32साला ओंकार रजक (बदला हुआ नाम) भोपाल के एक पौश इलाके में लौंड्री चलाते हैं, जिस से उन्हें तकरीबन 50,000 रुपए महीने की आमदनी हो जाती है. अब से 14 साल पहले ओंकार रजक अपना गांव छोड़ कर भोपाल आ बसे थे. उन के मातापिता दोनों वहीं कपड़े धोते थे, लेकिन तब धोबी से कपड़े धुलवाने का रिवाज गांव में ऊंची जाति वालों तक ही सिमटा था.

ओंकार रजक को बखूबी याद है गांव का वह नजारा, जब मांबाप दोनों सुबह से ब्राह्मण, ठाकुर, बनियों और कायस्थों के घरघर जा कर कपड़ों की पोटली लेते थे और दिनभर तालाब पर धो कर सुखाते थे. फिर शाम को इस्तरी कर के वापस आते थे.

सब लोग उन्हें धोबी ही कहते थे. तब यह बुरा मानने वाली बात नहीं होती थी. या यों कह लें कि इस की इजाजत नहीं थी. ओंकार रजक कहते हैं, ‘‘मेरे पापा इसी बात से खुद को तसल्ली दे लेते थे कि गांव में उन से छोटी जाति वाले लोग भी हैं, जिन्हें कोई छूता भी नहीं. इस बिना पर वे खुद को लाख गुना बेहतर मानते थे.’’

फिर एक दिन स्कूल में साथ के बच्चे ने ओंकार रजक को चिढ़ाते हुए यह कह दिया, ‘अबे, धोबी का बच्चा है. जिंदगीभर हमारे कपड़े ही धोएगा, तो पढ़लिख कर क्या करेगा’.

यह बात ओंकार रजक के कलेजे में चुभ गई. पिता से कहा, तो उन्होंने समझाया कि भाग्य और होनी टाली नहीं जा सकती. तुझे जिंदगी में कुछ बनना है, तो दिल लगा कर पढ़. पैसों की चिंता मत कर, वह हम कपड़े धो कर कमाएंगे. तू कुछ बन जाएगा, तो ठाट से शहर में रहेंगे.

यह बात ओंकार रजक को समझ आ गई और वे भोपाल आ कर पढ़ने लगे. लेकिन बीकौम करते समय एक साल के अंतर पर मांबाप दोनों चल बसे, तो उन्होंने गांव से डेराडंगर समेटा और भोपाल में ही इस्तरी करने की दुकान खोल ली और लोगों के कपड़े धोतेधोते ही लौंड्री शुरू कर दी, जो चल निकली.

अपने 8 साल के बेटे बिट्टू को ओंकार रजक एक महंगे स्कूल में एक खास मकसद से पढ़ा रहे हैं. वह मकसद या सपना वही है, जो उन के पिता का उन को ले कर था.

‘धोबी का बच्चा’ ताने से जो बेइज्जती ओंकार रजक को सालों पहले महसूस हुई थी, वह आज भी कभीकभी अंदर तक साल जाती है. जिस दिन वह वाकिआ उन्हें याद आ जाता है, उस दिन निवाला भी गले के नीचे नहीं उतरता.

भोपाल में ओंकार रजक ने इस सवाल का जवाब ढूंढ़ना शुरू किया कि आखिर ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र बनाए किस ने? अगर भगवान ने बनाए तो उस ने भी भेदभाव ही किया, जो आज तक जारी है और जिस के बारे में आज भी कहा जाता है कि यह भेदभाव तो कब का खत्म हो गया है.

ओंकार रजक कहते हैं, ‘‘जब मैं टीटी नगर में पेड़ के नीचे ठेला लगा कर कपड़े इस्तरी करता था, तब खाली समय में किताबों और मैगजीनों में इसी सवाल का जवाब ढूंढ़ा करता था, लेकिन वह कहीं नहीं मिला.’’

फिर एक दिन एक किताब ओंकार रजक को एक खाली होते मकान से मिली, जिस का नाम था, ‘हिंदू समाज के पथभ्रष्टक तुलसीदास’. ओंकार रजक ने यह किताब कई बार पढ़ी और कुछ दिन में ही उन्हें समझ आ गया कि यह सब धर्मग्रंथ लिखने वाले ब्राह्मणों की करतूत है, जो देवीदेवताओं, पापपुण्य, कभी ज्योतिष, तो कभी मंदिर के नाम पर पैसा बटोरा करते हैं और समाज में ऊंचनीच और जाति के नाम पर उस के टुकड़ेटुकड़े किए हुए हैं, लेकिन कोई उफ भी नहीं करता.

जब चंद्रशेखर का बयान पढ़ा

‘‘हम धोबी शूद्रों में शुमार किए जाते हैं, फिर भले ही जातिगत आरक्षण में ओबीसी में गिने जाते हों और हमें छूने से किसी को पाप न लगता हो या उस का परलोक न बिगड़ता हो,’’ ओंकार रजक कहते हैं, ‘‘होश संभालने के 18 साल तक हर कहीं मैं यह सुनता और पढ़ता रहा कि धर्मग्रंथों ने वर्ण व्यवस्था के इंतजाम किए हैं.

‘‘‘मनुस्मृति’ में ऐसा और वैसा लिखा है कि हम दलित या शूद्र कुछ भी कह लें, इस का विरोध करते हैं. आखिर हम भी

2 हाथपैर, एक पेट और गरदन, छाती, सिर वाले इनसान हैं, फिर हमें निचले पायदान पर क्यों खड़ा किया गया है?’’

ऐसी ही कशमकश में समय गुजरता गया. फिर पिछले दिनों ओंकार रजक ने अपने स्मार्टफोन पर खबर पढ़ी, जिस से उन का मन एक बार फिर कसैला हो गया और गैरत जाग उठी.

यह खबर बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर के एक भाषण का हिस्सा था, जो उन्होंने नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में दिया था. उन्होंने प्रमुखता से कहा था कि ‘मनुस्मृति’ में समाज की 85 फीसदी आबादी वाले बड़े तबके के खिलाफ गालियां दी गईं. ‘रामचरितमानस’ के उत्तरकांड में लिखा है कि नीच जाति के लोग शिक्षा ग्रहण करने के बाद सांप की तरह जहरीले हो जाते हैं. यह नफरत को बोने वाले ग्रंथ हैं. एक युग में ‘मनुस्मृति’, दूसरे युग में ‘रामचरितमानस’, तीसरे युग में गुरु गोलवलकर का ‘बंच औफ थौट’ ये सभी देश व समाज में नफरत बांटते हैं. नफरत कभी देश को महान नहीं बनाएगी. देश को केवल मुहब्बत महान बनाएगी.

नफरत और मुहब्बत शब्द सुन कर ओंकार रजक को राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ याद आ गई, जिस में वे भी यही सब नफरत और मुहब्बत की बात कह रहे थे, बस धर्मग्रंथों का नाम नहीं ले रहे थे, जिस की भरपाई चंद्रशेखर ने यह कहते हुए की कि मैं उस श्रीराम की पूजा करता हूं, जो माता शबरी के जूठे बेर खाते हैं, मां अहिल्या के मुक्तिदाता हैं, जो जीवनभर नाविक केवट के ऋणी रहते हैं, जिन की सेना में हाशिए के समूह से आने वाले वन्य प्राणी वर्ग सर्वोच्च स्थान पर रहते हैं.

फिर चंद्रशेखर ने कहा कि मैं उस ‘रामचरितमानस’ का विरोध करता हूं, जो हमें यह कहता है कि जाति विशेष (ब्राह्मणों) को छोड़ कर बाकी सभी नीच हैं, जो हम शूद्रों और नारियों को ढोलक के समान पीटपीट कर साधने की शिक्षा देता है, जो हमें गुणविहीन विप्र की पूजा करने और गुणवान दलित शूद्र को नीच समझ कर दुत्कारने की शिक्षा देता है.

चंद्रशेखर यहीं चुप नहीं रहे, बल्कि उन्होंने कहा कि माता शबरी के जूठे

बेर खाने वाले श्रीराम अचानक ‘रामचरितमानस’ में आते ही इतने जातिवादी कैसे हो जाते हैं. किस के फायदे के लिए राम के कंधे पर बंदूक रख कर ये ठेकेदार चला रहे हैं. यही ठेकेदार हैं, जो एक राष्ट्रपति को जगन्नाथ मंदिर में घुसने से रोकते हैं, जीतनराम मांझी के मंदिर में जाने पर उसे धोते हैं.

ओंकार रजक को समझ आ गया कि ये सभी बातें हालांकि काफी पुरानी हैं, ‘हिंदू समाज के पथभ्रष्टक तुलसीदास’ में भी उस ने पढ़ी हैं और सदियों से कही जा रही हैं और हर बार थोड़ा हल्ला मचने के बाद टांयटांय फुस हो जाती हैं.

