पहुंच गए.
एक्सीडेंट की जगह बरार स्क्वायर मैट्रो स्टेशन से करीब 400 मीटर दूर थी. पुलिस ने देखा वहां सड़क पर 30-35 साल की एक महिला कुचली पड़ी थी. सड़क पर दूर तक खून फैला था. उस जगह किसी कार के टायरों के निशान भी थे.
थानाप्रभारी सुनील चौहान ने टायरों के निशानों को गौर से देखा तो उन्हें मामला संदिग्ध लगा. टायरों के निशान से साफ पता चल रहा था कि उस महिला पर जानबूझ कर कई बार कार चढ़ाई गई थी.
मृतका कौन है और कहां की रहने वाली है, जानने के लिए महिला कांस्टेबल ने तलाशी ली तो मृ़तका के पास ऐसी कोई चीज नहीं मिली, जिस से उसे पहचाना जाता. पहनावे से मृतका किसी उच्च परिवार की लग रही थी.
थानाप्रभारी ने लाश का निरीक्षण किया तो मृतका के गले पर किसी पतले और तेजधार हथियार से काटने का घाव मिला. गले का घाव देख कर पुलिस को पूरा यकीन हो गया कि मामला दुर्घटना का नहीं, बल्कि हत्या का है. हत्यारा संभवत: शातिर दिमाग था, जिस ने हत्या को एक्सीडेंट का रूप देने की कोशिश की थी. चौहान ने इस की जानकारी उच्च अधिकारियों को दे दी.
कुछ ही देर में एसीपी सोमेंद्र पाल त्यागी भी वहां आ गए. उन्होंने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया. वहां मौजूद लोगों में से कोई भी मृतका को नहीं पहचान सका. मौके पर क्राइम इनवैस्टीगेशन और फोरैंसिक टीमों को भी बुलवा लिया गया था. दोनों टीमों ने घटनास्थल से सबूत जुटाए. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के लाश को हरिनगर स्थित दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल की मोर्चरी में रखवा दिया.
अस्पताल की काररवाई निपटा कर थानाप्रभारी सुनील चौहान थाने लौटे ही थे, तभी मेजर अमित द्विवेदी अपने साथियों के साथ नारायणा थाने पहुंच गए. सेना के अधिकारियों को एक साथ आया देख सुनील चौहान समझ गए कि मामला गंभीर है.
शैलजा मिली तो पर लाश के रूप में
मेजर अमित द्विवेदी ने थानाप्रभारी को अपनी पत्नी शैलजा के गायब होने की बात बताई. उन्होंने बताया कि वह सुबह बेस अस्पताल गई थी, उस के बाद घर नहीं लौटी. अमित द्विवेदी ने उन्हें पत्नी का हुलिया आदि भी बता दिया. उन की बात सुन कर थानाप्रभारी के दिमाग में उस युवती की लाश का चित्र घूम गया, जिसे वह कुछ देर पहले ही दीनदयाल उपाध्याय की मोर्चरी में रखवा कर आए थे.
वजह यह थी कि मेजर द्विवेदी ने अपनी पत्नी का जो हुलिया बताया था, वह लाश से मिलताजुलता था. इत्मीनान से मेजर की बात सुन कर थानाप्रभारी ने कहा, ‘‘आज ही बरार स्क्वायर के पास एक महिला की लाश मिली है. मृतका का गला काटने के बाद किसी ने लाश को कार से कुचला था. उस की डैडबौडी दीनदयान उपाध्याय अस्पताल की मोर्चरी में रखी है.’’
सुनील चौहान ने मेजर द्विवेदी को लाश के फोटो भी दिखाए, जिन्हें मेजर द्विवेदी ने गौर से देखा. वह उन की पत्नी शैलजा ही थी. मेजर अमित की आंखों से आंसू टपकने लगे. उन्होंने इंसपेक्टर चौहान से डेडबौडी देखने को कहा.
थानाप्रभारी मेजर अमित द्विवेदी और उन के साथियों को दीनदयाल अस्पताल ले गए, वहां उन्होंने मेजर को वह लाश दिखाई जो बरार स्क्वायर की मुख्य सड़क पर मिली थी. लाश देखते ही मेजर द्विवेदी रोने लगे. उन्होंने लाश की शिनाख्त अपनी पत्नी शैलजा द्विवेदी के रूप में कर दी.
लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद थानाप्रभारी ने राहत की सांस ली. मेजर द्विवेदी जब अस्पताल से निकल कर पार्किंग की ओर जा रहे थे तो उन्होंने पार्किंग में मेजर निखिल हांडा को अपनी कार के पास खड़े देखा.
मेजर हांडा वैसे तो अमित द्विवेदी का दोस्त था, लेकिन किसी वजह से अब उन के बीच पहले जैसे संबंध नहीं रहे थे. हांडा ने मेजर द्विवेदी और उन के साथियों को देख लिया था, इस के बावजूद उन के पास नहीं आया, बल्कि नजरें चुराने लगा. मेजर द्विवेदी ने मन ही मन सोचा जरूर कि हांडा यहां क्यों आया है? लेकिन इस बात को महत्त्व नहीं दिया.
मेजर अमित ने उस से बात नहीं की और सुनील चौहान के साथ थाने लौट आए. पुलिस पहले ही अज्ञात हत्यारे के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर चुकी थी. थानाप्रभारी ने मेजर द्विवेदी से पूछा कि क्या उन्हें इस हत्या को ले कर किसी पर कोई शक है. लेकिन मेजर ने इस बात से इनकार कर दिया.
मामला हाईप्रोफाइल था, इसलिए डीसीपी विजय कुमार ने इसे सुलझाने के लिए एसीपी (विकासपुरी) सोमेंद्र पाल त्यागी एसीपी (पंजाबी बाग) सुरेंद्र कुमार, आनंद सागर, थानाप्रभारी (नारायणा) सुनील चौहान, थानाप्रभारी (पंजाबी बाग) राजीव भारद्वाज, थानाप्रभारी (कीर्तिनगर) अनिल शर्मा, थानाप्रभारी (इंद्रपुरी) राममेहर, स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर जयप्रकाश और साइबर सैल के इंसपेक्टर मनोज कुमार को अपने औफिस बुलवा कर उन के साथ मीटिंग की.
मीटिंग में उन्होंने यह भी कहा कि जिस जगह शैलजा की लाश मिली है, वहां पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टरों को बुला कर सीन औफ क्राइम रिक्रिएट किया जाए. साथ ही हत्या की हर पहलू से जांच की जाए. डीसीपी ने अलगअलग पुलिस अधिकारियों के नेतृत्व में 6 पुलिस टीमें बना कर उन्हें अलगअलग काम सौंप दिए.
पुलिस आई पूरे ऐक्शन में
इंसपेक्टर मनोज कुमार ने शैलजा के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर जांच शुरू कर दी. पता चला कि शैलजा की एक फोन नंबर पर बहुत बात होती थी. पिछले 3 महीने में उस नंबर से शैलजा के मोबाइल पर 6 हजार काल्स आई थीं. जाहिर है इतनी काल्स वही कर सकता था जो शैलजा का ज्यादा नजदीकी हो.
घटना वाले दिन सुबह भी करीब साढ़े 8 बजे उसी नंबर से शैलजा के फोन पर काल आई थी. उस फोन नंबर के बारे में पुलिस ने मेजर अमित द्विवेदी से पूछा तो उन्होंने बताया कि यह नंबर मेजर निखिल हांडा का है.
पुलिस ने उन से मेजर निखिल हांडा के बारे में पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि काफी पहले वह उन का दोस्त था, लेकिन अब उस से बोलचाल नहीं है. इंसपेक्टर मनोज कुमार ने बोलचाल न होने की वजह पूछी तो उन्होंने बताया कि मेजर निखिल हांडा दोस्ती कर के उन की पत्नी शैलजा को परेशान करता था, इसलिए उन्होंने उस से संबंध खत्म कर दिए थे.
मेजर अमित की बात सुन कर इंसपेक्टर मनोज कुमार को स्थिति कुछकुछ साफ होती दिखी. यह जानकारी उन्होंने डीसीपी को दे दी. जांच के लिए थानाप्रभारी सुनील चौहान के नेतृत्व में एक टीम आर्मी के बेस अस्पताल भेजी गई. टीम के साथ मेजर द्विवेदी भी थे. पुलिस ने उस डाक्टर से भी पूछताछ की, जो शैलजा का उपचार कर रहा था.
