सीतू झोंपड़पट्टी वाले थाने में नयानया सिपाही भरती हुआ था. एक दिन थानेदार ने उसे रामू बनिए को बुला लाने के लिए भेजा.

रामू बनिया तो घर पर नहीं मिला, पर उस के मुनीम ने सीतू को 50 रुपए का नोट पकड़ा कर कहा, ‘‘थानेदार से कह देना कि सेठजी आते ही थाने में हाजिर हो जाएंगे.’’

लौट कर सीतू ने 50 रुपए का नोट थानेदार की मेज पर रख दिया और साथ ही मुनीम का पैगाम भी कह सुनाया.

जब वह जाने लगा तो थानेदार ने 50 रुपए का नोट उसे पकड़ाते हुए कहा, ‘‘इसे रख लो, यह तुम्हारा इनाम है.’’

बाद में थाने के सिपाहियों ने सीतू का काफी मजाक उड़ाया और बताया कि मुनीम ने 50 रुपए उसे दिए थे, न कि थानेदार को. थानेदार तो 100 रुपए से कम को हाथ तक नहीं लगाता.

सीतू 50 रुपए ले कर खुश हो गया. यह उस की पहली ऊपर की कमाई थी. थानेदार उस की ईमानदारी का कायल हो गया. इस के बाद से थानेदार को जहां से भी पैसा ऐंठना होता, तो वह सीतू को भेज देता या अपने साथ ले जाता.

सीतू जो भी पैसा ऐंठ कर लाता था, उस में से उसे भी हिस्सा मिलता था. धीरेधीरे उस के पास काफी पैसा जमा हो गया. पर मन के किसी कोने में उसे अपनी इस ऊपर की कमाई से एक तरह के जुर्म का अहसास होता, मगर जब वह अपनी तुलना दूसरों से करता तो यह अहसास कहीं गायब हो जाता.

सीतू को एक बात अकसर चुभती थी कि कसबे के लोग बाकी सिपाहियों को तो पूरी इज्जत देते और सलाम करते थे, मगर उसे केवल मजबूरी में ही सलाम करते थे. वह चाहता था कि उसे भी दूसरे सिपाहियों के बराबर समझा जाए, मगर वह इस बारे में कुछ कर नहीं सकता था.

वैसे, अब सीतू काफी सुखी था.

उस के पास सरकारी मकान था. एक साइकिल भी उस ने खरीद ली थी. वह शान से साफसुथरे कपड़ों में रहता था. कम से कम झोंपड़पट्टी के लोग तो उस की कद्र करते ही थे.

सीतू अपने साथी सिपाहियों के मुकाबले खुद को बेहतर समझता था. उस के सभी साथी शादीशुदा थे, मगर वह इस झंझट से अभी तक आजाद था. मांबाप की याद भी उसे ज्यादा नहीं आती थी, क्योंकि उसे उन से ज्यादा लगाव कभी रहा ही नहीं था.

एक दिन सीतू अपनी साइकिल पर सवार हो कर बाजार से गुजर रहा था कि एक जगह भीड़ लगी देख कर वह रुक गया. उस ने देखा कि झोंपड़पट्टी में रहने वाली एक लड़की भीड़ से घिरी खड़ी थी और रोते हुए गालियां बक रही थी. वह कभीकभार भीड़ पर पत्थर भी फेंक रही थी.

भीड़ में शामिल लोग लड़की के पत्थर फेंकने पर इधरउधर भागते हुए उस के बारे में उलटीसीधी बातें कर रहे थे.

सीतू ने देखा कि कुछ लफंगे से दिखाई देने वाले लड़के उस लड़की को घेरने की कोशिश कर रहे थे. सीतू ने पास खड़े झोंपड़पट्टी में रहने वाले एक बूढ़े आदमी से पूछा, ‘‘बाबा, आखिर माजरा क्या है?’’

बूढ़े ने सीतू को पुलिस की वरदी में देख कर पहले तो मुंह बिचकाया, फिर बोला, ‘‘यह लड़की यहां बैठ कर लकड़ी के खिलौने बेच रही थी. जब सब खिलौने बिक गए, तो उस ने पैसे रख लिए और थैले में से रोटी निकाल कर खाने लगी.

