Hindi Story : मार्च का महीना था. तब न तो पूरी तरह सर्दी समाप्त होती है और न पूरी तरह गरमी ही शुरू होती है. समय बडा़ बेचैनी में गुजरता है. न धूप सुहाती है न पंखे. तनमन में भी अजीब सी बेचैनी रहती है. ऐसे  ही समय एक दिन सोचा कि बच्चों के लिए गरमियों के कपडे़ सिल लूं. सिलाई का काम शुरू किया, पर मन नहीं लगा. सोचा, थोडा़ बाहर ही घूम लूं. फिर फ्रेश हो कर काम शुरू करूंगी. घर से बाहर निकली तो वहां भी 1-2 वाहनों के अलावा कुछ नजर नहीं आया. एक तो पहाडों में जिस स्थान पर हम रह रहे थे वहां वैसे भी आबादी ज्यादा नहीं थी. बस, 4-5 मकान आसपास थे. कुछ थोडी़थोडी़ ऊंचाई वाले स्थान पर थे, इसलिए बहुत अकेलापन महसूस होता था. हां, शाम को बच्चे जरूर खेलते, शोर मचाते थे या काम पर गए वापस लौटते आदमी जरूर नजर आते थे. ऐसे में दिन के 11-12 बजे से ही सन्नाटा छा जाता था.

लेकिन उस दिन वह सन्नाटा कुछ टूटा सा लगा. इधरउधर ध्यान से देखा तो लगा कि आवाज बराबर वाले मकान से आ रही थी. जिज्ञासा से कुछ आगे बढ़ कर पडो़स के बरामदे की ओर देखा तो पडो़सिन किसी ग्रामीण महिला से बात करती नजर आईं. उन्हें बात करते देख मैं वापस आने को हुई तो उन्होंने वहीं से आवाज लगाई, फ्अरे, कहां चलीं, आओ, तुम भी बैठो.

यह पडो़सिन एक शांत सरल स्वभाव की मोटे शरीर वाली महिला थीं. मोटापे के कारण वह आसानी से कहीं आजा नहीं सकती थीं. साथ ही उन्हें मधुमेह, उच्च रक्तचाप आदि अनेक बीमारियां भी थीं. शक्करचीनी से कोसों दूर रहने पर भी उन की जबान की मिठास किसी को भी पल भर में अपना बना लेती थी. मैं भी उन के प्यार से वंचित नहीं थी. मैं उन्हें प्यार और आदर से भाभी कहती थी.

उन की आवाज सुन कर मैं ने उन्हें नमस्ते की. घर में काफी काम था. सोचा, वहां बैठने से सारा समय बातों में ही निकल जाएगा लेकिन तब तक वह ग्रामीण महिला भी पूरी तरह नजर आ गई. मुझे देख कर वह भी मुसकराई.

मैं तो उसे देखती ही रह गई. निराला व्यक्तित्त्व  था उस ग्रामीण महिला का. स्याह काली, लेकिन तीखे नैननक्श, काले रंग का घेरदार घाघरा जिस पर कई रंगों का पेचवर्क हो रहा था. साथ ही कलात्मक कढा़ई के बीच चमकते सितारों से गोल, तिकोने शीशे  थे.घ्घाघरे के ऊपर जरी के काम की लाल कुरती, किरन लगा काला दुपट्टा, हाथपैरों में चांदी के भारीभारी कडे़, कान में चांदी के बडे़बडे़ झाले, जिन की लडों़ ने उस के बालों को भी सजा रखा था. गले में सतलडा़ हार और नाक में नथुनों से भी बडे़ आकार का पीतल का चमकता फूल. लंबेलंबे बालों की अनगिनत चोटियां, जिन को नीचे इकट्ठा कर के रंगबिरंगे चुटीले गूंध रखे थे.

उस के साथ ही बहती नाक वाला, मैलेकुचैले कपडे़ पहने, नंगे पैर एक 10-11 साल का लड़का बैठा था जो उस महिला के सामने उस का नौकर सा लगता था, लेकिन शायद वह उस का बेटा था, जो मां की तरफ से उपेक्षित छोड़ दिया गया था.

भाभी के प्रेम भरे आमंत्रण को शायद मैं विनम्रता से टाल भी देती, लेकिन उस महिला के प्रति जिज्ञासा ने मुझे वहां जाने को विवश किया. उस की अस्पष्ट आवाजें मेरे घर तक आ रही थीं.