डाक्टर ने बताया कि शैलजा द्विवेदी आई तो थीं, लेकिन फिजियोथेरैपी कराए बिना ही चली गई थीं. सुनील चौहान के दिमाग में यह बात घर कर गई कि जब शैलजा ने अस्पताल जा कर फिजियोथेरैपी नहीं कराई तो अस्पताल आने का उन का मकसद क्या था.
पुलिस ने अस्पताल के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी तो पता चला कि शैलजा पूर्वाह्न 11 बजे अस्पताल के बाहर रुकी सफेद रंग की होंडा सिटी कार में बैठ कर चली गई थीं. गाड़ी कौन चला रहा था, यह तो पता नहीं चल सका लेकिन पुलिस को उस कार का नंबर जरूर मिल गया. नंबर था डीएल3सी सीके7882. जांच करने पर पता चला कि यह होंडा सिटी दक्षिणी दिल्ली के साकेत के जी-96 में रहने वाले ए.आर. हांडा के नाम पर रजिस्टर्ड थी.
यह पता चलते ही तुरंत एक पुलिस टीम साकेत के पते पर भेजी गई. वहां जा कर पता चला कि ए.आर. हांडा रिटायर्ड कर्नल थे. उन्होंने बताया कि होंडा सिटी कार उन के नाम पर रजिस्टर्ड जरूर है, लेकिन उसे ज्यादातर उन का बेटा मेजर निखिल राय हांडा इस्तेमाल करता है.
उन्होंने यह भी बताया कि उन का पोता यानी निखिल का बेटा आयुष्मान सेना के बेस अस्पताल में भरती है. उस की मां नलिनी (परिवर्तित नाम) अस्पताल में उस के पास रहती है. बेटे को देखने निखिल अस्पताल के चक्कर लगाता रहता है.
इस के बाद मेजर निखिल हांडा पर पुलिस का शक बढ़ गया. पुलिस ने अस्पताल में हांडा की पत्नी नलिनी से मुलाकात की. नलिनी ने बताया कि उस दिन वह सुबह 10 बजे बेटे को देखने आए थे और कुछ देर बाद चले गए थे. दोपहर डेढ़ पौने 2 बजे वह फिर अस्पताल आए. लेकिन आधा घंटा रुकने के बाद लौट गए. इस के बाद न वह आए और न ही उन्होंने फोन किया.
अब तक की जांच में जो जानकारी पुलिस को मिली थी, उस से यह बात पुख्ता हो रही थी कि शैलजा द्विवेदी की हत्या मेजर निखिल हांडा ने की होगी. पुलिस टीमों ने जांच रिपोर्ट डीसीपी विजय कुमार के सामने रख दी. टीमों का काम देखने के बाद डीसीपी इस बात से संतुष्ट हो गए कि जांच टीमें सही दिशा में काम कर रही हैं.
मेजर निखिल हांडा की तलाश
अब मेजर निखिल हांडा का पुलिस के सामने मौजूद होना आवश्यक था ताकि उस से पूछताछ के बाद स्थिति साफ हो सके. इसलिए डीसीपी ने पुलिस टीमों को मेजर निखिल हांडा को तलाश करने के निर्देश दिए.
सर्विलांस टीम निखिल के मोबाइल नंबर पर नजर रखे हुई थी. निखिल अपने मोबाइल को स्विच्ड औफ किए हुए था. 23-24 जून की रात को उस ने 58 सैकेंड के लिए फोन औन कर के किसी से बात की थी. उस समय उस की लोकेशन दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर के पास थी.
फिर सुबह होने पर उस ने कुछ देर के लिए मोबाइल खोला. उस लोकेशन के आधार पर पता चला कि वह दिल्ली से मेरठ की तरफ गया है. लिहाजा पुलिस की टीमें मेरठ के लिए रवाना कर दी गईं.
दिल्ली में बैठी सर्विलांस टीम को मेजर निखिल हांडा की जो भी लोकेशन पता चलती, वह उसे मेरठ में मौजूद टीमों को बता देती थी. इस तरह दिल्ली पुलिस मेजर निखिल का पीछा करती रही. आखिर 24 जून की दोपहर को उसे दौराला के पास टोल प्लाजा से हिरासत में ले लिया. पुलिस उसे ले कर दिल्ली लौट आई.
