‘‘मेरी घरवाली करमवती ने जैसेतैसे हाथ जोड़ कर मकान मालिक को मनाया. वह इस शर्त पर राजी हुआ कि अगर उस दिन के बाद मैं शराब पी कर आया, तो वह किसी सूरत में फिर अपने मकान में नहीं रखेगा.’’ ‘‘लेकिन, तुम शराब पीने से बाज तो नहीं आए होगे राजपाल?’’ मैं ने ताना कसा. ‘‘बाबूजी, मैं शर्मिंदा तो बहुत था, लेकिन आप को क्या बताऊं, हम शराबियों को शराब पीने की ऐसी आदत पड़ जाती है कि कितना भी चाहें पीए बिना रहा नहीं जाता. हम मजदूरों की क्या इज्जत और क्या बेइज्जती. लेकिन बाबूजी, करमवती को यह सब बरदाश्त न हुआ…’’
राजपाल काम करता गया और कहानी को आगे बढ़ाता गया. ‘‘अगले दिन मेरी हिम्मत काम पर जाने की नहीं हो रही थी, लेकिन करमवती ने मेरा हौसला बढ़ाया. उस ने एक हाथ में बच्चे को गोद में लिया और दूसरे हाथ में मेरे औजारों का थैला उठाया और कहा, ‘चलो.’ ‘‘मैं उसे ऐसा करते देख हैरान था. मैं ने उस से औजारों वाला थैला ले लिया. लेकिन उस ने काम पर मुझे अकेले न जाने दिया. मेरे लाख मना करने के बावजूद वह मेरे साथ चल दी. ‘‘काम में उस ने मेरी मदद की और शाम को काम निबटा कर मेरे साथ ही घर वापस आई. शराबी दोस्तों से मिलने के उस ने रास्ते बंद कर दिए. ‘‘वह अब रोज मेरे साथ काम पर जाने लगी. काम में वह मेरी पूरी मदद करती. अब मेरा 8 घंटे का काम 5-6 घंटे में निबटने लगा. इस से मैं ने अपना काम और बढ़ा लिया, जिस से मेरी आमदनी बढ़ने लगी. ‘
‘आप को तो मालूम होगा ही बाबूजी कि हम मजदूर तबके के लोग शाम को मजदूरी करने के बाद थकान मिटाने के बहाने शराब पीने बैठ जाते हैं और फिर पीने की कोई हद नहीं होती. दिनभर की कमाई मिनटों में स्वाहा हो जाती है. ‘‘कभीकभी तो इस चक्कर में एक पैसा भी घर नहीं पहुंचता, बल्कि कई बार तो उधारी और चढ़ जाती है. लेकिन करमवती के साथ होने से ये सब चीजें बंद हो गईं. ‘‘शराब पीने की फुजुलखर्ची घटी तो बचत अपनेआप बढ़ गई. बचत किसे खुशी नहीं देती. मैं मजदूरी का पैसा करमवती को देता. वह घर चलाती और बचत का पैसा अपने खाते में जमा कर आती. घर में अच्छा खाना, पहनना होने लगा. मेरे शराबी दोस्त मुझे ताना मारते ‘जोरू का गुलाम’, पर मैं एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल देता.’’ ‘‘अच्छा, फिर तो करमवती ने तुम्हारी जिंदगी बदल दी, लेकिन आज तुम करमवती को ले कर नहीं आए?’’ मैं ने पूछा. ‘‘बाबूजी, आगे तो सुनिए. अभी तो मेरी कहानी शुरू हुई है. करमवती भी आएगी, जरूर आएगी.’’ राजपाल ने अपनी कहानी फिर आगे बढ़ा दी.
