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लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

‘‘अरे धनिया, आप चिंता क्यों करती हो… आप तो बस दवा खाओ और आराम करो… हम खाना भी बना लेंगे और बच्चों को भी संभाल लेंगे,’’ छंगा कह रहा था. उस की बात सुन कर खटिया पर लेटी हुई धनिया की आंखों में आंसू आ गए.

बीरू के मर जाने के बाद उस के हिस्से की जमीन धनिया के नाम कर दी गई थी. छंगा के मन में तो खोट था. वह उस जमीन को अपने नाम पर करा कर धनिया से छुटकारा पाना चाहता था, इसलिए एक दिन जब धनिया बुखार की दवा खा कर सो रही थी, तब धोखे से छंगा ने जमीन के कागजों पर धनिया का अंगूठा लगवा लिया.

शायद छंगा को इसी दिन का इंतजार ही था कि कागजों पर अंगूठा लग जाए और वह अकेला ही इस जमीन पर  राज करे.

जब कुछ दिनों बाद धनिया की सेहत में सुधार हो गया, तब उस ने गौर किया कि छंगा का उस के और उस की बेटियों के प्रति बरताव बदल सा गया है. जहां पहले वह बच्चियों के लिए खानेपीने की चीजें लाता था, वहीं अब वह खाली हाथ चला आता है और सीधे मुंह बात भी नहीं करता और उन्हें मारनापीटना भी शुरू कर दिया है.

‘‘अब तो तुम्हारा बुखार सही हो गया है… कुछ कामधाम भी किया करो… सारा दिन तुम्हारे बच्चे मुझे तंग करते रहते हैं और मेरे पैसे खर्च करवाते हैं. अब इन का और खर्चा मुझ से नहीं उठाया जाता,’’ छंगा गरज रहा था.

‘शायद बाहर की कुछ परेशानी होगी, तभी तो ऐसे कह रहा है छंगा, नहीं तो मीठा बोलने वाला छंगा इतना कड़वा क्यों बोलता,’ ऐसा सोच कर धनिया खुद ही खेत की तरफ सब्जी तोड़ने चल दी.

खेत पर पहुंचते ही उस की आंखें हैरत से फटी रह गईं. खेत में खड़े नीम के पेड़ की छांव में गांव के कुछ मुस्टंडे शराब और मांस खा रहे थे.

‘‘तुम लोग मेरे खेत में गंदगी क्यों फैला रहे हो… क्या तुम लोगों को और कोई जगह नहीं मिली… चलो, भागो यहां से,’’ धनिया चीख रही थी.

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‘‘तुम्हारा खेत… पर, यह खेत तो तुम अपनी मरजी से छंगा के नाम पर चुकी हो… और उसी ने हमें यहां बुला कर खानेपीने का इंतजाम करवाया है. अगर हमारी बात पर यकीन न आ रहा हो, तो पंचायत बुला कर पूछ लो,’’ उन में से एक ने धनिया से कहा.

धनिया ने उन लोगों को तो किसी तरह वहां से चलता किया, पर उन लोगों की बात उस के कानों में गूंजती रही.

धनिया घर लौटी, तो अपनी बेटियों को उस ने दरवाजे पर ही रोते पाया.

‘‘देखो अम्मां… पापा ने हमें मार कर घर से बाहर निकाल दिया है,’’ एक बेटी ने बताया.

धनिया का दिल दहल उठा था. उस ने बाहर से ही छंगा को आवाज लगाई.

‘‘अब मुझे तेरी जरूरत नहीं है… तू मेरी जिंदगी से चली जा, तुझ में है ही क्या? भला कोई 2 बेटियों की मां के साथ कैसे खुश रह सकता है,’’ छंगा अंदर से ही बोला और दरवाजा बंद  कर लिया.

रोती हुई धनिया पंचायत पहुंची. पंचों ने तुरंत ही छंगा को तलब किया और उस से पूछा कि जिस औरत के साथ अभी कुछ दिन पहले ही तुम ने ब्याह किया है, आज उस के साथ ऐसा सुलूक क्यों कर रहे हो?

‘‘भला मैं ऐसा सुलूक करने वाला कौन होता हूं… इस कागज पर खुद धनिया का अंगूठा लगा है और जिस में लिखा हुआ है कि मैं अब अपनी सारी खेती छंगा के नाम कर रही हूं और अपनी मरजी से छंगा का घर छोड़ कर जा रही हूं, इसलिए भविष्य में उसे मेरा पति और मुझे उस की पत्नी न समझा जाए,’’ कह कर छंगा ने कागज आगे बढ़ा दिया.

पंचों ने उन कागजों को उलटापलटा. कागज पर यही लिखा हुआ था, जिस के नीचे धनिया का अंगूठा भी लगा हुआ था.

‘‘तुम ने तो अपनी मरजी से ही ये सब किया है… यह अंगूठे का निशान तो तुम्हारा ही है न?’’ पंचों में से  एक ने कागज दिखाते हुए पूछा.

धनिया हैरान थी. अंगूठे का निशान तो उसी का था, पर भला वह क्यों ऐसा करने लगी? यह सोच कर वह परेशान हो उठी.

कागजों के आगे पंच भी मजबूर थे, इसलिए उन्होंने छंगा के हक में फैसला सुना दिया और धनिया सड़क पर आ गई.

रात हुई तो धनिया को डर लगने लगा. कुछ सोच कर वह बेटियों को ले कर अपने घर गई. दरवाजा अंदर से भिड़ा हुआ था. सामने छंगा बैठा हुआ ढेर सारे नोटों की गड्डियां गिन रहा था.

धनिया सन्न रह गई थी, उस की आंखें फटी की फटी रह गई थीं. आखिरकार आज से पहले इतना पैसा तो छंगा के पास नहीं देखा था उस ने.

‘‘ऐसे चुड़ैल की तरह क्या देख रही है… क्या कभी पैसा नहीं देखा… और फिर मेरे घर क्यों आई हो, जब तुझे पंचायत में शिकायत ले कर जाना ही है… अब मुझे तेरा साथ नहीं चाहिए,’’ छंगा ने धनिया को देख कर कहा.

‘‘मैं कोई भीख मांगने नहीं आई… मेरे हिस्से की जमीन…’’

‘‘तेरी कोई जमीन नहीं… और जो जमीन तू ने मेरे नाम कर दी थी, वह भी मैं ने कालिया को बेच दी है,’’ कह कर छंगा ने दरवाजा बंद कर दिया था.

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