न जाने क्यों ओंकार रजक को लगने लगा कि उस के बेटे को सांप कहते दुत्कारा जाएगा. इस बार मामला तूल पकड़ रहा है, क्योंकि इस सच को बोलने के एवज में चंद्रशेखर की जीभ काटने वाले को 10 करोड़ रुपए दिए जाने का ऐलान अयोध्या से हो चुका है. वहां के संत जगद्गुरु परमहंस आचार्य ने यह तगड़ा इनाम रखा है. इस संत ने चंद्रशेखर को मंत्री पद से हटाने की मांग भी की, जिस पर किसी ने कान नहीं दिए.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चालाकी से इस मुद्दे को टरका गए, तो राजद, जिस के कोटे से चंद्रशेखर विधायक और मंत्री हैं, ने यह कहते हुए पल्ला झाड़ लिया कि यह उन की निजी राय है, लेकिन अच्छी बात यह है कि चंद्रशेखर अपने कहे पर कायम हैं.

दिल्ली समेत बिहार के सभी जिलों में भाजपा उन के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवा चुकी है. देशभर के संत, महंत और शंकराचार्य चंद्रशेखर को कोसते हुए शाप सा दे रहे हैं कि उन्होंने ब्राह्मणों

और धर्मग्रंथों का अपमान किया है. लिहाजा, उन्हें अपने कहे की सजा मिलनी ही चाहिए.

इस ड्रामे पर ओंकार रजक कहते हैं, ‘‘चंद्रशेखर को तो बजाय सजा के इनाम मिलना चाहिए, क्योंकि उन्होंने धर्मग्रंथों में लिखे सच को समाज के सामने ला दिया है.

‘‘अब पंडेपुजारियों यानी ठेकेदारों की बारी है कि वे इसे झूठ या गलत साबित करें, लेकिन दलीलों से करें, ‘ताड़ना’ शब्द का मतलब सीखना या सिखाना न बताएं. बात को तोड़ेंमरोड़ें नहीं. तुलसीदास की मंशा देखें. अगर वह पाकसाफ होती तो सिखाया ब्राह्मणों और क्षत्रियों को भी जाना चाहिए. शूद्र और नारी की तुलना ढोल और गंवार से ही क्यों की गई? इसलिए कि उन्हें नीचा दिखाना था और विरोध इसी बात को ले कर है.

‘‘हम नीची जाति वाले किस बिना पर सांप कहे जा रहे हैं और ब्राह्मण किस बिना पर श्रेष्ठ कहे जा रहे हैं? क्या इस बिना पर कि वे ऊंचे और हम नीच कुल में पैदा हुए हैं? ये कुल और जातियां बनाए किस ने? इस बात का जवाब परमहंस को मंच से देना चाहिए.

‘‘अगर पिछले जन्म के पापों के चलते हमें नीच मान लिया गया है, तो हम इन धर्मग्रंथों के सच तो दूर की बात है, वजूद से ही सरासर इनकार करते हुए एक बार फिर इन्हें जला देने की सिफारिश करते हैं, जिस से यह झगड़ा ही खत्म हो जाए और सभी जाति के लोग खुद को गर्व से हिंदू कहें, जैसा कि आरएसएस वाले भी आएदिन कहते रहते हैं और भाजपा वाले भी, लेकिन वे सिर्फ कहते हैं, करते इस बाबत कुछ नहीं…’’

ओंकार रजक तैश में कहते हैं, ‘‘यह विवाद या झगड़ा इन किताबों के जिंदा रहते तो कभी नहीं सुलझ सकता.’’

स्वामी भी बोले

मामला शांत हो पाता, इस के पहले ही उत्तर प्रदेश के सीनियर समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य भी इस जंग में 22 जनवरी, 2023 को कूद पड़े. उन्होंने कहा कि ‘रामचरितमानस’ में लिखा है कि ब्राह्मण भले ही दुराचारी, अनपढ़ हो, उस को पूजनीय कहा गया है, लेकिन शूद्र कितना भी ज्ञानी हो, उस का सम्मान मत कीजिए. क्या यही धर्म है?

जो धर्म हमारा सत्यानाश चाहता है, उस का सत्यानाश हो. ‘रामचरितमानस’ एक बकवास ग्रंथ है. इस पर रोक लगनी चाहिए या फिर इस के आपत्तिजनक अंश को हटा देना चाहिए.

बागेश्वर धाम पर हमला

यह वह समय था जब पूरा देश खबरिया चैनलों पर बाबा बागेश्वर धाम यानी धीरेंद्र शास्त्री के चमत्कार को देख रहा था. ओंकार रजक की मानें, तो जब ऊंची जाति वाले कट्टर होते हैं और इस यानी हिंदुत्व के बाबत सारे संतमहंत और शंकराचार्य एकजुट हो जाते हैं, तो सब से ज्यादा घबराहट हम दलितों को होती है, क्योंकि हम को लगने लगता है कि ये लोग मिल कर मनुवादी व्यवस्था को फिर से थोप रहे हैं और आड़ धर्मांतरण और घरवापिसी की ले रहे हैं.

