लेखक- नीरज कुमार मिश्रा
‘‘अरे, आओ रे छंगा… गले लग जाओ हमारे… आज कितने बरसों के बाद तुम से मुलाकात हो रही है… कितने दुबले हो गए हो तुम… खातेवाते नहीं हो क्या?’’ बीरू ने अपने भाई से कहा.
‘‘हां भाई बीरू… तुम तो जानते हो… इस खेतीकिसानी का काम करने के बाद कमबख्त चूल्हाचौका तो होने से रहा हम से… दिनभर की मेहनत के बाद जो भी बन पड़ता है बना लेते हैं और खा कर सो जाते हैं.’’
‘‘कोई बात नहीं छंगा भैया… अब हम आ गए हैं… कामधाम में तुम्हारा हाथ बंटाएंगे और तुम्हारी भाभी तुम को खूब दूधमलाई खिलाएंगी… और ये तुम्हारी 2 भतीजियां हैं, इन के साथ खूब खुश रहोगे तुम भी और हम भी.
‘‘हम दोनों भाई मिल कर काम करेंगे, तो हमारी खेती सोना उगलेगी सोना,’’ कह कर एक बार फिर से बीरू ने छंगा को गले लगा लिया.
बीरू और छंगा दोनों जुड़वां भाई थे. उन के मांबाप की मौत पहले ही हो चुकी थी.
बचपन से ही बीरू को शहर जाने का शौक था, इसलिए वह गांव की ही एक लड़की से शादी करने के बाद अपनी बीवी को ले कर शहर निकल गया था और खेतीबारी का काम अकेले छंगा के सिर पर आ गया था.
अभी तक छंगा ही इस पूरी खेतीबारी का मालिक था. उस ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि बीरू किसी दिन शहर को छोड़ कर गांव में भी रहने के लिए आ सकता?है, इसलिए उस ने बातोंबातों में ही बीरू से पूछा, ‘‘तो भैया… क्या शहर वाला मकान, जो किराए पर लिए थे, वह छोड़ दिए हैं आप?’’
‘‘अरे, हां रे… वह सब हम छोड़ के आए हैं… किराए का मकान, नौकरी, सबकुछ… अरे, जब गांव में ही अपनी इतनी सारी जमीन पड़ी हुई?है, तब किसी दूसरे की हांहुजूरी क्या करनी?’’ बीरू ने साफसाफ कह दिया था.
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अभी तक तो छंगा ही इस सारी खेती का मालिक बना बैठा था, पर अब अचानक से बीरू का वापस गांव में आ कर बसने की बात करना उसे बिलकुल सुहा नहीं रहा था.
बीरू की पत्नी का नाम धनिया था. सांवला रंग, तीखे नैननक्श, सांचे में ढला हुआ शरीर. उसे देखने से लगता ही नहीं था कि वह 2 बच्चों की मां है.
धनिया भी गांव में ही पलीबढ़ी थी, पर जब उसे बीरू अपने साथ ब्याह कर शहर ले गया, तो उस ने साड़ी पहनना सीख लिया था.
गांव की लड़की पर जब शहरीपन का रंग चढ़ गया, तो एक अलग किस्म की नजाकत आ गई थी धनिया में. अब जब वह साड़ी बांध कर उस पर खुली पीठ वाला तंग ब्लाउज पहन कर निकलती तो गांव के कुंआरे लड़के तो होश खो ही बैठते, बल्कि शादीशुदा और बूढ़े भी ललचाई नजरों से उसे घूरते रहते थे.
एक दिन की बात है. शाम के समय बीरू और धनिया खेत की तरफ टहलने के लिए निकले थे कि तभी किसी ने धनिया पर छींटाकशी की, ‘‘अरे, तू शहर की है गोरी या गांव की है छोरी. एक बार कलेजे से हमारे लग जा, तो मैं आज मना लूं होली…’’
‘‘तुम लोगों को शर्म नहीं आती इस तरह से एक औरत को छेड़ते हुए,’’ धनिया ने पलट कर देखा, तो 3-4 मनचलों का एक ग्रुप बैठा हुआ था.
बीरू को मामले को भांपने में देर नहीं लगी. उस की त्योरियां चढ़ गईं और मुट्ठियां भिंच गईं. वह आगे बढ़ा और उस ग्रुप में सब से आगे खड़े आदमी का कौलर पकड़ लिया और आननफानन में 1-2 घूंसे रसीद कर दिए.
इस से पहले कि लड़ाई आगे बढ़ती, वहां पर छंगा आ गया और हाथ जोड़ कर उन मनचलों के सरदार से माफी मांगने लगा.
‘‘पर छंगा, तुम इस से माफी क्यों मांग रहे हो? इस ने तो तुम्हारी भाभी को छेड़ा है…’’ बीरू बिफर रहा था.
