‘‘ठीक है कम्मो, जरा देखभाल कर घर जाया करो रात को. आजकल ऐसा ही जमाना है.’’ ‘‘बाबूजी, मुझे अकेले कोई डर नहीं लगता. मैं ऐसे लोगों से बखूबी निबटना जानती हूं,’’ कम्मो ने राजेश की ओर देखते हुए कहा और कमरे से बाहर निकल गई. कुछ देर बाद राजेश उठे और दरवाजा बंद कर बिस्तर पर बैठ गए. राजेश की उम्र 62 साल हो चुकी थी. 2 साल पहले वे एक सरकारी महकमे से अफसर रिटायर हुए थे. परिवार में पत्नी कमला और 2 बेटे विकेश और विजय थे.

दोनों बेटों को पढ़ालिखा कर इंजीनियर बनाया. दोनों ने बेंगलुरु में नौकरी कर ली. दोनों की शादी कर दी गई और वे अपनी पत्नियों के साथ खूब मजे में रह रहे थे. जब तक पत्नी कमला का साथ रहा, राजेश को कुछ भी कमी महसूस न हुई. नौकरी के दौरान खूब पैसा कमाया. बड़ा 4 कमरों का मकान बना लिया. पिछले साल एक दिन कमला को हार्ट अटैक हुआ और अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ दिया. कमला के मरने के बाद राजेश बिलकुल अकेले हो गए. दिन तो किसी तरह कट जाता, पर रात काटनी बहुत मुश्किल हो जाती. विकेश और विजय ने बारबार फोन कर के उन को अपने पास बुला लिया. दोनों के घर एकएक महीना बिता कर वे फिर यहां अपने मकान में आ गए. सुबह का नाश्ता, सफाई, पोंछा व कपड़ों की धुलाई का काम जमुना करती थी. दोपहर व शाम का खाना शांति बनाती थी. एक दिन राजेश ने कहा था, ‘जमुना, मैं चाहता हूं कि तुम किसी ऐसी काम वाली को ढूंढ़ दो जो सुबह 9 बजे से रात के 8 बजे तक रहे. सुबह नाश्ते से रात के खाने तक के सारे काम कर सके.’ ‘ठीक है बाबूजी, मैं तलाश करूंगी,’ जमुना ने कहा था. एक दिन सुबह जमुना एक औरत को ले कर आई. जमुना ने कहा, ‘बाबूजी, यह कम्मो है. जब मैं ने यहां काम के बारे में बताया तो यह तैयार हो गई. यह सुबह 9 बजे से रात के 8 बजे तक रहेगी.’ राजेश ने कम्मो की तरफ देखा.

ये भी पढ़ें- पहला विद्रोही

सांवला रंग, गदराया बदन, मोटीमोटी आंखें. उम्र तकरीबन 30-32 साल. माथे पर बिंदी और मांग में सिंदूर. अगले दिन सुबह कम्मो आई तो राजेश अखबार पढ़ रहे थे. कम्मो ने ‘नमस्ते बाबूजी’ कहा. ‘आओ कम्मो,’ राजेश ने उसे देखते हुए कहा, ‘बैठो.’ कम्मो वहां रखी कुरसी पर बैठ गई. ‘कम्मो, जरा अपने बारे में कुछ बताओ?’ राजेश ने पूछा. ‘बाबूजी, मेरा नाम कामिनी है, पर सभी मुझे कम्मो कहते हैं. मैं बिहार में पटना के पास ही एक गांव की रहने वाली हूं. मैं ने 10वीं तक पढ़ाई की है. मैं ने अपने मातापिता को नहीं देखा. वे दोनों मजदूरी करते थे. एक दिन एक मकान का लैंटर टूट गया तो उस में दब कर दोनों मर गए. मकान मालिक ने मेरे मामा को 3 लाख रुपए दे दिए थे तब मेरी उम्र 5 साल थी. मामामामी ने ही पाला है. ‘18 साल की उम्र में मामा ने मेरी शादी पास के ही एक गांव में कर दी. शादी के 3 महीने बाद मेरे पति की सड़क हादसे में मौत हो गई. कुछ समय बाद देवर मोहन के साथ मेरी शादी हो गई. वह शहर में एक फैक्टरी में काम करता था. रोज सुबह चला जाता और शाम को लौटता था. ‘मेरी सास नहीं थी. एक दिन दोपहर का खाना खा कर मैं आराम कर रही थी तो अचानक ही ससुर ने मुझे दबोच लिया. मैं ने बहुत मना किया, पर वह नहीं माना. मैं ने इस बारे में पति मोहन को बता दिया. ‘उन दोनों की लड़ाई हो गई. इस लड़ाई में ससुर के हाथ से मोहन की हत्या हो गई. ससुर को पुलिस ने पकड़ लिया. मैं वहां उस घर में अकेली कैसे रहती, इसलिए मैं अपने मामामामी के पास लौट गई. ‘कुछ महीने बाद एक आदमी मामा के घर आया. वह आदमी मेरी तरफ ही देख रहा था. मामा ने मुझे बताया कि यह किशनलाल है.

