भाजपा के सत्ता में आते ही मौब लिंचिंग की घटनाओं में इजाफा संयोग नहीं हो सकता. दहशत के मकसद से अंजाम दी जा रही इन घटनाओं के पीछे सियासी स्वार्थों के निहित होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है. लोग 4 साल पहले तक मौब लिंचिंग शब्द से अनजान थे, लेकिन अब सवा सौ करोड़ देशवासी जान गए हैं कि मौब लिंचिंग के माने होते हैं बेकाबू भीड़ द्वारा किसी को पीटना या पीटपीट कर उस की हत्या कर देना. यह महज इत्तफाक नहीं है कि केंद्र में भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आते ही मौब लिंचिंग के हादसे बढें, बल्कि आंकड़े और हादसे दोनों यह गवाही भी देते हैं कि मौब लिंचिंग हमेशा बेमकसद नहीं होती, उस के अपने अलग माने, मंशा और मकसद होते हैं.

मौब लिंचिंग पर 22 जुलाई को एक बार फिर बहस और चर्चा गरमा गई जब राजस्थान के अलवर शहर के नजदीक रामगढ़ गांव में भीड़ ने रकबर उर्फ अकबर खान नाम के एक मुसलिम नौजवान की हत्या कर दी. रकबर का कुसूर इतनाभर नहीं था कि वह मुसलमान था बल्कि यह भी था कि हादसे की रात वह गाय ले कर आ रहा था. इस पर गौरक्षकों की भीड़ ने उसे गौ तस्कर मान लिया और सजा दे कर इंसाफ भी कर दिया. हादसा नहीं साजिश 21 जुलाई की देररात रकबर खान असलम खान के साथ गाय खरीद कर अलवर वापस लौट रहा था. 28 वर्षीय यह नौजवान मेहनतमजदूरी कर अपने घर के 11 लोगों का पेट पाल रहा था. अलवर के कोलगांव के इस मेहनती बाशिंदे के ख्वाब वैसे ही थे जैसे आम नौजवानों के होते हैं कि घर की सहूलियतों व सुख के लिए ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाए जाएं. कभीकभार रकबर दूध भी बेचता था.

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