दिक्कत तो यह है कि देश में एक करंट सा दौड़ जाता है, जब सभी ब्राह्मण बाबा होहो करते हुए हिंदुत्व की वकालत करने लगते हैं. उस हिंदुत्व की, जिस में हमारी जगह या तो है ही नहीं और अगर है भी तो सब से नीचे है, क्योंकि हमें ब्रह्मा के पैर से पैदा होना बता कर सदियों तक गुलामी करवाई गई है. हमारी औरतों की इज्जत लूटी गई है. हम से जानवरों सरीखा बरताव किया गया है.

ये लोग फिर वही चाहते हैं, क्योंकि मोदीजी के आने के बाद से हिंदुत्व का करंट और फैला है. निजीतौर पर तो मुझे लगता है कि मेरे बिट्टू को धोबी कह कर दुत्कारने और बेइज्जत करने का जाल बुना जा रहा है, जिस से वह भी हिम्मत छोड़ दे. पढ़ाई तो फिर अपनेआप छूट ही जाएगी. ऐसे माहौल में कोई दलित बच्चा कैसे पढ़ सकता है?

शायद इस बात का एहसास स्वामी प्रसाद मौर्य को है, जो उन्होंने 26 साल के जवान, भगवान से भी ज्यादा पुज रहे धीरेंद्र शास्त्री पर हमलावर होते हुए कहा कि यह देश का दुर्भाग्य ही है कि धर्म के ठेकेदार ही धर्म को बेच रहे हैं. तमाम सुधारकों की कोशिश से देश आज तरक्की के रास्ते पर है, लेकिन ऐसी सोच वाले बाबा समाज में रूढि़वादी परंपराओं और अंधविश्वास पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं.

धीरेंद्र शास्त्री ढोंग फैला रहे हैं. ऐसे लोगों को जेल में डाल देना चाहिए, जो संविधान की भावनाओं को आहत करते हैं. जब तुलसीदास ने ‘रामचरितमानस’ लिखी, तब औरतों और दलितों को पढ़ने का अधिकार नहीं था. इन्हें पढ़ने का अधिकार तो अंगरेजों ने दिया.

स्वामी प्रसाद मौर्य ने जोरदार दलीलों के साथ कहा कि जब सभी बीमारियों की दवा बाबा के पास है, तो सरकार बेकार में मैडिकल कालेज अस्पताल चला रही है. सभी लोग बाबा के यहां जा कर दवा ले लें.

उन्होंने ‘रामचरितमानस’ की एक चौपाई का जिक्र किया कि ‘जे बरनाधम तेली कुम्हारा स्वपच किरात कोल कलवारा’. इन में जिन जातियों का जिक्र है, वे हिंदू धर्म को मानने वाली हैं. इस में सभी जातियों को नीच और अधम कहा गया है.

कहां जा रहा देश

इन दिनों देश में यही सब हो रहा है, जिस का आम लोगों की परेशानियों से कोई वास्ता नहीं, उलटे ध्यान बंटाने के लिए फर्जी धार्मिक समस्याएं पेश की जा रही हैं, जिन से सवर्ण हिंदुओं को छोड़ कर बाकी सभी दहशत में हैं कि अब जाने क्या होगा.

धीरेंद्र शास्त्री खुलेआम देश को हिंदू राष्ट्र घोषित करने की मांग कर चुका

है, जिस का समर्थन सभी साधुसंत कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें अपनी दुकान और चमकने की गारंटी है.

ऐसे में चंद्रशेखर और स्वामी प्रसाद मौर्य दलित हितों और हक समेत उन की धार्मिक दुर्दशा की बात कर रहे हैं, तो उन के पास दलित राजनीति का लंबा अनुभव है, जिन की मंशा पर इसलिए भी सवाल खड़े नहीं किए जा सकते हैं कि आसपास खासतौर से बिहार और उत्तर प्रदेश में कोई चुनाव भी नहीं हैं, इसलिए मुमकिन है कि वे अपने तबके के लोगों को आने वाले खतरों से आगाह कर रहे हों.

लेकिन ओंकार रजक की मानें, तो यह माहौल राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की कामयाबी से लोगों का ध्यान भटकाने की साजिश है, जिस से भाजपा बौखला गई है.

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