दामोदर को अहसास हुआ कि उसे फिर से पेशाब लग गया है. पता नहीं, उस का गुरदा खराब हो गया है या शायद कोई और बात है.

ऐसा नहीं है कि दामोदर ने डाक्टर को नहीं दिखाया. उस ने कई डाक्टरों को दिखाया, लेकिन समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है. उसे लगातार पेशाब आना बंद ही नहीं होता है. वह आखिर करे भी तो क्या करे? अब उस का डाक्टरों पर से जैसे विश्वास ही उठ गया है. उसे लगता है कि उस के मर्ज की दवा शायद अब किसी भी डाक्टर के पास नहीं है.

कभीकभी दामोदर को ऐसा भी लगता है कि वह एक ऐसे जंगल में पहुंच गया है, जहां से उसे बाहर निकलने का रास्ता ही नहीं सूझ रहा है और वह उसी जंगल में जिंदगीभर भटकता रह कर कहीं मरखप जाएगा.

दामोदर को अपनी जिंदगी में सबकुछ अच्छा लगता है, लेकिन यह अच्छा नहीं लगता कि उसे बारबार पेशाब आए. ज्यादा पेशाब आने से उसे बारबार काम छोड़ कर जाना पड़ता है. उस के कारखाने के मालिक इस हरकत पर बड़ी बारीक नजर रखते हैं और वह तब मन ही मन भीतर से कट कर रह जाता है. महीने की 6,000 रुपए तनख्वाह पाने वाला दामोदर पिछले एक साल से ढंग से काम नहीं कर पा रहा है, तभी तो मालिक उस पर गुर्राते हैं.

कभीकभी तो दामोदर को खुद भी लगता है कि वह काम छोड़ दे और अपने घर पर ही रहे, लेकिन अगर वह इस काम को छोड़ देगा, तो खाएगा क्या?

दामोदर के बेटे अमन की उम्र भी महज 19 साल है. इतनी कम उम्र में ही उस ने पूरे घर की जिम्मेदारी संभाल ली है. ऐसी उम्र में दूसरे बच्चे जब बाप के पैसे पर कहीं किसी कालेज में मौज कर रहे होते हैं, उस समय अमन सारे घर को देखने लगा है. आखिर क्या होता है आजकल 6,000 रुपए में? आज अगर अमन को 15,000 रुपए नहीं मिल रहे होते, तो क्या दामोदर घर चला पाता? बिलकुल भी नहीं.

अमन हर महीने याद कर के दामोदर की दवा औनलाइन खरीद कर भेज देता है, नहीं तो अपनी तनख्वाह में तो दामोदर दवा तक नहीं खरीद पाता.

बाजार से दवा खरीदने जाओ तो बड़ी महंगी मिलती है. आजकल डाक्टर के केबिन के बाहर मरीजों से ज्यादा मैडिकल कंपनी के लड़के ही दिखाई देते हैं. मरीजों को ठेलतेठालते अंदर घुसने को बेताब दिखाई पड़ते हैं.

जो थोड़ीबहुत भी नैतिकता डाक्टरों में बची थी, वह इन कमबख्त दवा कंपनियों ने खत्म कर रखी है. रोज एक दवा कंपनी बाजार में उतर जाती है और उस के ऊपर दबाव होता है अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग का. लिहाजा, डाक्टर भी हथियार डाल ही देते हैं.

रोज एक नया चेहरा डाक्टर के केबिन में दाखिल हो जाता है और न चाहते हुए भी वह उन की दवा मरीजों को लिख देता है. दवाओं पर मनमाना दाम कंपनी लगाती है और कंपनी के टारगेट और मुनाफे के बीच फंस जाते हैं दामोदर जैसे लोग.

दामोदर को लगा कि वह कुछ देर और रुका, तो उस का पेशाब पैंट में ही निकल जाएगा. लोग उस की इस बीमारी पर बुरा मुंह बनाते हैं खासकर उस के साथ काम करने वाले.

दामोदर ने अपनी बहुत देर से दबी हुई इच्छा आखिरकार दिनेश को बताई. दिनेश उस का साथी है. रोज काम करने बैरकपुर से रघुनाथपुर वह दिनेश की मोटरसाइकिल से ही आताजाता है. उस के पास अपनी मोटरसाइकिल नहीं है. उस का घर दिनेश के घर के बगल में ही है.

‘‘दिनेश, मैं आता हूं पेशाब कर के,’’ इतना कह कर दामोदर निबटने के लिए जाने लगा.

