जिस ने शादी की वह भी पछताया और जिस ने नहीं की वह भी पछताया. लेकिन अकसर अक्लमंद लोगों का यह खयाल होता है कि क्यों न शादी कर के ही पछताया जाए.

शादी का मतलब खुशी है. पर आज के जमाने में खुशी के मौके जरा कम ही आते हैं या लोग खुशी का मतलब बदलते जा रहे हैं.

पहला दौर

यह उस वक्त शुरू होता है जब दुलहन अपने बाबुल का घर छोड़ कर अपने सरताज यानी दूल्हे के घर आती है. शोर उठता है ‘दुलहन आई, दुलहन आई’. सास भागती हुई तेल ले कर आती है. ननद कुरआन उठाती है. सास दरवाजे पर तेल डालती है और ननद कुरआन के साए में दुलहन को अंदर ले कर आती है.

औरतों और बच्चों का जमावड़ा है. कोई दुलहन का गरारा खींच रहा है तो कोई पैर पर चढ़ रहा है. कुछ औरतें प्यार जताने में उस के बाल खराब करने की कोशिश में हैं. दुलहन का गुस्से के मारे बुरा हाल है. 400 रुपए दे कर ब्यूटीपार्लर से बाल बनवाए गए थे, सब सैटिंग बिगाड़ दी. सास दूल्हादुलहन के ऊपर से खूब पैसे फेंकती है. बहू को मुंहदिखाई देती है. इस के बाद बेचारी बहू की जान छूटती है और उसे उस के कमरे में पहुंचा दिया जाता है.

दुलहन इतमीनान की सांस ले कर भारी दुपट्टा उतारती है और अपना हुलिया दुरुस्त करती है. सरसरी नजरों से कमरे का जायजा लेती है और फिर तकिए से टेक लगा कर आंखें बंद कर के ख्वाबों की दुनिया में पहुंच जाती है. अपने सरताज के बारे में तरहतरह के सवाल सोचती है. कमरे में आएगा तो मैं अपना मुंह  छुपाऊंगी, फिर वह गुजारिश करेगा.

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