जब तक मैं दरवाजा बंद कर वहां पहुंचती, वह महिला अपनी बात शुरू कर चुकी थी. वहां पहुंचने पर मैं ने सुना, फ्देख बीबी, तेरे से एक पैसा नहीं मांगती. जब ठीक हो जाए तो जो इच्छा हो दे देना. तू नुसखा लिख ले. तुझे 4 दिन में फर्क न पडे़ तो कहना. बीबी, इस से पहले एक धेला नहीं लूंगी. इस नुसखे के इस्तेमाल से तेरी सारी चरबी ऐसे छंट जाएगी कि तू खुद को नहीं पहचानेगी.

उस की बातों से मैं समझ गई थी कि यह कोई जडी़बूटीनुमा देशी इलाज या झाड़फूंक करने वाली है. मेरे आने से पहले उस ने मुश्किल से कदम उठा कर रखने वाली भाभी की चालढाल देख कर उन की कमजोर नस पकड़ ली थी और अब तो उन्हें अपने शीशे में उतारने के चक्कर में थी.

मैं ने पूछा, फ्तुम कहां की हो? कहां से आई हो?

फ्बीबी, हैं तो लखीमपुर के, पर दूरदूर तक घूमते हैं और जडी़बूटियां खोजते हैं, उस से लोेगों का इलाज करते हैं. उन का भला करते हैं, वह बडे़ नाज से बोली.

उस का बोलने का अंदाज देख कर मुझे हंसी आ गई. मैं ने कहा, फ्इतनी दूर लखीमपुर की हो तो यहां गढ़वाल में क्या कर रही हो?

फ्ऐ लो बीबी, सारी जडी़बूटियां तो यहीं से ले जाते हैं. तुम्हें नहीं पता कि तुम्हारे पहाडों़ में कितनी बूटियां हैं. तुम तो पहाडों पर रह रही हो, वह व्यंग्य से बोली.

मुझे फिर हंसी आ गई, फ्अरे, तो क्या हम यहां जडी़बूटी खोदने आए हैं. भई, हम नौकरीपेशा लोग हैं. जहां सरकार ने भेज दिया, चले गए. अब यह तो पता है कि पहाडों़ में जडी़बूटियों  का खजाना है, लेकिन ये क्या जानें कि कौन सी घास, फूलपत्ती जडी़बूटी है.

फ्लो बीबी, खुद ही देख लो, कह कर उस ने 3-4 लकडी़  के टुकडे़ अपने गंदे थैले में से निकाले और एक टुकडा़ मेरी ओर बढा़या, फ्इस में कील या पेचकस डालते ही तेल निकलने लगेगा.

मैं ने उस टुकडे़ को नाखून से दबाया तो तेल सा चमका, फिर उस में पेचकस डाल कर घुमाया तो तेल की बूंद सी टपकी. वह फिर बोल उठी, फ्तेल में इन जडी़बूटियों को डाल दूंगी, फिर ये तेल अच्छी तरह से दिन में 2 बार जोडों़ पर मलना. एक नुसखा बताती हूं. उस की राख बना कर तेल में मिला कर लगाना. बीबी, फायदा न हो तो एक पैसा न देना. अभी तुम से कुछ नहीं मांगती. तुम अपना इलाज शुरू कर दो.

इतना कह कर उस ने लौंग, जायफल, पहाडी़ गुच्छी, कपूर, चंदन का तेल जैसी 10-12 चीजों के नाम लिखाए. भाभी ने पूछा, फ्यह सामान कहां मिलेगा?

फ्सब बाजार में मिल जाएगा. अपने नौकर को भेज कर मंगवा लेना. इसे जला कर राख बना लेना और फिर राख को तेल में मिला कर सारे शरीर पर मालिश करना, देखना कुछ ही दिन में असर होने लगेगा और तुम दौड़ने लगोगी. सारे जोड़ खुल जाएंगे.

भाभी बोलीं, फ्क्या यह सामान ऐसे ही जला लेना है?

वह बोली, फ्हां, हां, यहीं आंगन के कोने में जला लेना.

मुझे फिर भी उस की बात पर विश्वास नहीं था, सो उस से कह बैठी, फ्यह सब तो कर ही लेंगे पर यह तो बताओ कि तुम फिर कब आओगी? तुम्हें कैसे पता चलेगा कि इलाज हो पा रहा है या नहीं?