ये भी पढ़ें- महापुरुष

मुजफ्फरनगर का रहने वाला है. यह सब्जी बेचने का काम करता है. इस की घर वाली को पीलिया हो गया था. इलाज कराने पर भी वह बच नहीं सकी. घर में 20 साल का बेटा कमल है. वह 7वीं क्लास तक ही पढ़ सका, किसी दुकान पर नौकरी करता है. ‘मामा ने एक मंदिर में मेरी शादी किशनलाल से कर दी. मैं अपने पति के साथ यहां आ गई. मुझे बाद में पता चला कि मेरे मामा ने इस शादी के लिए 40,000 रुपए लिए थे. ‘मेरी शादी कर के मामा बहुत खुश था कि रुपए भी मिल गए और छाती पर बैठी मुसीबत भी टल गई. ‘एक दिन मुझे पता चला कि मेरे ससुर को हत्या के जुर्म में उम्रकैद की सजा हो गई है. यहां सब ठीकठाक चल रहा था. पहले तो मेरा पति कभीकभार शराब पी कर आता था, पर धीरेधीरे उसे रोज पीने की आदत पड़ गई. वह जुआ भी खेलने लगा था. ‘पति ने रेहड़ी लगानी बंद कर दी. मंडी वालों का कर्ज सिर पर चढ़ गया था. घर में जो जमापूंजी, जेवर वगैरह रखे थे, मंडी वालों को दे कर पीछा छुड़ाया. इस के बाद मैं ने घरों में काम करना शुरू कर दिया,’ कम्मो ने अपने बारे में बताया. ‘ठीक है कम्मो, अब तुम घर का काम संभालो.’ ‘बाबूजी, इतनी देर तक अपनी दुखभरी कहानी सुना कर मैं ने आप के सिर में दर्द कर दिया न? आप कहें तो सब से पहले मैं आप के लिए बढि़या सी चाय बना दूं?’ कम्मो ने हंसते हुए कहा था. राजेश मना नहीं कर सके थे. कम्मो ने घर में काम करना शुरू कर दिया. सुबह नाश्ते से ले कर रात के खाने तक सभी काम बहुत सलीके से करती थी. उसे राजेश के यहां काम करते हुए 2 महीने हो चुके थे. अकसर फर्श की सफाई करते हुए जब कम्मो पोंछा लगाती तो उस के उभार ब्लाउज से बाहर निकलने को हो जाते. राजेश कुरसी पर बैठे हुए अखबार पढ़ रहे होते तो उन की नजरें उभारों पर टिक जातीं.