पुलिस ने उस की होंडा सिटी कार की तलाशी ली तो उस में एक चाकू मिला. इस के अलावा उस के टायरों पर भी खून के निशान थे. इस से पुलिस को यकीन हो गया कि शैलजा का हत्यारा वही है. मेजर निखिल हांडा को गिरफ्तारी की बात सुन कर डीसीपी विजय कुमार भी नारायणा थाने पहुंच गए.
पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में थानाप्रभारी सुनील चौहान ने मेजर निखिल हांडा से शैलजा द्विवेदी की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उस ने अनभिज्ञता जाहिर की. उस से जब उस के टायरों पर लगे खून के निशान के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि उस की कार से सड़क पार कर रहे एक कुत्ते का एक्सीडेंट हो गया था.
चूंकि निखिल हांडा सेना का अधिकारी था, इसलिए पुलिस उस के साथ सख्ती भी नहीं कर सकती थी. लिहाजा पुलिस अधिकारियों ने सेना के बेस अस्पताल के सीसीटीवी से मिली फुटेज और शैलजा की काल डिटेल्स दिखाते हुए उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की तो वह पुलिस के सवालों में उलझ गया.
आखिर उस ने हत्या की बात स्वीकार कर ली. उस ने बताया कि काफी समझाने के बाद भी शैलजा ने उस की बात नहीं मानी तो उस के सामने ऐसे हालात बन गए कि उसे शैलजा की हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा. उस से पूछताछ के बाद शैलजा द्विवेदी की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली.
शैलजा मूलरूप से अमृतसर, पंजाब के पुतलीघर की रहने वाली थी. उस का सरनेम कालिया था. शैलजा के परिवार में मातापिता के अलावा एक भाई सुकर्ण कालिया हैं, जो अमृतसर में वकालत करते हैं. शैलजा कालिया की पढ़ाई अमृतसर में ही हुई थी. डीएवी कालेज से ट्रैवल ऐंड टूरिज्म में ग्रैजुएशन करने के बाद शैलजा ने गुरु नानकदेव विश्वविद्यालय से भूगोल और टाउन प्लानिंग में पोस्टग्रैजुएशन किया. शिक्षा पूरी करने के बाद उस का रुझान अध्यापन की तरफ हुआ. उस ने एक संस्थान में 5 साल तक लेक्चरर के पद पर नौकरी की.
पढ़ाई पूरी कर के शैलजा कालिया अपने पैरों पर खड़ी हो गई थी. मातापिता उस की शादी के लिए उपयुक्त लड़का देखने लगे ताकि उस की शादी कर के अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो सकें.
किसी परिचित ने कालिया दंपति को उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले के रहने वाले मेजर अमित द्विवेदी के बारे में बताया. उन्होंने छानबीन की तो अमित उन की बेटी शैलजा के लिए उपयुक्त लगे. दोनों पक्षों के बीच हुई बातचीत के बाद यह रिश्ता तय हो गया और सन 2009 में शैलजा और अमित की शादी हो गई.
पति ही नहीं घरपरिवार भी अच्छा मिला शैलजा को
अमित स्वभाव से सीधे और शरीफ इंसान थे. खूबसूरत शैलजा से शादी कर के वह बहुत खुश थे. शैलजा भी अमित से शादी कर के खुद को खुशनसीब समझती थी. उच्चशिक्षित शैलजा ने शादी के बाद लेक्चरर की नौकरी छोड़ दी थी. उन्हें डांसिंग, कुकिंग, सिंगिंग आदि का शौक था. इस के अलावा वह बातें इतनी प्रभावशाली करती थीं कि उन के साथ रहने वाला कोई भी बोर नहीं होता था. अपनी बातों और चुटकुलों से वह सभी को प्रभावित कर देती थीं. कुल मिला कर शैलजा बहुमुखी प्रतिभा वाली थी.