फ्लो बीबी, तुम तो शक कर रही हो हम पर. ऐसेवैसे नहीं हैं हम.घ्यह देखो हमारा पहचान पत्र. हमें तो पूरी ट्रेनिग दी गई है, कह कर उस ने गंदे कपडे़ में लिपटा, अपना फोटो लगा पहचानपत्र दिखाया, जिस में एक बडे़ शहर की आयुर्वेद कंपनी का प्रमाणपत्र व फोन नंबर आदि थे. वह फिर भाभी से बोली, फ्अपने लिए एक पैसा नहीं मांग रही. ठीक होने पर जो मरजी हो दे देना. एक बार इलाज तो शुरू करो फिर खुद को ही नहीं पहचान पाओगी. ला, मंगा एक कटोरा तेल.

भाभी ने अपनी लड़की से तेल मंगाया तो वह सिर पकड़ कर बैठ गई, फ्अरे बिटिया, कोई ले थोडे़ ही जाएंगे हम. कम से कम डेढ़ पाव तेल ला. फिर उस तेल में जडी़बूटी के कुछ टुकडे़ तोड़ कर मिलाए और भाभी के हाथ पैर व कमर पर मालिश कर के 5 मिनट बाद बोली, फ्कुछ आराम मिला जोडों़ में?

भाभी खुश थीं, फ्हां, आराम तो मिला.

शायद बरसों बाद उन्हें किसी से मालिश करवाने का मौका मिला था.

अब उस महिला ने एकएक कर भाभी की लड़की से हलदी, लकडी़ का पटरा, 2 रंगों का धागा मंगाया. मुझ से रुका नहीं गया और मैं कह उठी, फ्भई, जो कुछ मंगाना है एकसाथ क्यों नहीं मंगवाती हो? मैं देख रही थी कि भाभी की बेटी को इन सब बातों में बकवास नजर आ रही थी और वह सामान लाने पर हर बार मुंह बना रही थी.

तब तक बाजार से भाभी का बेटा भी आ गया था जो बी-एससी- में पढ़ रहा था. उस के सामने उस महिला ने फिर से सारी बातें दोहराईं. बेटे ने उस की बात मजाक में लेने की कोशिश की तो वह बोली, फ्मैं क्या तेरे से कुछ मांग रही हूं. तेरी मां के भले के लिए  बता  रही हूं यह नुसखा. ठीक हो जाए तो कुछ भी दे देना.

बेटा बोला, फ्चल, तुझे 200 रुपए दूंगा और 200 रुपए क्या, तुझे दिल्ली ले चलता हूं. वहां ऐसे बहुत से मरीज हैं, उन्हें ठीक कर देना. मैं तेरा चेला बन जाऊंगा फिर अपना क्लीनिक खोल कर ठाठ करूंगा.

ग्रामीण महिला ने तिरछी नजर से उसे देखा. शायद वह उस के मजाक को समझ गई थी, पर धैर्य का परिचय देते हुए फिर भाभी की ओर देखती हुई बोली, फ्देख, तेरे यहां कच्ची मिट्टी की जगह है, यहीं भस्म बना लेना.

मुझे यकीन नहीं आ रहा था कि मुपत में नुसखा बेचने का आखिर इसे क्या लाभ है. कहीं यह सीधीसरल भाभी को ठगने के चक्कर में तो नहीं है. कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है. इसीलिए मैं उस से फिर पूछ बैठी, फ्यह भस्म तुम्हारे पास नहीं है. जो सामान तुम ने बताया है, पता नहीं यहां मिले या नहीं? अब बाजार के सामान का क्या भरोसा? बाद में तुम कहोगी, यह ठीक नहीं था, वह ठीक नहीं था, इसलिए फायदा नहीं हुआ.

फ्अब बीबी, यह तो पैसे की चीज है, बाजार से मंगा लो. मुझे क्या देना, फिर कहोगी कि पैसा मांगती है.

यह बात 3-4 बार आई और उस ने हर बार फिर वही बात दोहराई. लेकिन अब मुझे लगने लगा था कि मेरी उपस्थिति उसे अखरने लगी है, क्योंकि मैं उस से तरहतरह  के सवाल पूछ रही थी. शायद वह समझ रही थी कि मैं उस की कोई बात पकड़ने की कोशिश में हूं जबकि भाभी ने उस से कुछ भी नहीं पूछा था. इस के बाद जब भी मैं ने उस से कोई बात पूछी, उस ने बात का रुख भाभी को नुसखा समझाने में मोड़ दिया.

