कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

बरसात तो रामपुर से ही शुरू हो गई थी, इसलिए मूड कुछ उखड़ाउखड़ा सा हो रहा था. महीने का दूसरा शनिवार आ रहा था. रविवार को मिला कर 2 छुट्टियां हो जाती थीं. सोचा कि गांव ज्यादा दूर तो नहीं है, चाची के पास जाना चाहिए.

चाची से मेरी बहुत पटती थी. चाची मुझ से बहुत प्यार करती थीं. हमेशा से मेरी हर छोटीबड़ी जरूरत का ध्यान रखती थीं.

चाची तो कई बार बुला चुकी थीं, लेकिन नौकरी के चलते मेरा गांव जाना हो नहीं पाता था.

आबोहवा के हिसाब से हिमाचली हमारे छोटे से गांव ‘गौरा’ का क्या कहना. साढ़े 7 हजार फुट की ऊंचाई से शुरू हो कर 9 हजार फुट तक में फैले इस इलाके को गरमियों के मौसम में स्वर्ग ही कहा जा सकता है. बस, जरा सी बरसात होने की देर है, झट से स्वेटरशौल निकल आएंगे.

मेरे पापा बिजली महकमे के फील्ड स्टाफ में थे, इसलिए उन को तो ड्यूटी पर हाजिर होना बहुत जरूरी था.

मैं बैंक में मुलाजिम थी, वह भी क्लर्क.

मेरे गांव जाने की बात सुन कर सभी चौंक गए. मैं ने इस बार अपनी सहेली तनु को भी अपने साथ गांव चलने के लिए तैयार कर लिया था.

सुनंदा चाची, मेरी सगी चाची जरूर थीं, पर वे चाची कम और सहेली ज्यादा थीं. मां ने बताया था, ‘जब सुनंदा ब्याह कर आई थी, तब ‘तू’ सिर्फ 5 साल की थी और सुनंदा चाची 14 की.’

इस तरह वे मुझे से ज्यादा बड़ी भी नहीं थीं. मां ने कई बार मुझे दुनियादारी सिखाने और चाची को चाची समझाने की सीख देने की कोशिश की, लेकिन हर बार चाची आड़े आ जातीं. शायद उन्हें अपना छिनालुटा बचपन याद आता होगा.

चाची मां से कहती थीं, ‘जाने दो न दीदी, बच्ची है. हमारे दम पर लापरवाही नहीं करेगी, तो फिर किस के दम पर करेगी?’

मैं कई बार मां से सवाल कर बैठती, ‘मां, 14 साल की उम्र क्या किसी लड़की की शादी की उम्र होती है?’

‘बेटी, सब समयसमय की बात है. जब हम लोगों की शादियां हुई थीं, उस समय 14 साल की लड़की जवान होती थी, आज बच्ची होती है,’ कहते हुए मां एक ठंडी सांस भर कर रह जातीं.

अपनी यादों के साथ बस में मैं और तनु बातचीत कर ही रही थीं कि अचानक बस झटके से रुक गई. आगे बहुत सी गाडि़यां सड़क पर खड़ी थीं. पता चला कि आगे सड़क टूटी हुई है.

शहर से गांव महज 16 किलोमीटर ही तो था, लेकिन अब मुझे अफसोस होने लगा कि मैं ने क्यों किसी की बात पर ध्यान नहीं दिया और अपने साथ तनु को भी फंसा दिया.

मैं ने तनु की तरफ देखा. मुझे लग रहा था कि अब वह भड़क जाएगी, लेकिन उस ने हंस कर कहा, ‘‘चलो, नीचे उतर कर देखते हैं कि माजरा क्या है?’’

हमारे पास छोटेछोटे बैगों में एकएक सूट और छोटे बच्चों के लिए थोड़ी सी टौफियां थीं. हम ने बैग उठा कर कंधे पर लटका लिए और बस से नीचे उतर गईं.

