मुझे उस की जरूरत महसूस होती, जबकि मेरे बदन की भूख मेरे पति पूरा करते थे. फिर भी मेरे अंदर प्यास जग गई थी. मैं उसे अपने जिस्म में समेटना चाहती थी. मेरे पति शहर से बाहर थे. उस रात मेरे घर पर मैं और मेरी बेटी थी. उस रात विवेक वहीं मेरे घर पर खाना खा कर सोए. चूंकि वहां एक ही बिस्तर था. रिश्ते में वह भतीजा था, पर उम्र का फासला ज्यादा नहीं था.
रात को मैं ने उस की कुछ हरकतें महसूस कीं. मैं ने देखा कि उस के हाथ मेरे पैर को सहलाते हुए मेरी नाईटी के अंदर आ चुके थे. मैं हैरान थी. अब तक उस के हाथ मेरे घुटनों केकाफी ऊपर मेरे जांघों तक पहुंच गए थे. वह भूल गया था कि मैं उस की कौन थी, लेकिन मुझे याद था.
मैं ने जोर से उस का नाम पुकारा, ‘‘विवेक... विवेक...
क्या कर रहे हो?’’ उस ने हाथ हटा लिया और ऐसे ऐक्टिंग कर रहा था,
जैसे उसे कुछ खबर नहीं, वह नींद में हो. उस के हाथ मेरी पैंटी को छूतेछूते रह गए. सुबह जागे तो सबकुछ सामान्य था.
मैं उस से कुछ कह नहीं पाई और उस ने यह दिखाया जैसे रात को कुछ हुआ ही नहीं, उसे कुछ पता ही नहीं. मैं यह बात अपने पति अमित को भी नहीं बता पाई, लेकिन 2 दिन बाद मैं ने यह बात उसे बता दी. वह सुन कर सन्न था. उस ने कहा,
‘‘अब विवेक को अलग बिस्तर पर सोने के लिए कहना.’’
काफी दिन बीत गए. ऐसा कई बार हुआ, जब मेरे पति शहर से बाहर होते.
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