‘‘बाबूजी, करमवती से जब मेरी शादी हुई, तब वह 8वीं पास थी. वह और पढ़ना चाहती थी, लेकिन उस के गरीब मांबाप ने उस की पढ़ाई रोक कर घर के कामकाज में झोंक दिया और फिर उसे मेरे पल्ले बांध दिया. ‘‘फिर वह और 3 साल मेरे साथ ऐसे ही घिसटती रही. तब उस के मन में आगे पढ़ने का विचार आया. उस ने 10वीं का प्राइवेट फार्म भरा और वह अच्छे नंबरों से पास हो गई. हमारा बच्चा भी अब 3 साल का हो गया था और हमारी शादी को 5 साल. ‘‘अब तक मेरी समझ में यह आ गया था कि शराब कितनी बुरी चीज होती?है. हम मजदूरों के लिए तो यह किसी जहर से कम नहीं. ‘‘गरीब मजदूर सोचता है कि वह शराब पी कर अपने दुख मिटा रहा होता है, लेकिन सच तो यह है बाबूजी, शराब पी कर वह अपने दुख बढ़ा रहा होता है. वह शराब पी कर तबाह होता है और गरीबी के नरक में सड़ता है. करमवती की वजह से मैं उस नरक में सड़ने से बच गया.’’ ‘‘राजपाल, तुम्हारी कहानी रोचक है. आगे बताओ, फिर तुम्हारी जिंदगी में क्या हुआ?’’ मैं ने पूछा.
‘बाबूजी, करमवती को अब यकीन हो चला था कि अब मैं शराब नहीं पीऊंगा, तो उस ने मेरे साथ जाना छोड़ छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया. इस से हमारी आमदनी और भी बढ़ गई. अब हम ने 2 कमरों का मकान किराए पर ले लिया. एक कमरे में करमवती ट्यूशन पढ़ाती और दूसरे कमरे में हम रहते. ‘‘लेकिन बाबूजी, करमवती का पढ़ाई का शौक अभी छूटा नहीं था. 2 साल में उस ने 12वीं भी पास कर ली. अब उस के पास इतने ट्यूशन हो गए कि घर का खर्चा ट्यूशन की आमदनी से आराम से चलने लगा. मेरी कमाई बैंक में जमा होने लगी. ‘‘ट्यूशन के बच्चों के सामने मुझे बीड़ी पीना अच्छा नहीं लगता था, तो मैं ने वह भी छोड़ दी. चाय की लत भी बहुत बुरी थी. मैं ने ठान लिया और फिर चाय पीना भी छोड़ दिया.’’ ‘‘वाह राजपाल. इतना सुधार, ऐसा निश्चय.’’ ‘‘बाबूजी, बस उस करमवती की करामात है.’’ ‘‘तो अब तो ट्यूशन वगैरह काफी अच्छी चल रही होगी और तुम्हारी बचत भी अच्छी हो रही होगी?’’ राजपाल फिर अपनी जिंदगी की कहानी सुनाने लगा और मैं भी बड़ी दिलचस्पी के साथ मगन हो कर उस की कहानी सुनने लगा. ‘‘फिर करमवती ने पहले बेटे के जन्म के 5 साल बाद एक बेटी को जन्म दिया और फिर नसबंदी करा ली. उस ने कहा,
‘छोटा परिवार, सुखी परिवार. हम इन 2 बच्चों की परवरिश ठीक से करेंगे. और बच्चों की जरूरत नहीं.’ ‘‘बाबूजी, आप भी सुन कर हैरान होंगे, करमवती ने 3 साल में बीए भी कर लिया और वह एक प्राइवेट स्कूल में मास्टरनी हो गई. बाबूजी, पूछो मत. जिस दिन करमवती स्कूल में मास्टरनी हुई, उस दिन मैं खुशी से रो पड़ा था. लोग उस दिन से मुझे ‘मास्टरनी का हसबैंड’ कहने लगे. ‘‘गरीब आदमी की आमदनी में दो पैसे बढ़ जाएं, तो उस से बड़ा सेठ कौन. यहां तो लोग अब इज्जत से भी पेश आने लगे थे.’’ ‘‘अरे वाह, ‘मास्टरनी के हसबैंड’ तुम्हारी करमवती ने तो कमाल ही कर दिया. उस के साथ तुम भी पढ़ लेते,’’ मैं ने कहा. ‘‘बाबूजी, करमवती यहीं नहीं रुकी. उस ने एमए भी पास किया और फिर तो वह इंटर कालेज में पढ़ाने लगी. अब हमारी इतनी बचत हो चुकी थी कि हम ने महल्ले में ही 100 गज का प्लौट खरीद लिया. हमारे बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ने लगे. ‘‘बच्चों को बनठन कर स्कूल जाते देखता, तो मेरा कलेजा खुशी से चौगुना हो जाता. मैं और मेहनत करता. करमवती मेरी मेहनत को सलाम करती, मेरा हौसला बढ़ाती. ‘‘लेकिन बाबूजी, करमवती तो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी.