यह कहा जाता है कि 3 चीजें जाने के बाद कभी वापस नहीं आतीं. मुंह से निकली हुई बात, कमान से निकला हुआ तीर और गुजरा हुआ वक्त. इस में चौथी चीज और जोड़ सकते हैं, जो है देश से बाहर गया हुआ काला धन.
अब तकनीक ने काफी तरक्की कर ली है तो पुराने वाले जो 3 ‘आइटम’ हैं, उन के वापस आने या अपना असर खत्म करने की काफी ज्यादा संभावनाएं पैदा हुई हैं. पर जो चौथा वाला जुड़ा है, उस का तोड़ किसी तांत्रिक तो क्या उस के फूफा के पास भी नहीं है.
कलियुग के कारनामों से यह सच निकल कर आया है कि एक बार देश से बाहर गया हुआ काला धन वापस नहीं आ सकता तो नहीं आ सकता.
हालांकि बड़े कौओं ने देश की मुंड़ेर पर बैठ कर काले धन के आने की सूचना दी है पर सूचना देने से क्या होता है? वह भी काले धन की सूचना. जमाना भी काला, कौआ भी काला और धन भी काला. ‘काला’ गुण समान है तीनों में. अंगरेजी में कहें तो ‘कौमन फैक्टर’ है.
इतिहास गवाह है कि जहांजहां गुण समान होते हैं वहां कोई भी असामान्य सी घटना नहीं घटती है. सब जुड़ा ही रहता है. वैरविरोध खत्म हो जाता है, चोरसिपाही का खेल नहीं रहता. हां, कभीकभार एकदूसरे के खिलाफ विरोध जरूर दिख जाता है. यह महज एक ही परिवार की अंदरूनी नोकझोंक सी होती है और कुछ नहीं. आप ही बताइए कि ऊपर से कई फांकों में दिखने वाला तरबूज अंदर से अलगअलग होता है क्या? पूरे का ‘ब्लड ग्रुप’ एक ही होता है. एक ही गुणधर्म.
वैसे तो हर एक का अपनाअपना गुणधर्म होता है. बिच्छू का डंक मारना, सांप का डसना, कुत्ते का भूंकना वगैरह. इसी तरह काले धन का गुणधर्म देश के बाहर जा कर न आना और कौओं का कांवकांव करना होता है. कौआ धीरे बोलेगा या कम बोलेगा तो भी कोयल जैसी ‘कुहूकुहू’ की आवाज तो आएगी नहीं. कांवकांव ही करेगा.
एक समय था जब अम्मां छत पर गेहूं सुखाते समय एक आईना रख देती थीं. कौआ जब आता तो अपना अक्स आईने में देख कर डर जाता. वह गेहूं को चोंच लगाए बिना ही उड़ कर चला जाता. अम्मां, बाबा और उन का पूरा परिवार भूखा नहीं रहता था.
अब धीरेधीरे कौओं ने आईने के पीछे से आ कर उस की पौलिश हटा दी है. इधरउधर उसे गेहूं ही गेहूं दिखता है. हमारीआप की रोटियों का एकमात्र आसरा.
अब कौआ इस आईने में अपनेआप को नहीं देख पाता तो डरता भी नहीं. आराम से अपने कौलर जैसे पंखों को ऊपर उठा कर खुश होता है और गेहूं के दानों को अपने दूसरे साथियों के साथ चोंच में भरता जाता है. अम्मां, बाबूजी और उन के बच्चे भूखे रह जाते हैं.
खैर, उदास होने की बात नहीं है. काला धन और काले कौए हमारे गौरवशाली इतिहास से सजेधजे देश पर काले टीके के समान हैं. देश पर नजर नहीं लगती. वह साफसुथरा रहता है.
अरे भई, घर की सफाई करने के बाद गंदगी बाहर ही तो डालते हैं, अंदर तो नहीं लाते? दाल साफ करते हैं तो भी कंकड़ों को बाहर निकाल दिया जाता है. उन्हें फिर थाली में तो नहीं डालते? शरीर की रोज की पाचन क्रियाओं से गंदगी बाहर ही तो निकलती है. इस से शरीर साफ रहता है.
तो मित्रो, देश की आर्थिक क्रियाओं से काला धन बाहर निकलता है तो देश भी सेहतमंद रहता है, खुशहाल रहता है, इसलिए कलियुग में कौओं को कोसना व काले धन की वापसी के बारे में सोचना बंद कर देना चाहिए. इस से देश की सेहत खराब होने का डर रहता है. देशद्रोही का आरोप लगेगा, सो अलग. ठीक कहा न…?