वे इधरउधर देखने की कोशिश करते, पर फिर भी उन की नजर कम्मो की गदराई जवानी पर आ कर ठहर जाती. वे अखबार की आड़ ले कर एकटक उसे देखते रहते. कम्मो भी यह सब जानती थी कि बाबूजी क्या देख रहे हैं. वह चुपचाप अपने काम में लगी रहती मानो उसे कुछ पता ही न हो. एक दिन कम्मो ने राजेश से कहा, ‘‘बाबूजी, कमल के पापा की तबीयत ठीक नहीं चल रही है. उस को किसी अच्छे डाक्टर को दिखाना पड़ेगा.’’ ‘‘क्या हो गया है उसे?’’ ‘‘भूख नहीं लगती. कमजोरी भी आ गई है. महल्ले का डाक्टर कह रहा था कि शराब पीने के चलते गुरदे खराब हो रहे हैं.’’ ‘‘जब इतनी शराब पीएगा तो गुरदे तो खराब होंगे ही.’’ ‘‘बाबूजी, मुझे कुछ पैसे दे दीजिए.’’ ‘‘कितने पैसे चाहिए?’’ ‘‘5,000 रुपए दे दीजिए. डाक्टर की फीस, टैस्ट, दवा वगैरह में इतने तो लग ही जाएंगे.’ ‘‘ठीक है, रात को जब घर जाएगी तो मुझ से लेती जाना.’’ कम्मो ने चेहरे पर मुसकान बिखेर कर कहा, ‘‘बाबूजी, आप बहुत अच्छे इनसान हैं जो हम जैसे गरीबों की कभी भी मदद कर देते हो.’’ ‘‘जब तुम यहां इतना अच्छा काम कर रही हो तो मेरा भी फर्ज बनता है कि मैं तुम्हारी मदद करूं,’’ राजेश ने कम्मो की तरफ देखते हुए कहा. कुछ दिन बाद राजेश का एक पुराना दोस्त मदनलाल दिल्ली से आया. वह उन का पुराना साथी था.

ये भी पढ़ें- तिकोनी डायरी

वह भी सरकारी नौकरी से रिटायर हुआ था. कम्मो चाय व कुछ खाने का सामान ले कर आई और मेज पर सजा कर चली गई. चाय पीतेपीते मदनलाल ने कहा, ‘‘यार राजेश, यह नौकरानी तो एकदम पटाखा है. कहां से ढूंढ़ कर लाए हो?’’ ‘‘बस अपनेआप ही मिल गई.’’ ‘‘तुम्हारी किस्मत तो बहुत ही तेज है डियर, जो ऐसी जबरदस्त नौकरानी मिल गई. एकदम हीरोइन लगती है. अगर मैं तुम्हारी जगह होता तो ऐसी मस्त नौकरानी से खूब मजे लेता. अरे भाई, हमारे पास रुपएपैसे की कमी नहीं है. हमारी औलादें खूब मजे में हैं. वे बढि़या नौकरी पर हैं. हम क्यों और किस के लिए कंजूसी करें? हमें भी तो अपनी बाकी जिंदगी हंसीखुशी और मजे में गुजारनी चाहिए.’’ राजेश ने कोई जवाब नहीं दिया. कुछ देर बाद कम्मो चाय के खाली बरतन उठाने आई तो मदनलाल उस की तरफ एकटक देखता रहा. ‘‘अच्छा राजेश डियर, मैं चलता हूं,’’ एक घंटे बाद मदनलाल बोला. ‘‘वापस दिल्ली कब जाना है?’’ ‘‘शाम को ही लौट जाऊंगा. अगर तुम रात को कम्मो को यहीं रोक सको तो मैं भी रुक जाऊंगा.’’ ‘‘यार, लगता है कि तुम मेरी नौकरानी को भगा कर ही रहोगे.’’ ‘‘यह तुम्हें छोड़ कर कहीं नहीं जाएगी, क्योंकि तुम जैसे इनसान बहुत कम हैं जो किसी की मजबूरी का फायदा नहीं उठाते. यह भी हो सकता है कि यह किसी दिन तुम्हारी मजबूरी का फायदा उठा ले.’’ ‘‘वह कैसे?’’ ‘‘मैं क्या बताऊं, यह तो समय ही बताएगा,’’ मदनलाल ने कहा और हंसते हुए राजेश से विदा ली. रात का खाना खा कर राजेश आराम कुरसी पर बैठे थे. उन के दिमाग में मदनलाल की बातें घूमने लगीं. उन की आंखों के सामने कम्मो का हंसतामुसकराता चेहरा, गदराया बदन, ब्लाउज से बाहर निकलते उभार आने लगे. दिल और दिमाग में अजीब सी बेचैनी होने लगी. वे आराम कुरसी पर सिर पकड़ कर बैठ गए. कुछ देर बाद कम्मो ने कमरे में आ कर कहा, ‘‘क्या हुआ बाबूजी? लगता है, आप की तबीयत खराब है.’’ ‘‘सिर में दर्द हो रहा है,’’ राजेश ने झूठ बोल दिया.