एक दिन पति के ड्यूटी पर जाने के बाद शैलजा अपने ड्राइंगरूम में अकेली बैठी थी. तभी उस के दिमाग में एक बात घूमी कि शादी से पहले जब वह अपने घर पर थी तो उस की पहचान उस के मांबाप से होती थी और शादी के बाद वह पति के नाम से जानी जाती है. यानी उच्चशिक्षा हासिल करने के बाद भी समाज में उस की अपनी कोई पहचान नहीं है. वह कुछ ऐसा करना चाहती थीं जिस से उन की अलग पहचान बन सके.
अपने मन की बात उन्होंने पति को बताई तो मेजर अमित द्विवेदी ने कह दिया कि वह जो करना चाहती हैं, करें. उन्होंने पत्नी का हरसंभव सहयोग करने का भरोसा दिया. पति की यह बात सुन कर शैलजा बहुत खुश हुईं. इस के बाद उन्होंने पुणे में रह कर एक इंस्टीट्यूट से मौडलिंग और पर्सनैलिटी डेवलपमेंट का कोर्स किया.
कोर्स करने के दौरान वह कैच ऐंड केयर नाम के एनजीओ से जुड़ कर समाजसेवा करने लगीं. वह एनजीओ के बच्चों को नि:शुल्क पढ़ाती थीं. इंस्टीट्यूट से जब भी समय मिलता, वह पति के पास जाती रहती थीं.
इसी दौरान शैलजा ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम अयान रखा गया. बेटे के जन्म के बाद घर में खुशियां और बढ़ गईं. शैलजा अपनी पहचान के लिए जो उड़ान भरना चाह रही थीं, बेटा पैदा होने पर वह रुक गई. उन्होंने सोचा कि जब बेटा कुछ बड़ा हो जाएगा तो वह फिर से अपने कैरियर के लिए जुट जाएंगी. वह पूरी तरह से बेटे की परवरिश में लगी रहीं.
अयान जब मां के बगैर रहने लायक हो गया तो शैलजा ने फिर से अपने बारे में सोचना शुरू किया. बेटा पैदा होने के बाद शैलजा की फिगर खराब हो गई थी, लिहाजा वह उसे मेंटेन करने में जुट गईं. उन्होंने जिम जाना शुरू कर दिया. इस के अलावा वह योगा भी करती थीं. अपनी मेहनत से उन्होंने शरीर को फिट कर के आकर्षक बना लिया.
चूंकि शैलजा ने मौडलिंग का कोर्स किया था, इसलिए उन का झुकाव भी उसी क्षेत्र की ओर हो गया. धीरेधीरे उन्होंने ग्लैमर वर्ल्ड की तरफ कदम बढ़ाए. उन्होंने कई उत्पादों के लिए मौडलिंग भी की. सौंदर्य प्रतियोगिताओं में भी वह हिस्सा लेती रहीं. इस के बाद शैलजा की ऐसी पहचान बढ़ी कि जुलाई 2017 में ‘मिसेज इंडिया अर्थ’ पत्रिका ने शैलजा को कवर पेज पर छापा.
इस पत्रिका में फोटो छपने के बाद शैलजा की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. उन के पति मेजर अमित द्विवेदी की पोस्टिंग उस समय दीमापुर में थी. मौडलिंग आदि के काम से वह कभीकभी दिल्ली आती रहती थीं. शैलजा सोशल साइट्स पर काफी सक्रिय रहती थीं. फेसबुक पर अच्छे लोगों से दोस्ती करना उन का शौक था.
फेसबुक के जरिए सन 2015 में उन की दोस्ती निखिल राय हांडा से हुई. निखिल ने खुद को दिल्ली का व्यापारी बताया तो शैलजा ने भी झूठ बोलते हुए खुद को एक बैंक औफिसर की पत्नी बताया.
फेसबुक पर झूठ से शुरू हुई दोस्ती
जबकि सच्चाई यह थी कि निखिल सेना में मेजर था और उस समय उस की पोस्टिंग जम्मूकश्मीर में थी. निखिल वैसे मूलरूप से दिल्ली का रहने वाला था. उस की परवरिश फौजी परिवेश में हुई थी. उस के पिता ए.आर. हांडा सेना में कर्नल थे.