इस बीच उस ने पटरे पर आटे और हलदी से ‘रंगोली’ आदि बना कर भाभी को उस पर बिठाया. फिर उस ने 2-3 मीटर धागे को भाभी के हाथपैर से नाप कर 15-20 बार लपेट कर रस्सी जैसा बनाया और उसे भाभी के शरीर से छुआ कर 11 गांठें लगाईं. कुछ मंत्र पढे़ और धागा भाभी को दे कर बोली, फ्इसे ध्यान से रख लो. जैसेजैसे तुम ठीक होगी, गांठें अपनेआप खुल जाएंगी.

वहां मौजूद सभी लोगों को हैरानी में डालते हुए उस ने माचिस की डब्बी में धागा रख दिया. अब मुझे यकीन हो गया था कि जरूर कोई धोखा है. आयुर्वेदिक इलाज में टोनेटोटके का क्या काम. लेकिन मैं चुप रही, क्योंकि मुझे लग रहा था कि भाभी उस की बातों से काफी प्रभावित हो गई थीं. खासतौर पर इस बात से कि वह इस काम के अभी कोई पैसे नहीं मांग रही. विधि भी आसान थी, उस के द्वारा जडी़बूटी डाले गए तेल में सामान की राख मिला कर मलना ही तो था और फिर देखो दवा का कमाल.

मैं किसी काम के बहाने उठ कर आ गई और सोचने लगी कि ऐसी बातों में सिर खपाना बेकार है. लेकिन जिज्ञासा से उस की आगे की काररवाई देखने के लिए मैं फिर वहीं जा कर खडी़ हो गई. वापस गई तो वह आटे की छलनी में कुुुछ घुमा रही थी. मैं दूर खडी़ यह सब देखने लगी तो वह महिला बोली, फ्आजा री, तू घबरा क्यों रही है? तुझ पर कुछ टोटका नहीं करूंगी. मेरे भी बाल बच्चे हैं. मैं यदि गलत बोलूं या गलत करूं तो मेरे बच्चे मरें.

मैं ने उसे टोका, फ्बच्चों को क्यों ला रही है बीच में. तुझे जो करना है, कर. मैं इन बातों में यकीन नहीं रखती.

अब महिला ने कहा, फ्बेटी, इस में कुछ सफेद खाने की सामग्री ले आ.

बेटी एक छलनी चावल ले आई.

महिला माथा पकड़ कर बैठ गई, फ्ले बेटी, यह क्या मैं ले जाऊंगी. कम से कम 3 छलनी भर ला.

बेटी ने चावल ला कर थैली में डाले तो कुछ चावल बिखर गए. भाभी बोलीं, फ्चलो, कोई बात नहीं, चावल ही तो गिरे हैं- हमारे पहाड़ में इसे शुभ मानते हैं- अब तो महिला ने भाभी की शुभअशुभ में जबरदस्त आस्था की दूसरी कमजोर नस पकड़ ली, फ्बेटी, जब तेरी मां ठीक हो जाए तो इन्हें पका कर कन्याओं को खिला देना. अब  बताओ, यह सही है या गलत? अच्छा, जा, जरा एक कटोरी चीनी और ले आ.

मुझे फिर किसी काम से वहां से उठना पडा़. फिर वापस पहुंची तो हैरान रह गई. वह महिला एक टूटी सी कटोरी में नुसखे का सारा सामान दिखा रही थी, फ्देखो बीबी, इतना सामान है.

मुझे हंसी आ गई. अभी तक तो यही कह रही थी कि मेरे पास सामान कहां है. अब उस ने भाभी के बेटे और नौकर को पास बुलाया, फ्भैया, अब तू भी जान ले विधि, भस्म बनाने की. 2 हाथ गहरा गड्ढा खोद कर 3 किलो उपले और कोयला नीचे रखना. फिर मिट्टी की हंडिया में नुसखे का सारा सामान रख कर मिट्टी के ढक्कन को  आटे से चिपका कर मुुंह बंद कर देना. ऊपर से बाकी उपलाकोयला डाल कर मिट्टी से गड्ढे का मुंह बंद कर देना. 5-6 घंटे बाद खोलना तो हंडिया में सफेद राख मिलेगी. देखो, इस में रखे सामान या आग में फूंक न मारना, पूजा का होता है यह.घ्नहीं तो सब बेकार हो जाएगा.

