25 साल की सत्यभामा सांवले रंग की थी. जब वह हंसती थी, तो सामने वाले को अपनी गिरफ्त में ले लेती थी. सत्यभामा नौकरी के सिलसिले में राजन से मिली थी. शुरू में तो राजन ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया था, पर जैसेजैसे वह अपने कामों के लिए राजन से बारबार मिलने लगी, वैसेवैसे वह उस पर असर डालती गई थी. धीरेधीरे वे दोनों पक्के दोस्त बन गए थे.
सत्यभामा की मासूमियत, गरीबी और बदहाली के चलते राजन हमेशा उस की मदद करने के लिए तैयार रहता था. एक दिन अचानक सत्यभामा अपने भाई और एक नौजवान के साथ राजन के यहां आई. पेशे से टीचर और बूआ का बेटा कह कर सत्यभामा ने उस नौजवान का परिचय राजन से करा दिया था. राजन ने उन सब के स्वागत में कोई कसर न छोड़ी थी, पर सत्यभामा का एकाएक रूखा बरताव उसे अटपटा लगा था.
रात के खाने के बाद राजन ने सत्यभामा के भाई और बूआ के बेटे को अपने ड्राइंगरूम में सुला दिया और खुद दूसरे कमरे में सोने चला गया. सर्दी लगने पर जब राजन कंबल लेने गया, तो खिड़की से ड्राइंगरूम का नजारा देख कर ठगा सा रह गया.
गहरी नींद में सोए सगे भाई की मौजूदगी में राजन को बूआ का बेटा और सत्यभामा बिस्तर पर एकदूसरे में लिपटे नजर आए थे. यह नजारा देख कर राजन दर्द से तिलमिला गया और उलटे पैर लौट गया.
सत्यभामा के जिस्मखोर होने का पहली बार एहसास उसे भीतर तक हिला गया. मगर सुबह उस ने उन्हें इस बात का एहसास नहीं होने दिया.
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