‘‘मैं आप का सिर दबा देती हूं. आप बिस्तर पर लेट जाइए. माथे पर बाम भी लगा देती हूं.’’ राजेश बिस्तर पर लेट गए. कम्मो ने उन के माथे पर बाम लगाते हुए कहा, ‘‘बाबूजी, यह सिरदर्द ज्यादा सोचने से होता है, आप ज्यादा न सोचा कीजिए. भला आप को क्या कमी है? आप को किस बात की चिंता है? फिर इतना क्यों सोचते हैं आप?’’ राजेश के एक हाथ की उंगलियां कम्मो की कमर पर चलने लगीं. ‘‘बाबूजी, यह क्या कर रहे हैं आप?’’ कम्मो ने राजेश की ओर देखते हुए कहा. ‘‘कुछ नहीं कम्मो, आज मन बहुत बेचैन हो गया है,’’ राजेश ने धड़कते दिल से कम्मो को अपनी ओर खींच लिया. कम्मो ने मना नहीं किया. कुछ देर बाद कम्मो ने कमरे से बाहर निकलते हुए कहा, ‘‘अच्छा बाबूजी, अब मैं चलती हूं.’’ ‘‘ठीक है, जाओ,’’ राजेश ने कहा और बिस्तर पर लेटेलेटे वे बहुत देर तक उन पलों के बारे में सोचते रहे जो अभी कम्मो के साथ बिताए थे. सुबह कम्मो आई तो एकदम नौर्मल थी. रात की घटना की कोई नाराजगी उस के चेहरे पर न थी. यह देख राजेश को तसल्ली हुई कि कम्मो नाराज नहीं है. एक रात कम्मो ने घर जाने से पहले राजेश के पास आ कर कहा, ‘‘बाबूजी, आप से एक बात कहनी थी.’’ ‘‘हांहां, कहो.’’ ‘‘पहले यह बताइए कि आप की तबीयत तो ठीक है न? कहो तो आप का सिर दबा दूं?’’ कम्मो ने राजेश की ओर देखा. राजेश ने उसे अपनी तरफ खींच लिया. कुछ देर बाद कम्मो बिस्तर से उठ कर जाने लगी तो राजेश ने पूछा, ‘‘तुम कुछ कह रही थी न कम्मो?’’ ‘‘हां बाबूजी, कमल फलों की रेहड़ी लगाना चाहता है.

ये भी पढ़ें- यह कैसी विडंबना

अगर आप कुछ मदद कर दें तो वह रेहड़ी लगा लेगा.’’ ‘‘कितने रुपए में लग जाएगी रेहड़ी?’’ ‘‘तकरीबन 15,000 रुपए…’’ ‘‘ठीक है, कल ले जाना रुपए.’’ ‘‘बाबूजी, आप बहुत अच्छे इनसान हैं,’’ कम्मो ने कहा और मुसकराते हुए चली गई. एक महीने बाद काम करतेकरते कम्मो को अचानक उलटी हो गई. राजेश ने कम्मो को बुला कर पूछा, ‘‘क्या बात है कम्मो? तबीयत तो ठीक है न?’’ ‘‘बाबूजी लगता है कि मैं पेट से हो गई हूं. मुझे महीना भी नहीं हुआ है.’’ ‘‘तुम डाक्टर से चैकअप कराओ. शाम को नर्सिंग होम में चली जाना. नर्सिंग होम से सीधे अपने घर पहुंच जाना. मुझे मोबाइल पर बता देना जैसा भी डाक्टर बताता है.’ रात को राजेश को कम्मो ने सूचना दे दी कि वह पेट से हो गई है. अगले दिन सुबह जब कम्मो काम करने आई तो राजेश ने उसे अपने कमरे में बुलाया. कम्मो बोली, ‘‘बाबूजी, आप ने मेरे साथ संबंध बनाए तो उसी के चलते मैं पेट से हो गई हूं. अब मेरे पेट में आप का बच्चा पल रहा है.’’ ‘‘कम्मो, यह तुम कैसे कह सकती हो कि यह मेरा ही बच्चा है, यह तुम्हारे पति का भी तो हो सकता है.’’ ‘‘बाबूजी, कमल का पापा तो 3 महीने से मेरे पास आया ही नहीं, वह बीमार रहता है.’’ ‘‘कम्मो, मेरा कहा मानोगी…’’ ‘‘कहिए बाबूजी?’’ ‘‘तुम अपना बच्चा गिरवा लो.’’ ‘‘नहीं बाबूजी, मैं बच्चा नहीं गिराऊंगी. मैं हत्या नहीं कराऊंगी. चाहे यह बेटा हो या बेटी, मैं इसे पालपोस कर बड़ा करूंगी. ‘‘मेरा कहना मान लो कम्मो, तुम बच्चा गिरा दो.’’ ‘‘नहीं बाबूजी, आप मुझे ऐसी सलाह न दें. इस के पैदा होने पर मैं सभी को बता दूंगी कि इस का पापा कौन है, क्योंकि इस की शक्ल आप से मिलेगी.’’ ‘‘अगर मुझ से शक्ल न मिली तो…?’’ ‘‘तो मैं इतनी भोली भी नहीं हूं जो चुपचाप बैठ जाऊंगी. मैं सब से पहले इस बच्चे का डीएनए टैस्ट कराऊंगी और मीडिया को बता दूंगी कि यह बच्चा भी आप की जायदाद का वारिस है,’’ कम्मो ने राजेश की ओर देखते हुए कहा.

