जीएसटी लागू करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावा किया है कि इस ‘एक देश एक टैक्स’ से करचोरी खत्म हो जाएगी और अच्छे दिन असल में आ जाएंगे. ब्लैक की बात करते हुए प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री ऐसे बोलते हैं मानो हर जना जो नकद में काम करता है वह देश और समाज का गुनाहगार है. जिन गुनाहगार छोटे व्यापारियों और कारखानेदारों के लिए यह जीएसटी लगाया गया है, वे असल में बेहद गरीबी में फटेहाल हैं. वे 4 लोगों को काम दे सकते हैं तो इस का मतलब नहीं कि वे टाटा, बिड़ला, अडानी बन गए हों.

जीएसटी से जिस तरह कंप्यूटरों पर टिक कर सारा व्यापार चलाया जाएगा, उस से आधा पढ़ालिखा व्यापारी, छोटा कारखानेदार, छोटा ठेकेदार, उन के साथ काम करने वाले मजदूर काले धन को धोने के नाम पर गंदे नाले में बह जाएंगे और देश में गरीब हायहाय करने लगें, तो बड़ी बात नहीं.

काला धन सरकार की वजह से पैदा होता है. कोई अमीर अपनी जेब में टैक्स चोरी का पैसा नहीं रखना चाहता, क्योंकि यह पैसा उस के भी किसी काम का नहीं होता. वह उस से छोटामोटा सामान खरीद सकता है, पर असली महंगे सामान के लिए तो उसे बड़ी कंपनियों के पास ही जाना होता है, जो काले पैसे में भरोसा नहीं करतीं.

काला धन असल में है तो नेताओं, मंदिरोंमसजिदों और बिचौलियों के पास. जीएसटी उन्हें छू भी नहीं रहा. असली काला धन वहीं का वहीं रहेगा. सरकार की नजर से बचा पैसा पैसा है, कालासफेद नहीं. जिस देश में अभी भी 95 प्रतिशत जनता गरीब हो, वहां कैसे काले पैसे की बात की जा रही है, समझ नहीं आता. नोटबंदी के बाद जैसे नकद धंधा चालू रहा, वैसे ही जीएसटी के बाद हो सकता है. अगर कहीं फायदा होगा तो सरकार को होगा कि उस की आमदनी बढ़ जाएगी, पर यह गरीबों की जेब कट कर बढ़ेगी, अमीरों की नहीं.

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