‘‘अरे नहीं भैया, आप को कोई गलतफहमी हुई होगी… ये तो यहां के बहुत भले लोग हैं. और वैसे भी ये यहां के होने वाले मुखिया हैं. इन से कोई झगड़ा मोल नहीं लेता है,’’ अभी छंगा बीरू को समझा ही रहा था कि मनचलों का सरदार, जिस का नाम कालिया था, गरज उठा, ‘‘छंगा, यह तुम्हारा भाई नहीं होता, तो आज यह अपनी टांगों पर चल कर अपने घर नहीं जा पाता.’’
‘‘कोई बात नहीं भैया… ये अभी नएनए आए हैं… आप के बारे में पता नहीं था… आगे से ऐसा नहीं होगा,’’ छंगा ने बात को ज्यादा तूल नहीं दिया.
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अगले दिन छंगा बीरू को अपने खेत दिखाने ले गया. बीरू की खुशी का ठिकाना नहीं था, ‘‘अब तो दोनों भाई जम कर मेहनत करेंगे और इस जमीन से सोना उपजाएंगे,’’ कह कर बीरू ने खेत की मिट्टी उठा कर छंगा के माथे पर तिलक कर दिया और अपने माथे पर भी मिट्टी रगड़ ली थी.
‘‘ठीक है भैया, आप खेत में काम करो… हम जरा मुखियाजी के घर से खाद की बोरी उठा कर ले आते हैं,’’ कह कर छंगा वहां से चला गया.
बीरू तनमन से मेहनत करने में लग गया था और कोई फिल्मी गाने की धुन भी गुनगुना रहा था…
‘धांय’ की आवाज के साथ एक गोली ठीक बीरू के सीने में आ लगी थी और वह वहीं खेत में गिर गया.
गांव में लोग पीठ पीछे बहुतकुछ बातें कर रहे थे और सभी लोग मन ही मन हत्यारे को भी पहचान रहे थे, पर सामने किसी की भी कहने की हिम्मत नहीं हो रही थी कि बीरू को गोली किस ने मारी है.
छंगा ने पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज कराई. पुलिस ने छानबीन भी की, पर सुबूतों की कमी में पुलिस को मायूस ही लौटना पड़ा.
इस पूरी दुनिया में अब धनिया बेसहारा हो गई थी. वह सफेद साड़ी में बिना किसी साजसिंगार के सूनीसूनी फिरती थी.
‘‘भाभी… हम से आप का यह रूप नहीं देखा जाता… हम आप को ऐसे नहीं रहने देंगे,’’ छंगा की आवाज में दर्द था.
‘‘क्या करेंगे… जब हमारी किस्मत में ही विधवा का रूप लिखा है तो… ऊपर वाले की मरजी के आगे भला किस की चली है…’’
‘‘यह किस्मतविस्मत हम नहीं जानते… पर, सोचो भाभी… अभी तुम्हारे सामने पहाड़ सी जिंदगी है… 2 छोटी बेटियां हैं… और फिर गांव के मनचलों से बचने के लिए भी तो किसी के नाम का सहारा तो चाहिए न,’’ छंगा बोले जा रहा था.
धनिया की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. उस की चुप्पी को छंगा ने हां समझा और पंचायत बुला कर धनिया से शादी कर के उसे सहारा देने की बात कही.
‘‘अगर इस मामले में धनिया को कोई एतराज नहीं है, तो हम पंचों को भला क्या एतराज होगा,’’ सरपंच ने कहा.
धनिया भी वहां मौजूद थी. गांव के मनचलों से बचने के लिए अगर उसे किसी के नाम का सहारा मिल रहा है, तो भला इस में बुराई ही क्या है, ऐसा सोच कर धनिया ने अपनी रजामंदी दे दी.
‘‘भाभी, तुम बच्चों को ले कर आराम से यहां सो जाओ, मैं बगल वाली कोठरी में जा कर सो जाता हूं,’’ छंगा ने कहा.
धनिया अपनी बेटियों को सीने से लगा कर सोती और छंगा दूसरी कोठरी में सोता रहा.
दोनों की शादी को 2 महीने बीत गए थे, पर छंगा ने अपने बरताव से कोई ऐसा काम नहीं किया था, जिस से धनिया को कोई एतराज होता. बात करते समय भी धनिया के चेहरे की तरफ न देख कर बिना नजरें मिलाए ही बात करता था छंगा और जिस्मानी संबंध बनाने की बात भी उस के मन में नहीं आई थी.
छंगा धनिया की बेटियों को खूब प्यार देता था. जब भी वह शहर जाता तो उन के लिए मिठाई जरूर ले आता था और अपने पास बिठा कर बारीबारी से खिलाता था.
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छंगा का अपनी बेटियों के प्रति ऐसा प्यार देख कर धनिया के मन को भी संतोष मिलने लगा था.
कुछ दिनों के बाद अचानक ही धनिया को बुखार आ गया. बुखार बहुत तेज था. छंगा तुरंत ही धनिया को शहर के डाक्टर से दवा दिलवा कर लाया.
दवा खा कर धनिया को कुछ राहत तो मिली, पर उस का शरीर अकसर ढीला रहता और नींद उसे घेरे रहती. शायद बुखार के चलते बदन में कमजोरी आ गई होगी, ऐसा सोच कर वह निश्चिंत थी.