‘‘अगर तुम्हें  पेशाब करने जाना ही था, तो कारखाना बंद होने से पहले ही चले जाते. और हां, अभी तुम थोड़ी देर पहले भी तो पेशाब करने

गए थे. पता नहीं, तुम को कितनी बार पेशाब लगता है…

‘‘एक हम लोग हैं, जो कारखाने में घुसने के बाद बहुत मुश्किल से 2 या ज्यादा से ज्यादा 3 बार जाते होंगे, लेकिन तुम को तो दिनभर में न जाने कितनी बार पेशाब लगता है. पता नहीं क्या हो गया है तुम्हें. किसी अच्छे डाक्टर को क्यों नहीं दिखाते?’’

दामोदर के चेहरे पर जमानेभर की उदासी उभर आई. उस के सूखे हुए बदरंग चेहरे पर नजर पड़ते ही दिनेश का दिल भी डूबने लगा और वह उस की परेशानी को सम?ाते हुए बोला, ‘‘ठीक है जाओ, लेकिन जरा जल्दी आना. आज मुझे अपने बेटे को पार्क ले कर जाना है. वह पिछले कई हफ्तों से कह रहा है.

‘‘अखिर इन मालिक लोगों के लिए सुबह 9 बजे से रात को 9 बजे तक काम करतेकरते अपने बालबच्चों को कहीं घुमाने का समय ही नहीं मिल पाता.’’

‘‘हां, आता हूं,’’ कह कर दामोदर जल्दी से पान मसाले की एक पुडि़या फाड़ कर अपने मुंह में डालता हुआ पेशाब करने चला गया.

दामोदर सेठ घनश्याम दास के यहां पिछले 20 सालों से काम कर रहा था. दिनेश अभी नयानया है. दोनों मोटरसाइकिल पर बैठे और अपने घर की ओर चल पड़े.

बात के छोर को दिनेश ने पकड़ा, ‘‘तुम्हें यह बीमारी कब से हुई है? तुम इस का इलाज क्यों नहीं कराते हो?’’

दामोदर बोला, ‘‘अरे भाई, इलाज की मत पूछो. कुछ दिन पहले मैं अपनी सोसाइटी के गेट पर खड़ाखड़ा ही बेहोश हो कर गिर पड़ा था. वह तो बगल के एक दुकानदार ने देख लिया और सोसाइटी के गार्ड की मदद से मुझे मेरठ के एक हौस्पिटल में भिजवाया.

‘‘7 दिनों तक हौस्पिटल में रहा. एक दिन का 15,000 रुपए चार्ज था वहां का. केवल 7 दिनों में ही एक लाख रुपए से ज्यादा उड़ गए. फिर मेरे लड़के ने दूसरे हौस्पिटल में मुझे भरती कराया, तब जा कर अभी मेरी हालत में कुछ सुधार आया. अगर वह दुकानदार और गार्ड़ न होते, तो आज मैं तुम्हारे सामने जिंदा न खड़ा होता.’’

‘‘और सारा खर्चा कहां से आया? सेठजी ने कुछ मदद की या नहीं?’’ दिनेश ने पूछा.

‘‘अरे, मुझे कहां होश था. लड़का बता रहा था कि उस ने मालिक को फोन कर के पैसे मांगे थे, लेकिन मालिक की सूई 2,000 रुपए पर अटकी हुई थी. बड़ी हीलहुज्जत के बाद उन्होंने 5,000 रुपए दिए थे.’’

‘‘बाकी के पैसों का इंतजाम कैसे हुआ?’’

‘‘कुछ अगलबगल से कर्ज लिया और बाकी मेरे ससुरजी ने तकरीबन 4 लाख रुपए दे कर मेरी मदद की. तब जा कर मेरी जान बची.’’

मोटरसाइकिल एक मैडिकल स्टोर के बगल से गुजरी. दामोदर ने दिनेश को गाड़ी रोकने के लिए कहा और वह लपकता हुआ मैडिकल स्टोर की तरफ बढ़ गया. उस की दवा खत्म हो गई थी.

दामोदर ने दुकानदार को परची दिखाई. दुकानदार ने परची को बड़े गौर से देखा और दवा निकाल कर उस ने काउंटर पर रख दिया और दामोदर से बोला, ‘‘इस बार भी कंपनी ने दवा का दाम बढ़ा दिया है. पिछली बार यह 250 रुपए की थी, अब 270 रुपए लगेंगे.’’

दामोदर ने जेब में हाथ डाला और पैसे गिने. उस के पास 200 रुपए थे. उसी में उसे रास्ते में घर के लिए एक लिटर दूध भी लेना था. पैसा नहीं बचेगा.