बस से आगे खड़े ट्रक को पार करने के बाद हम ने देखा कि सड़क पर ढेर सारा मलबा गिरा हुआ था, जिसे मजदूर साफ कर रहे थे. वहां खड़े जूनियर इंजीनियर ने बताया कि इसे साफ करने में कम से कम 2 दिन तो लगेंगे ही, मतलब 2 दिन तक बसें बंद.

हम ने देखा कि मलबे के दूसरी ओर भी उतनी ही गाडि़यां खड़ी थीं. हमें लगा कि अब घर तक पैदल ही जाना पड़ेगा, जो कि वहां से 8 किलोमीटर दूर है.

अभी हम लोग आगे चल ही रहे थे कि पीछे से तकरीबन भाग कर आने वाले मुसाफिरों ने बताया कि इस ओर खड़ी बस हम लोगों को ले जाएगी और हमारे वाली बस इस बस की सवारियों को रामपुर ले जाएगी.

थोड़ी ही देर में उधर के सारे मुसाफिर इधर की बस में बैठ चुके थे. हम आधे घंटे बाद घर में थीं.

चाची हमें देख कर बहुत खुश हुईं. उन्होंने मेरी मनपसंद खीर बना दी थी. पहाड़ी उड़द की दाल और मीठा चावल बनाया था. चाची को पता था कि मीठे चावल मुझे बहुत पसंद हैं.

खाना खा कर हम लोग चाची के कमरे में ही आ धमके थे और उन के डबल बैड पर बैठ गए. चाची भी हमारे साथ ही आ बैठी थीं. हम लोग बहुत देर तक बातें करते रहे. पूरे शहर के, आसपास के 10 गांवों के किस्सों को हम ने आपस में बांटा. चाची थकी हुई थीं. बरसात के चलते हम लोग कुछ जल्दी सो गए.

हमें सोए अभी मुश्किल से आधा घंटा ही हुआ होगा कि बाहर से किसी के पुकारने की आवाज आई, ‘‘कोई है? दरवाजा खोलिए…’’

आधी रात, जोर की बरसात, पहाड़ का मौसम… इस समय कौन होगा?

चाची उठतीं, इस से पहले मैं बोल उठी, ‘‘आप आराम करिए चाची. मैं देखती हूं.’’

पर मैं उठती, इस से पहले ही साथ वाले कमरे का दरवाजा खुला और

चाची का 17 साला बेटा हरीश बाहर निकल आया और बोला, ‘‘कौन है इतनी रात को?’’

‘‘बाबूजी, हम मुसाफिर हैं. रामपुर जा रहे थे. जोर की बरसात हो रही है. रातभर के लिए थोड़ी सी सोने के लिए जगह दे दीजिए. सुबह होते ही हम चले जाएंगे. आप की बड़ी दया होगी,’’ अंधेरे में एक आवाज उभरी.

‘‘रामू…’’ हरीश हैरान होते हुए बोला, ‘‘तू इस समय कहां से आ

रहा है?’’

‘‘अरे साहब, यह आप का घर है. मुझे तो पता ही नहीं था. चलो, अच्छा हुआ. अब हमें रातभर के लिए रहने को जगह मिल जाएगी.’’

‘‘कौन है हरीश?’’ चाची ने तेज आवाज लगाई.

‘‘कोई नहीं है मां, तुम सो जाओ भीतर जा कर,’’ हरीश ने भीतर की ओर देखते हुए कहा, पर हम तीनों तो बाहर निकल आई थीं.

नीचे बाहर खुले आंगन में मूसलाधार बरसात में भीगते हुए 3 शख्स खड़े थे, जो सर्दी से ठिठुर भी रहे थे.

‘‘पर तू ने मेरी बात का जवाब नहीं दिया रामू,’’ हरीश ने हमें देख कर भी अनदेखा कर दिया.

‘‘साहब, मैं काम से मशनू गांव गया था. वापस रामपुर लौटने में रात तो हो ही गई थी, पर मैं ने सोचा कि कोई बात नहीं, टौर्च है, चले जाएंगे.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...