पिता की तरह निखिल भी सैन्य अधिकारी बनना चाहता था. इस के लिए उस के पिता उस का मार्गदर्शन करते रहे. ग्रैजुएशन के बाद पिता ने निखिल का विवाह नलिनी से कर दिया था. नलिनी एक सीधीसादी युवती थी जबकि तेजतर्रार निखिल को अल्ट्रा मौडर्न लड़कियां पसंद थीं.
विवाह के बाद निखिल ने नैशनल डिफेंस एकेडमी (एनडीए) की परीक्षा दी. उस परीक्षा में वह पास हो गया. एनडीए की पढ़ाई करने के बाद उसे अशोक की लाट के साथ सेना की वरदी मिली. उस की पहली पोस्टिंग मेरठ इन्फ्रैंट्री में हुई. इस के बाद उस का तबादला जम्मूकश्मीर हो गया था.
मेजर निखिल राय हांडा की शादी नलिनी से हो जरूर गई थी, लेकिन वह उसे दिल से नहीं चाहता था. उस ने फेसबुक पर 2 एकाउंट बनाए. एक में उस ने खुद को दिल्ली का बिजनैसमैन बताया तो दूसरे में सेना का मेजर. उसे मौडर्न लड़कियों से दोस्ती करने का शौक था.
निखिल और शैलजा द्विवेदी के बीच करीब 6 महीने तक फेसबुक और वाट्सऐप के जरिए बात होती रही. कभीकभी वे फोन पर भी बातें कर लेते थे. दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं तो दोनों ही मुलाकात के लिए बेचैन होने लगे. शैलजा मौडलिंग के सिलसिले में दीमापुर से दिल्ली आती रहती थी. एक बार मेजर निखिल हांडा भी छुट्टी ले कर दिल्ली आ गया.
दोनों की मुलाकात एक रेस्टोरेंट में हुई. पहली मुलाकात में ही निखिल हांडा शैलजा को दिल दे बैठा. उस ने शैलजा की खूबसूरत छवि को अपने दिल में बसा लिया. उसी दिन निखिल ने उन्हें बता दिया कि वह वास्तव में सेना में मेजर है. शैलजा ने भी अपनी सच्चाई बता दी कि उस के पति भी सेना में मेजर हैं और इस समय उन की पोस्टिंग दीमापुर में है. यह बात सुन कर निखिल खुश हुआ. बाद में दोनों की फोन के जरिए बातचीत जारी रही. निखिल अपने साथ पत्नी को नहीं रखता था पर समयसमय पर अपने परिवार से मिलने दिल्ली आता रहता था.
मेजर निखिल हांडा की शैलजा के प्रति दीवानगी बढ़ती जा रही थी. वह चाहता था कि वह शैलजा के नजदीक रहेगा तो उस से रोजाना मुलाकात हो सकेगी. यही सोच कर उस ने सेना के अधिकारियों से अनुरोध कर के अपना तबादला दीमापुर करवा लिया.
अब तक वह 2 बच्चों का पिता बन चुका था. उस ने कोशिश कर के दीमापुर में शैलजा के घर के पास ही आवास ले लिया. एक दिन अपने घर आयोजित जन्मदिन की पार्टी में शैलजा ने मेजर निखिल को भी आमंत्रित किया. उसी दौरान उस की मेजर अमित द्विवेदी से मुलाकात हुई.
शैलजा अमित को केवल दोस्त समझती थी, जबकि अमित उसे चाहने लगा था. दीमापुर में रहते ही मेजर अमित का संयुक्त राष्ट्र शांति अभियान पर सूडान जाने के लिए चयन हो गया. उन्हें प्रतिनियुक्ति पर सूडान जाना था. वहां जाने से पहले उन्हें दिल्ली में 2 महीने की ट्रेनिंग करनी थी. अमित ने उसी समय शैलजा के साथ प्लान बना लिया था कि वह पूरे परिवार को भी सूडान व अन्य देशों की यात्रा कराएंगे. चूंकि अमित को ट्रेनिंग करनी थी, इसलिए वह परिवार सहित दिल्ली आ गए.
उधर शैलजा की निखिल से फोन पर बातचीत होती रहती थी. अकसर शैलजा के फोन पर लगे रहने पर अमित ने शैलजा को समझाया कि यह स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है. एक दिन अमित ने पत्नी को निखिल से वीडियो काल करते देख लिया तो उन्हें अच्छा नहीं लगा. उन्होंने पत्नी से कहा कि निखिल उन्हें पसंद नहीं है, इसलिए वह उस से बात न किया करें.