उस के चहरे पर मुसकान थी. यह सुन कर राजेश को पसीना आ गया. वे तो कम्मो को बहुत भोली समझ रहे थे, पर यह तो जरूरत से ज्यादा समझदार व चालाक है. इस ने तो उसे ही जाल में फंसा दिया है. राजेश ने कहा, ‘‘सुनो कम्मो, जो होना था हो गया. अब तुम यह बताओ कि इस मुसीबत से बचने के लिए मैं तुम्हें कितने रुपए दे दूं?’’ ‘‘बाबूजी, मुझे आप पर तरस आता है. आप बस 5 लाख रुपए दे दो. मैं बच्चा गिरवा दूंगी.’’ ‘‘5 लाख रुपए…? क्या कह रही हो तुम? पागल हो गई हो क्या?’’ ‘‘बाबूजी, मैं नहीं उस रात तो आप पागल हो गए थे जिस का नतीजा मेरे पेट में पल रहा है.’’ ‘‘मैं तुम्हें 5 लाख तो नहीं, 50,000 रुपए दे सकता हूं.’’ ‘‘बाबूजी, आप की इज्जत और आप के इस बच्चे की कीमत महज 50,000 ही है क्या?’’ इस के बाद सौदेबाजी हुई और कम्मो 2 लाख रुपए लेने पर मान गई. राजेश ने दोपहर को बैंक से 2 लाख रुपए निकाल कर कम्मो को दे दिए. ‘‘बाबूजी, मैं कल ही सफाई करा लूंगी. इस के बाद 5-7 दिन मुझे आराम भी करना पड़ेगा.’’ ‘‘कोई बात नहीं, तुम अपने घर पर आराम कर लेना.’’ ‘‘मैं किसी दूसरी कामवाली को भेज दूंगी, ताकि आप को कोई परेशानी न हो.’’ ‘‘तुम किसी को न भेजना. मैं कुछ दिन के लिए बेंगलुरु चला जाऊंगा अपने बेटे के पास,’’ राजेश ने कुढ़ते हुए कहा. कम्मो चुपचाप काम में लग गई. राजेश ठगे से कुरसी पर बैठ गए. उन को अपने किए पर पछतावा हो रहा था. अपनी इज्जत बचाने के लिए उन्हें 2 लाख रुपए देने पड़े. कम्मो ने उस रात की भरपूर कीमत वसूली है. कुछ दिन बेटे के पास बेंगलुरु में रहने के बाद फिर वापस यहीं लौटना है. यहां लौट कर फिर अकेलापन घेर लेगा.

ये भी पढ़ें- क्या आप का बिल चुका सकती हूं

अब तो इस अकेलेपन को दूर करने का कुछ न कुछ उपाय करना ही होगा. अगले दिन से ही राजेश ने अखबार व इंटरनैट पर ऐसे वैवाहिक विज्ञापन देखने शुरू कर दिए जिन में विधवा, छोड़ी गई व तलाकशुदा औरतों को जीवनसाथी की तलाश थी. उन को लग रहा था कि बाकी की जिंदगी अकेले बिना साथी के काटना बहुत मुश्किल होगा. द्य

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...