दामोदर ने दुकानदार से कहा, ‘‘फिलहाल तो मुझे 2 दिन की 2 गोली दे दो, बाकी जब तनख्वाह मिलेगी, तब आ कर ले जाऊंगा.’’

दवा ले कर बाकी पैसे दामोदर ने जेब के हवाले किए और वापस आ कर मोटरसाइकिल पर बैठ गया. रास्ते में उस ने एक लिटर दूध भी लिया.

घर पहुंच कर दामोदर ने हाथमुंह धोए और पलंग पर लेट गया. तब तक उस की पत्नी रुचि चाय बना कर ले आई. एक प्याली उस ने दामोदर को दी और दूसरी प्याली खुद ले कर चाय पीने लगी.

चाय पीतेपीते रुचि बोली, ‘‘आज मकान मालिक आया था और घर का किराया मांग रहा था. कह रहा था कि 2 महीने का किराया तो पूरा हो ही गया है और अब तीसरा महीना भी लगने वाला है. आप लोग जल्दी से जल्दी किराया दीजिए, नहीं तो घर को खाली कर दीजिए.’’

‘‘यह हरीश भी अजीब आदमी है. वह जानता है कि हम लोग दानेदाने को तरस रहे हैं. एक तो राशन की परेशानी, उस पर हर महीने का किराया.

‘‘इन ढाई महीनों में मैं पहले ही अपने जानपहचान के सभी लोगों से कर्ज ले चुका हूं. उस को भी सोचना चाहिए. दुकान बंद है. जब मालिक से पैसा मिलेगा, तब उस को किराया भी मिल ही जाएगा. हम कौन सा भागे जा रहे हैं?’’

दामोदर को लगा जैसे उस के सीने पर किसी ने बहुत भारी पत्थर रख दिया हो, जैसे उस की सांस फूलने लगी हो और उस का दम घुट जाएगा, वह वहीं पलंग पर खत्म हो जाएगा. लिहाजा, वह उठ कर पलंग पर बैठ गया.

‘‘आज मां का फोन भी आया था. कह रही थीं कि एक बार में न सही, किस्तों में ही 4 लाख रुपए थोड़ेथोड़े कर के लौटा दे. मेरी छोटी बहन निम्मो की शादी तय हो गई है. अगले साल कोई अच्छा सा लगन देख कर पिताजी निम्मो की शादी कर देना चाहते हैं. तुम से सीधेसीधे कहते नहीं बना तो उन्होंने मां से फोन कर के कहलवाया है,’’ रुचि ने डरतेडरते धीरे से कहा.

‘‘ठीक है, उन का भी कर्ज हम लोग चुका देंगे, लेकिन थोड़ा समय चाहिए,’’ दामोदर छत को घूरते हुए बोला.

रात काफी गहरा चुकी थी. रुचि कब की सो गई थी, लेकिन दामोदर को नींद नहीं आ रही थी. रहरह कर वह बदरंग हो चुकी दीवार और छत को घूरता जा रहा था. उसे कभीकभी यह भी लगता है कि दीवार और छत की तरह ही उस की जिंदगी भी बदरंग हो गई है. एकदम बेकार पपड़ी छोड़ती और सीलन से भरी हुई.

क्या पाया आज दामोदर ने 55 साल की उम्र में? कुछ भी तो नहीं. ताउम्र खटता रहा, लेकिन उस के हाथ क्या लगा? जीरो. एक ऐसी जिंदगी, जो खुशी से ज्यादा उसे दुख ही देती रही.

अचानक दामोदर को लगा कि उसे फिर से पेशाब लग गया है, तो वह उठ कर फारिग होने चला गया. आ कर वापस लेटा तो रुचि की नींद खुल गई.

रुचि ने उबासी लेते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ? नींद नहीं आ रही है क्या?’’

‘‘नहीं. लगता है कि पलंग में खटमल हो गए हैं और मुझे काट रहे हैं,’’ दामोदर बिछौना ठीक करता हुआ बोला.

रुचि ने ‘अच्छा’ कहा और उबासी लेते हुए फिर सो गई. दामोदर के बगल वाला कमरा उस की बेटी प्रीति का है. पापा के आने की आहट पा कर उस ने जल्दी से अपने कमरे की बत्ती बंद कर ली, लेकिन दामोदर के दिमाग में एक नई चिंता ने घर करना शुरू कर दिया.

आखिर इस साल प्रीति का 25वां लगने वाला है. आखिर कब तक जवान लड़की को कोई घर में रखेगा. कल को कुछ ऊंचनीच हो गई तो…

तमाम चिंताओं के बीच दामोदर रातभर करवटें बदलता रहा, लेकिन उसे नींद नहीं आई.

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