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सांचौर एक अच्छा और बड़ा राज्य था. इस राज्य की कमान रायचंद देवड़ा के हाथों में थी. करीब सवा लाख की आबादी वाले इस राज्य में 52 तहसीलें थीं. राजा रायचंद देवड़ा के राज्य में जनता सुख और शांति से रह रही थी. राज्य में न चोरी,

डाका और न लूट होती थी. लोग बड़े चैन के साथ रहते थे. राजा रायचंद देवड़ा की एक रानी ने एक रात एक पुत्री को जन्म दिया. राजा के आदेश पर सुबह राजपंडित लडक़ी की जन्मपत्री बनाने महल में हाजिर हुआ. पंडितजी ने पंचाग देखा, ज्योतिषशास्त्र की किताबें खोलीं. जोड़ लगाया, बाकी निकाली, राशियां मिलाईं, नक्षत्र देखे. इधर का उधर, उधर का इधर किया, लेकिन उस के चेहरे पर झलक रही परेशानी खत्म ही नहीं हो रही थी.

निराश होने के बाद उस ने हाथ जोड़ कर राजा रायचंद देवड़ा से अर्ज की, ‘‘अन्नदाता बाईसा का जन्म मूल नक्षत्र में हुआ है और वह भी पहले पहर में. इस नक्षत्र में जो भी पैदा होता है, वह अपने पिता के लिए घातक और राज्य के लिए घोर अनिष्टकारी होता है.’’

“आप ने दूसरे पंडितों से इस के बारे में कोई सलाहमशविरा किया है?’’ राजा ने पूछा.

“अन्नदाता, दूसरे विद्वानों से भी मैं ने पूछ लिया है. उन की राय भी मेरी राय से मिलती है.’’

“तो फिर इस बच्ची का क्या किया जाए?’’

“मैं तो इतनी अर्ज कर सकता हूं कि इस बच्ची को हमेशा के लिए इस राजमहल और राज्य से हटा देना चाहिए.’’ पंडित ने राय दी.

“कोई दूसरा रास्ता नहीं निकल सकता?’’ राजा ने पूछा.

“नहीं महाराज,’’ सिर नीचा किए हुए राजपंडित बोला.

रायचंद ने हुकम दिया कि बच्ची को मार दिया जाए.

जब इस की खबर रानी को हुई तो वह रोती हुई रायचंद के पैरों में गिर पड़ी और बोली, ‘‘बेचारी एक दिन की ही तो बच्ची है,

उसे जीवनदान दीजिए.’’

राजा रायचंद अडिग रहा. वह बोला,‘‘मेरा राज्य और मेरा जीवन इस लडक़ी के जीवन से खतरे में है. इस कारण मैं कोई सहायता नहीं कर सकता.’’

‘‘मैं आप को एक राय दे रही हूं, जिस से आप जीव हत्या से बच जाएंगे.’’ रानी बोली. बेटी को बहा दिया नदी में रानी की राय राजा रायचंद को पसंद आ गई. बच्ची को नदी में बहा दिया गया. नदी शांत भाव से बह रही थी. उगते सूरज की किरणें उस के पानी से खेल रही थीं. नदी के किनारे रखे सपाट पत्थर पर रामू धोबी पछाटपछाट कर कपड़े धो रहा था. थकी कमर को सीधी करने के लिए रामू ने सिर उठाया तो उसे नदी में बहती हुई कोई चीज नजर आई. जब सूरज की किरणें उस चीज को छूतीं तो वह चमकने लगती. पास ही चंपा कुम्हार बरतन बनाने के लिए मिट्ïटी खोद रहा था. रामू ने चंपा को आवाज लगाई, ‘‘अरे चंपा, देख, नदी में कोई चीज बहती आ रही है.’’ चंपा ने नदी की तरफ देखा, ‘‘मुझे तो कोई पिंजरे जैसी चीज दिख रही है, चल उसे निकालें.’’

रामू बोला, ‘‘पिंजरा मेरा, अंदर वाली चीज तेरी.’’

दोनों ने अपनी धोती ऊंची उठाई, फिर जोड़ी पानी में कूद गई. देखा तो पिंजरा. पिंजरा खोला तो अंदर रुई में लिपटी एक बच्ची थी. कोमल इतनी थी जैसे गुलाब का फूल.

उसे देखते ही रामू बोला, ‘‘कौन ऐसा हत्यारा बाप होगा, कौन ऐसी वज्र छाती वाली मां होगी. लगती तो किसी बड़े घर की

है, तभी ऐसे कीमती सोने के पिंजरे में इसे बहाया, लेकिन बेचारी को बहाया क्यों?’’

चंपा बोला, ‘‘लगता है, यह मेरे लिए ही हुआ है, क्योंकि मेरे कोई संतान नहीं है. नियति को मेरी घर वाली की गोद भरनी थी.’’ चंपा रुई में लिपटी बच्ची को ले कर भागता हुआ घर आया और पत्नी से बोला, ‘‘लो, तुम्हारी इच्छा पूरी हो गई. इसे पालपोस

कर बड़ा करो.’’ चंपा ने पत्नी को सारी बात कह सुनाई.

