अब से कुछ साल पहले तक ऐसा माना जाता था कि पंचायत चुनाव गांव की सरहद तक सीमित रहते हैं, पर अब ऐसा नहीं है. आज की तारीख में हर बड़ा सियासी दल पूरी ताकत से इन चुनाव में अपना दमखम दिखाता है और अगर लोकसभा चुनाव नजदीक हों तो पंचायत चुनाव नतीजों की अहमियत बहुत ज्यादा बढ़ जाती है.

इस बात को पश्चिम बंगाल में हुए पंचायत चुनाव से समझते हैं, जहां ममता बनर्जी को मिली बंपर जीत से पूरी तृणमूल कांग्रेस की बांछें खिली हुई हैं और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले बिखरे विपक्ष में थोड़ी उम्मीद जगी है कि केंद्र की 'डबल इंजन' सरकार की चूलें हिल सकती हैं, बशर्ते आपसी मतभेद भूल कर भारतीय जनता पार्टी के झूले में झूलते राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का डट कर सामना किया जाए.

पश्चिम बंगाल में 8 जुलाई, 2023 को एक चरण में ग्राम पंचायत, पंचायत समिति और जिला परिषद की कुल 73,887 सीटों के लिए चुनाव हुए. नतीजों में तृणमूल कांग्रेस सब पर भारी पड़ी. उस ने भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और वामपंथी दलों को रगड़ कर रख दिया.

ममता बनर्जी का जलवा बरकरार

कोई कुछ भी कहे, पर पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को टक्कर देना फिलहाल बड़ा मुश्किल दिख रहा है. इस की सब से बड़ी वजह ममता बनर्जी के शासनकाल में पश्चिम बंगाल के लोगों के लिए चलाई गई कल्‍याणकारी योजनाएं हैं, जिन का फायदा आम लोगों तक पहुंच रहा है.

राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, गांवदेहात के इलाकों में 'लक्ष्मी भंडार' जैसी महिला सशक्तीकरण योजना ने महिला वोटरों को पार्टी से बांधे रखने में अहम रोल निभाया है. इस योजना के तहत सरकार सामान्य श्रेणी के परिवारों को 500 रुपए हर महीने और एससीएसटी श्रेणी के परिवारों को 1,000 रुपए हर महीने देती है.

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