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15साल पहले… उस समय मैं ने उसे एक शाम एक गंदी नाली में औंधे मुंह पड़े देखा था. उस ने इतनी दारू पी ली थी कि उसे कुछ होश न था. शराबी से आदमी वैसे ही घबराता है, इसलिए कोई उसे गंदी नाली में से भी खींचने को तैयार न था. तब मैं ने उस पर तरस खा कर और इनसानियत का फर्ज निभाते हुए नाली में से खींच कर सड़क पर डाल दिया था. किसी ने पैर से उसे सीधा किया. उस का चेहरा कीचड़ से सना हुआ था, फिर भी भीड़ में से हर कोई उसे पहचानने की कोशिश करने लगा. ‘‘अरे, यह तो राजपाल प्लंबर है. गली नंबर 8 वाला,’’ भीड़ में से एक ने चौंकते हुए कहा.

तब किसी ने जा कर राजपाल के घर सूचना दी. राजपाल की पत्नी अपने बच्चे को गोद में लिए दौड़ी चली आई थी. महल्ले वालों ने उस के कहने पर राजपाल को एक रिकशा में डाल कर उस के घर पहुंचाया था. उस दिन भीड़ में कोई ऐसा न था, जिस ने राजपाल को उस की इस हालत पर कोसा न हो और उस की पत्नी पर तरस न खाया हो. 15 साल पहले घटी इस घटना को मैं तकरीबन भूल चुका था, लेकिन जब प्लंबरी का सामान बेचने वाले लालाजी से मैं ने किसी प्लंबर का नंबर देने को कहा,

तो उन्होंने खुद फोन पर बात कर के कहा, ‘‘आप के महल्ले का ही राजपाल प्लंबर है. रामदीन हलवाई की दुकान के सामने वह मिल जाएगा. मैं ने बोल दिया है और यह उस का नंबर है.’’ ‘राजपाल’ कुछ सुनासुना सा नाम लग रहा था. फिर यह सोच कर कि राजपाल नाम के न जाने कितने लोग हैं, मैं मोटरसाइकिल उठा कर चल दिया. रामदीन हलवाई की दुकान के सामने जैसे ही मैं ने मोटरसाइकिल रोकी, तो एक आदमी मुसकराता हुआ मेरी ओर आया. मैं ने अंदाजा लगाया कि यही राजपाल होगा. ‘‘तुम्हारा चेहरा कुछ जानापहचाना सा लग रहा है,’’ मैं ने उस के पास आने पर कहा.

‘‘बाबूजी, मैं राजपाल प्लंबर. आप मुझे पहचानें या न पहचानें, मैं आप को अच्छी तरह पहचानता हूं. आप ने तो मुझे एक ही बार देखा है, लेकिन मैं ने आप को कई बार देखा है.’’ उस को ऐसे बातें करते देख कर मैं मुसकरा पड़ा, फिर मैं ने उस से कहा, ‘‘कुछ याद तो दिलाओ?’’ ‘‘बाबूजी याद करो कि तकरीबन 15 साल पहले आप ने किसी शराबी को गंदी नाली में से बाहर निकाला था.’’ ‘‘हांहां, मुझे याद आ रहा है.’’ ‘‘बाबूजी, मैं नशे में चूर था. बाद में लोगों ने मुझे बताया था कि कोई मुझे नाली में से भी खींचने को तैयार न था. तब आप ने यह काम किया था.’’ मुझे याद आया कि हां, कभी किसी शराबी को मैं ने नाली से बाहर जरूर खींचा था, लेकिन मेरे लिए यह इतनी खास बात नहीं थी कि मैं यह याद रखता कि कब और कितने साल पहले मैं ने यह काम किया था. मैं ने तो उस शराबी की हालत देख कर यही सोचा था कि यह पियक्कड़ या तो किसी दिन ज्यादा शराब पी कर मर जाएगा या फिर किसी दिन नशे की हालत में किसी हादसे का शिकार हो जाएगा.

मेरी नजर में उस की जिंदगी के गिनेचुने दिन बचे थे. लेकिन उस महाशराबी को आज अपने सामने हट्टाकट्टा देख कर मुझे हैरानी जरूर हुई कि कोई टैंकर (महाशराबी) इतना सेहतमंद कैसे हो सकता है. खैर, उसे ले कर मैं अपने घर आ गया. राजपाल घर आते ही अपने काम में जुट गया. 2 घंटे बाद मैं ने उस से पूछा, ‘‘राजपाल चाय पीओगे?’’ ‘‘नहीं बाबूजी, मैं चाय नहीं पीता.’’ ‘‘हां भाई, तुम गरम चाय कहां पीओगे, तुम तो नमकीन के साथ ठंडी चाय पीने वालों में से हो,’’ मैं ने मजाक के लहजे में कहा. ‘‘नहीं बाबूजी, ऐसी बात नहीं है. ‘ठंडी चाय’ तो मैं ने कब की पीनी छोड़ दी.’’ मैं हैरानी से उसे देखने लगा कि एक टैंकर भी शराब पीनी छोड़ सकता है.

‘‘ऐसा कैसे हुआ राजपाल? दारू की लत वाले लोगों का तो दारू छोड़ना बड़ा मुश्किल होता है?’’ राजपाल ने काम करतेकरते अपनी कहानी शुरू की. मैं भी कुरसी डाल कर उसी के पास बैठ गया. ‘‘बाबूजी, उस रात मेरी घरवाली सोई नहीं. वह रातभर जागती रही और मुझे होश में लाने की कोशिश करती रही. उस दिन साथियों के साथ कुछ ज्यादा ही चढ़ा ली थी. भोर के समय जा कर कहीं मेरा नशा टूटा था. ‘‘तभी मकान मालिक आ धमका था. उस ने शाम तक कमरा खाली करने का फरमान सुना दिया. भला बाबूजी, मेरे जैसे शराबी को कौन अपने घर में किराए पर रखता.

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