फ्अरे, इतना सब कैसे होगा? अभी तक तो लग रहा था कि सारी सामग्री कहीं भी रख कर जला कर भस्म बन जाएगी. अब कोयला, उपले कहां से आएंगे. गहरा गड्ढा कैसे खुदेगा. पहाडों़ पर बने घरों में जरा सा खोदने पर ही पत्थर की शिला निकल आई तो? इन बातों पर विचारविमर्श शुरू ही हुआ था कि वह महिला बीच में ही बोल उठी, फ्और देख भैया, यह सामान ठीक से न जले, काला या गीला रह जाए तो इस्तेमाल मत करना. फिर से भस्म बनाना.

अब भाभी भी कुछ झुंझला गईं. मुझ से बोलीं, फ्इतना झमेला कैसे होगा? इस के पास होती तो वही ले लेते, कितना झंझट है इसे बनाने में.

तभी वह महिला झोले में से शीशी निकाल कर बोली, फ्देखो, ऐसा सफेद पाउडर बनना चाहिए.

पाउडर देखकर चौंकते हुए भाभी बोलीं, फ्है तो तुम्हारे पास, यही दे दो न?

फ्बीबी, मैं तो दिखा रही थी खाली, पैसे की चीज है. बाजार से ला कर खुद बना लेना. वैसे 260 रुपए का है यह, वह बोली.

फ्कुछ ज्यादा ही कह रही हो तुम. 260 रुपए का क्या हिसाब हुआ? भाभी बोलीं.

फ्बीबी, नौकर भेज बाजार में पुछवा लो. यहीं बैठी हूं मैं. फिर हमारी मेहनत भी तो है. नहीं तो तुम खुद बना लेना. मरीज बनाम ग्राहक को अपनी पैनी नजर से तौलती वह पूरी निश्चितता के साथ पैर फैला कर बैठ गई. उस के अनुभव ने उसे लगभग आश्वस्त कर दिया था कि पंछी जाल में फंस गया है.

मेरे बच्चों के स्कूल से आने का समय हो गया था. इसलिए उन के मोलतोल में शामिल न हो कर मैं घर आ गई. अगले दिन भाभी से पूछा तो पता चला कि वह भस्म उन्होंने ले ली है. वह महिला न तो आधे पैसे एक सप्ताह बाद लेने को तैयार हुई न एक भी पैसा कम किया उस ने. उस समय परिस्थितिवश भाभी ने तमाम रेजगारी तक गिन डाली थी, लेकिन वह महिला टस से मस नहीं हुई. आखिर भाभी ने किसी से पैसे ले कर उस को दिए.

मैं सोचती रह गई कि कितनी जबरदस्त मनोवैज्ञानिक थी वह. पहले उस ने पूरी कालोनी में घूम कर भाभी को चुना और उन की बीमारी की कमजोर नस पकडी़. फिर यह विश्वास दिलाया कि वह पैसों के लिए यह सब नहीं कर रही. वह तो उन का भला करना चाहती है, जो बहुत सरलता से हो जाएगा. फिर नुसखा बनाने की विधि की जटिलता पर आई और जब उसे विश्वास हो गया कि लोहा गरम है तो अपने पास से बना पाउडर दिखा कर उसे बेच कर 260 रुपए की चपत लगा गई.

पाठको, शायद आप जानना चाहेंगे कि फिर उस पाउडर का क्या असर रहा, जो उस ने 3 घंटे की माथापच्ची के बाद अपने झोले से निकाला था.

अगले दिन मैं ने भाभी से पूछा कि आप ने तेल लगाया, तो बोलीं, फ्हां, कल मालिश की तो जोड़ कुछ खुले तो. मैं ने कई साल बाद पहली बार खडे़ हो कर खाना बनाया. कुछ दिन बाद फिर पूछा तो बोलीं, फ्तेल खुद लगा नहीं पाती और मालिश करने वाली मिली नहीं. और फिर कुछ दिन बाद बात आई तो मैं हैरान रह गई जवाब सुन कर. उन्होंने कहीं अखबार में पढा़ था कि कुछ विदेशी एजेंट भारत में हींग, दवा आदि बेचने वालों के जरिए महामारी फैलाने की कोशिश में हैं. अतः उन्होंने उस महिला को विदेशी एजेंट मानते हुए सारा तेल व अन्य सामान फेंक दिया था. देरसवेर किसी न किसी बहाने से शायद उस का यही हश्र होना था.

लेखिका- स्मिता जैन

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