‘‘तभी ये 3 बदमाश लड़के यहां आ धमके. एक ने उसे 50 का नोट दिखा कर पूछा कि ‘चलती है क्या मेरे साथ?’ तो लड़की ने उस के मुंह पर थूक दिया.

‘‘बस फिर क्या था, तीनों लड़के उस पर टूट पड़े. लड़की की चीखपुकार सुन कर भीड़ जमा हो गई तो लड़कों ने शोर मचा दिया कि इस लड़की ने चोरी की है. बस, तभी से यह नाटक चल रहा है.’’

इतना बता कर वह बूढ़ा सीतू को इस तरह घूर कर देखने लगा मानो कह रहा हो, ‘है हिम्मत इस लड़की को इंसाफ दिलाने की?’

इतना सुनते ही सीतू साइकिल की घंटी बजाते हुए भीड़ में जा घुसा. उस ने कड़क लहजे में लड़की से पूछा, ‘‘ऐ लड़की, यह सब क्या हो रहा है?’’

‘‘साहब, ये तीनों मुझ से बदतमीजी कर रहे हैं. मैं ने रोका तो जबरदस्ती करने लगे. मैं ने शोर मचाया तो बोले कि मैं चोर हूं, पर मैं ने कोई चोरी नहीं की है,’’ लड़की गुस्से में बोली.

‘‘साहब, यह झूठी है. यह तो पक्की चोर है. इस ने पहले भी कई चोरियां की हैं. जो घड़ी इस के हाथ में बंधी है वह मेरी है,’’ एक लड़के ने कहा.

‘‘इस ने मेरा 50 का नोट चुराया है,’’ दूसरा लड़का बोला.

‘‘ये लड़के झूठ बोलते हैं साहब. मैं ने चोरी नहीं की है,’’ लड़की ने सीतू के आगे हाथ जोड़ कर कहा.

लड़की के मुंह से ‘साहब’ सुन कर सीतू की छाती चौड़ी हो गई. उस ने एक लड़के से पूछा, ‘‘क्या सुबूत है कि यह घड़ी तेरी है?’’

इस से पहले कि वह लड़का कुछ कह पाता, भीड़ में से किसी की आवाज आई, ‘‘इस लड़की के पास क्या सुबूत है कि यह घड़ी इसी की है?’’

यह सुन कर सीतू भड़क उठा. साइकिल स्टैंड पर लगा कर उस ने अपना डंडा निकाल लिया. फिर वह भीड़ की तरफ मुड़ गया और हवा में डंडा लहराते हुए बोला, ‘‘किसे चाहिए सुबूत? इस लड़की के पास यह सुबूत है कि घड़ी इस के कब्जे में है… और किसी को कुछ पूछना है? चलो, भागो यहां से. क्या यहां जादूगर का तमाशा हो रहा है?’’

सीतू की फटकार सुन कर वहां जमा हुए लोग धीरेधीरे खिसकने लगे.

‘‘देखो साहब, वे तीनों भी भाग रहे हैं,’’ लड़की बोली.

‘‘तुम तीनों यहीं रुको और बाकी सब लोग जाएं,’’ सीतू ने उन लफंगों को रोकते हुए कहा.

जब भीड़ छंट गई, तो सीतू उन लड़कों से बोला, ‘‘चलो, थाने चलो.’’

थाने का नाम सुन कर उन तीनों लड़कों के साथसाथ वह लड़की भी घबरा गई. वह बोली, ‘‘देखो साहब, ये तो बदमाश हैं, मगर मैं थाने नहीं जाना चाहती.’’

‘‘अरी, तुझे कोई खा जाएगा क्या वहां? मैं हूं न तेरे साथ,’’ सीतू उसे दिलासा देते हुए बोला.

‘‘साहब, घड़ी इसी के पास रहने दीजिए. कहां थाने के चक्कर में फंसाते हैं,’’ एक लड़का बोला.