बढ़ती गई निखिल की दीवानगी
इस के बाद शैलजा ने निखिल से दूरी बनानी शुरू कर दी. निखिल को यह जानकारी मिल चुकी थी कि मेजर अमित सूडान जा रहे हैं. वह इसी का फायदा उठाते हुए शैलजा से नजदीकियां बढ़ाना चाहता था. लेकिन शैलजा के रुख को वह समझ नहीं पाया. निखिल छुट्टी ले कर 2 जून को शैलजा से मिलने दिल्ली आ गया. दिल्ली आ कर उसे पता चला कि शैलजा अमृतसर में अपने मायके में है तो वह अमृतसर पहुंच गया. अचानक निखिल को देख कर शैलजा चौंक गईं.
निखिल के अनुरोध पर शैलजा उस के साथ एक रेस्टोरेंट चली गई. तभी मेजर निखिल ने उस के सामने अपना प्यार जाहिर कर दिया. लेकिन शैलजा ने साफ कह दिया कि वह उसे केवल अपना दोस्त समझती है, इस के आगे कुछ नहीं.
निखिल ने यहां तक कह दिया कि वह अपनी पत्नी को तलाक दे देगा. शैलजा ने उसे समझाया कि वह अपने दिल से गलतफहमी निकाल दे और अपने बीवीबच्चों को देखें, यही ठीक रहेगा. तब निखिल मुंह लटका कर घर आ गया.
2-4 दिन बाद शैलजा भी दिल्ली आ गई. एक दिन शैलजा की एड़ी में दर्द हुआ तो वह सेना के बेस अस्पताल पहुंचीं, जहां उन्हें भरती कर लिया गया. यह बात मेजर निखिल को पता लगी तो वह भी उसी अस्पताल में माइग्रेन का दर्द होने का बहाना बना कर अस्पताल में भरती हो गया.
उस दौरान वह शैलजा से भी मिला पर उस ने निखिल को लिफ्ट नहीं दी. शैलजा ने अपनी छुट्टी कराई तो निखिल भी घर आ गया. बाद में वह फिजियोथेरैपी कराने के लिए अस्पताल जाती रहती थी.
निखिल शैलजा के प्यार में पागल हो चुका था. उस ने शैलजा को मनाने की कोशिश जारी रखी. उसे पता चला कि शैलजा अभी भी बेस अस्पताल जाती रहती हैं तो उस ने अपने बेटे को पेट दर्द की बात बता कर अस्पताल में भरती करा दिया. वह अस्पताल में शैलजा से मिलने की कोशिश करता रहता था.
उस की सनक को देखते हुए शैलजा ने उस से दूरी बना ली. बेटे की तीमारदारी के लिए निखिल ने अपनी पत्नी नलिनी को अस्पताल में छोड़ दिया था. 22 जून, 2018 को भी मेजर निखिल हांडा ने शैलजा से मिलने की इच्छा जाहिर की. उन्होंने मना कर दिया तो वह विनती करने लगा कि आखिरी बार मिल लो. इस के बाद मैं परेशान नहीं करूंगा.
आखिर दीवानगी में बन गया हत्यारा
शैलजा मान गई और उन्होंने 23 जून को अस्पताल में मिलने के लिए कह दिया. निखिल अब एक दिलजला आशिक बन गया था. उस ने तय कर लिया था कि यदि इस बार भी शैलजा ने उस की बात नहीं मानी तो वह उसे जिंदा नहीं छोड़ेगा. इस के लिए उस ने सर्जिकल ब्लेड भी खरीद लिया था.
23 जून को सुबह करीब साढ़े 8 बजे निखिल ने शैलजा को फोन किया तो उस ने कह दिया कि वह कुछ देर में अस्पताल पहुंच रही है. रोजाना मेजर अमित ही औफिस जाते समय पत्नी को अस्पताल छोड़ देते थे लेकिन उस दिन शैलजा ने उन के साथ जाने से यह कह कर मना कर दिया कि वह आज अस्पताल देर से जाएगी. बाद में उस ने पति के सरकारी ड्राइवर को फोन कर के बुला लिया और ड्राइवर ने शैलजा को अस्पताल के गेट पर उतार दिया.