कुम्हारन ने बच्ची को छाती से लगा लिया और उसे पालनेपोसने लगी. यह सब नियति का ही खेल था, जो सांचौर के राजा की पुत्री चंपा कुम्हार के घर में पहुंच गई. चंपा अपनी पत्नी से कहता ही न थके, ‘‘सारे सोरठ देश में तू कहीं भी घूम आ, ऐसी सुंदर कन्या तुझे नहीं मिलेगी. लगता है, सोरठ देश का सारा रूप इसी में आ गया.’’

“आप की बात सोलह आना सच है. ऐसी रूपवती कहीं नहीं है.’’ समय के साथ बच्ची बड़ी होने लगी. चंपा कुम्हार ने उस बच्ची का नाम सोरठ रख दिया था. सोरठ ज्योंज्यों बढऩे लगी, त्योंत्यों उस की सुंदरता खिलने लगी थी. चंपा अपनी पत्नी को हमेशा समझाता रहता और सावधान करता रहता, ‘‘कितनी बार तुझे कहा है, सोरठ को दरवाजे पर मत जाने दिया कर, किसी से बात मत करने दिया कर. क्या मालूम कब किसी राजा की, अमीर आदमी की नजर इस पर पड़ जाए. अनर्थ हो जाएगा. हम रहे कुम्हार, छोटी जाति के. न ‘हां’ कहने की बनेगी, न ‘ना’ कहने की. तू तो इसे घर से बाहर

निकलने ही मत दिया कर.’’

लेकिन चांद कितने दिन बादल के पीछे छिप सकता है. एक दिन गढ़ गिरनार का राव खंगार अपने भांजे बींझा के साथ शिकार खेलता चंपा कुम्हार के गांव आ निकला. सहेलियों के साथ सोरठ भी राव खंगार की सवारी देखने उस के डेरे के पास चली आई. लड़कियों के झुंड में सोरठ ऐसी चमक रही थी, जैसे तारों के बीच चंदा. बींझा की नजर सोरठ पर पड़ी और वहीं की वहीं अटक गई.

सोरठ लड़कियों के झुंड में ऐसे चमक रही है जैसे किसी धुंधले बादल में बिजली चमक रही हो. राव खंगार का घोड़ा 30 कद आगे निकल गया, पीछे घूम कर देखा तो बींझा तो वहीं अटका खड़ा था. उस ने अपना घोड़ा वापस किया. राव खंगार को आते देख बींझा सोरठ की तरफ इशारा कर के बोला, ‘‘इस छोकरी का मोल करूं?’’ चंपा कुम्हार ने की परवरिश

उधर घर पर सोरठ को न पा कर चंपा कुम्हार की पत्नी सोरठ को ढूंढने आई. उस ने बींझा को सोरठ को घूरते देखा तो सोरठ का हाथ पकड़ अपने साथ खींचती घर ले गई. बींझा ने अपना सिर धुन लिया, ‘‘इस को तो मुंहमांगा धन दे कर अपना बनाना चाहिए.’’

राव खंगार ने हां भरी. सोरठ का पताठिकाना पूछ राव खंगार और बींझा दोनों चंपा कुम्हार के घर पहुंचे. उन्होंने सोरठ को उस से मांगा तो चंपा ने कहा, ‘‘पृथ्वी का राज भी दे दो तो भी मैं अपनी बेटी को नहीं बेचूंगा.’’

“बेचने के लिए कौन कहता है. गढ़ गिरनार का राजा हूं, इस से शादी करूंगा.’’ राव खंगार और बींझा ने चंपा को बहुत समझाया, लालच दिया, ऊंचानीचा लिया, लेकिन चंपा तो अडिग रहा, ‘‘अपनी बेटी की शादी अपनी बराबरी वाले से ही करूंगा.’’

राव खंगार और बींझा वापस गिरनार लौट गए. लेकिन बींझा के दिल पर सोरठ की छवि ऐसी उतर गई कि निकाले नहीं निकली, मिटाए नहीं मिटी. दिनरात यही सोचता रहा कि सोरठ को कैसे प्राप्त करूं.

इधर चंपा कुम्हार को फिकर लग गई. सोरठ बड़ी हो गई. गिरनार के राजा से तो किसी तरह पिंड छुड़ाया, लेकिन इस देश में राजाओं की, अमीरों की क्या कमी. कोई कभी भी आ टपके. किसकिस से मैं सोरठ को और अपने को बचाऊंगा. मैं ठहरा गरीब आदमी, गरीब की ताकत कितनी? पहुंच कितनी? वे होंगे बड़े आदमी, जिन की बड़ी ताकत लंबी पहुंच. उस ने तय कर लिया कि सोरठ की शादी जल्दी कर देनी चाहिए. मनचलों की भीड़ आने लगी और बदनामी होने लगी तो इस के लिए वर ढूंढना मुश्किल हो जाएगा.

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