‘‘साला… फिर कहता है कि मैं चोर हूं. चलो साहब, थाने ही चलो,’’ लड़की गुस्से में बोली.

‘‘गाली नहीं देते लड़की,’’ सीतू ने लड़की से कहा और फिर लड़कों से बोला, ‘‘मैं तुम लोगों को तब से देख रहा हूं, जब तुम ने इस लड़की को 50 का नोट दिखाया था.’’

यह सुन कर तीनों लड़कों के चेहरे फीके पड़ गए. सीतू ने लड़की को बूढ़े के पास रुकने को कहा और तीनों लड़कों को ले कर थाने की ओर बढ़ चला. लड़कों ने आपस में कानाफूसी की और एक लड़के ने सौ का नोट सीतू की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘अब तो जाने दो साहब. कभीकभी गलती हो जाती है.’’

सीतू ने एक नजर नोट पर डाली और फिर इधरउधर देखा, कुछ लोग उन्हें देख रहे थे.

‘‘रिश्वत देता है. इस जुर्म की दफा और लगेगी,’’ कहते हुए सीतू उन्हें धकेलता हुआ सड़क के मोड़ पर ले गया.

‘‘साहब, इस समय तो हमारे पास इतने ही पैसे हैं,’’ कहते हुए लड़के ने 50 का नोट और बढ़ा दिया.

सीतू ने इधरउधर देखा, वहां उन्हें कोई नहीं देख रहा था. वह बोला, ‘‘ठीक है, अब आगे ऐसी घटिया हरकत मत करना.’’

‘अरे साहब, कसम पैदा करने वाले की, अब ऐसा कभी नहीं करेंगे,’ तीनों ने एकसाथ कहा.

‘‘अच्छा जाओ, मगर दोबारा अगर पकड़ लिया तो सीधा सलाखों के पीछे डाल दूंगा,’’ सीतू ने नोट जेब में रखते हुए कहा.

सीतू कुछ देर तक वहीं खड़ा रहा, फिर धीरेधीरे साइकिल धकेलता हुआ वहीं जा पहुंचा, जहां बूढ़े के पास लड़की को छोड़ कर गया था. लड़की तो वहां नहीं थी, पर बूढ़ा वहीं बैठा हुआ था. बूढ़ा सीतू को सिर से पैर तक घूर रहा था.

‘‘ऐ बूढ़े, वह लड़की कहां गई?’’ सीतू ने पूछा.

बूढ़े ने सीतू को घूरते हुए कहा, ‘‘पुलिस में भरती हो गए तो क्या यह तमीज भी भूल गए कि बड़ेबूढ़ों से किस तरह बात करते हैं. वह लड़की चली गई, पर इस से तुम्हें क्या मतलब? तुम्हारी जेब तो गरम हो गई न, जाओ ऐश करो.’’

‘‘क्या बकता है? किस की जेब की बात करता है? तुम ने उस लड़की को क्यों जाने दिया?’’ सीतू भड़क उठा.

‘‘इस इलाके में कोई भी तुम पुलिस वालों पर यकीन नहीं करता. ऐसे में वह लड़की क्या करती? सोचा था कि अपनी बिरादरी का एक आदमी पुलिस में आया है तो वह कुछ ठीक करेगा, मगर वाह री पुलिस की नौकरी, बेच दी अपनी ईमानदारी शैतान के हाथों और बन गया खाउड्या… जा खाउड्या अपना काम कर.’’

‘‘क्या बकता है? थाने में बंद कर दूंगा,’’ कहने को तो सीतू कह गया, मगर न जाने क्यों वह बूढ़े से नजरें नहीं मिला पाया.

सीतू इस बात को अच्छी तरह से जानता था कि रिश्वत लेना जुर्म है, मगर आज तक किसी पुलिस वाले ने उसे यह बात नहीं बताई थी. हां, साथियों ने यह जरूर समझाया था कि रिश्वत लेते समय पूरी तरह से चौकस रहना बहुत ही जरूरी होता है.

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