मेजर निखिल को उस दिन शैलजा से मिलने का बेसब्री से इंतजार था. अस्पताल में भरती बेटे को देखने के बाद वह अस्पताल के गेट पर पहुंचा और वहां से शैलजा को अपनी कार में बैठा लिया. इस के बाद वह अस्पताल कैंपस से बाहर निकल गया. निखिल ने फिर से शैलजा को समझाने की कोशिश की. उधर शैलजा भी उसे समझा रही थी कि वह फालतू की बातें न करे. तबाही के अलावा इन से कुछ हासिल नहीं होगा.
उधर मेजर निखिल की पत्नी नलिनी को भी शक हो गया था कि उस का पति शैलजा के पीछे दीवाना बन गया है. उसी समय नलिनी का निखिल के मोबाइल पर फोन आया. निखिल ने फोन का स्पीकर औन कर उस से बात की. नलिनी उस के और शैलजा के बारे में बात कर रही थी. निखिल ने पत्नी को डांटते हुए काल डिसकनेक्ट कर दी. फिर वह शैलजा से बोला, ‘‘तुम्हारे लिए मैं पत्नी से लड़ रहा हूं और उसे तलाक देने को तैयार हूं लेकिन तुम बात समझने की कोशिश ही नहीं कर रहीं.’’
‘‘निखिल, यह तुम्हारी बेकार की जिद है. तुम अस्पताल में अपनी बीवीबच्चे के पास जाओ.’’ शैलजा ने सलाह दी.
निखिल को लगा कि अब यह नहीं मानेगी तो उस ने गाड़ी के डैशबोर्ड से सर्जिकल ब्लेड निकाला. उस समय कार बरार स्क्वायर में थी और सड़क सुनसान थी. इस से पहले कि शैलजा कुछ समझ पाती, उस ने सर्जिकल ब्लेड बराबर की सीट पर बैठी शैलजा के गले पर चला दिया. कार में खून फैलने लगा तो उस ने साइड का दरवाजा खोल कर शैलजा को धक्का दे कर सड़क पर गिरा दिया. इस के बाद उस ने तड़पती हुई शैलजा के ऊपर
2-3 बार कार चढ़ा दी, जिस से उस की मौके पर ही मौत हो गई. यह उस ने इसलिए किया ताकि मामला दुर्घटना का लगे.
शैलजा का फोन कार में ही गिर गया था, जिस का सिम निकाल कर उस ने तोड़ दिया और फोन भी पत्थर से कुचल दिया. उस की गाड़ी के अंदर और टायरों पर खून लगा था जो उस ने एक जगह धुलवा दिया लेकिन टायरों का खून पूरी तरह साफ नहीं हुआ था.
इस के बाद वह अस्पताल में अपने बेटे को देखने गया. वहां से चितरंजन पार्क में रहने वाले अपने चाचा राघवेंद्र के पास गया और उन से 20 हजार रुपए लिए. फिर उस ने भाई रजत के साथ बीयर पी.
गाड़ी में कोई सबूत न रहे, इस के लिए वह उस के टायर बदलवाना चाहता था या उस की अच्छी तरह धुलाई करवाना चाहता था. मेरठ में पोस्टिंग के दौरान उस की कुछ गैराज वालों से पहचान हो गई थी, इसलिए वह दिल्ली से मेरठ चला गया, जहां पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.
मेजर निखिल से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे 25 जून को पटियाला हाउस कोर्ट में महानगर दंडाधिकारी मनीषा त्रिपाठी की अदालत में पेश कर के 96 घंटे के लिए पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उस की निशानदेही पर एक कूड़ेदान से शैलजा का कुचला हुआ मोबाइल बरामद किया गया. लेकिन पुलिस हत्या में प्रयुक्त सर्जिकल ब्लेड, आरोपी के खून सने कपड़े, शैलजा का पर्स, छाता, कार से खून साफ करने वाला तौलिया बरामद नहीं कर सकी.
आरोपी मेजर निखिल राय हांडा से विस्तार से पूछताछ के बाद उसे फिर से न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.
– कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित