महाराजा ने एकाएक ऐलान किया कि वे देश में ऐरावत हाथी लाएंगे. महाराजा के ऐलान पर किसी को शक करने की जरूरत ही नहीं पड़ी. महाराजा जो कहें वही सही. सभी ने महाराजा की तारीफ की. कहने लगे जो ऐरावत हम ने पुराणों में पढ़ा है वह अब हमारे सामने होगा. दूध जैसा सफेद. दूब खाने वाला. उस के पंख होंगे. पलक झपकते ही चाहे जहां उड़ कर जा सकेगा. सुबहसुबह उस के दर्शन करने से दिन अच्छा जाता है.

लेकिन विकास का शिकार बने आदिवासियों को एकदम यकीन नहीं हुआ. उन्होंने सोचा कि जब उन के जंगलों की हजामत की जा रही थी और जमीन का सीना खोदा जा रहा था तब तो उन्होंने कोई सोने का हिरन नहीं देखा था. तो यह ऐरावत हाथी कैसे आ सकता है? वे सब मिल कर गांव के मास्टरजी के पास पहुंचे.

‘‘मास्टर साहब, क्या यह सच है कि अपने यहां पंख वाला ऐरावत हाथी आने वाला है?’’

‘‘क्या बकते हो?’’ मास्टर साहब ने नाराज हो कर कहा.

गांव वालों ने कहा कि लेकिन हमारे महाराजा का तो यही कहना है.

मास्टर साहब कई सालों से इस खुले शौचालय वाले गांव में रह रहे थे. इस वजह से उन की पत्नी शहर में रह रही थी. दूसरे गांवों में तो कागजों पर कई शौचालय बन चुके थे, लेकिन यहां तो वह भी नहीं. कई बार तबादले की कोशिश की लेकिन यहीं सड़ रहे थे.

इस बार पक्की उम्मीद थी. आखिर में मास्टर साहब ने महाराजा के जन्मदिन पर स्कूल में रंगारंग कार्यक्रम करवाया और उन्हें शुभकामना संदेश भिजवाया. ऐसे में महाराजा के ऐरावत हाथी लाने की बात पर शक करना यानी देशद्रोह माना जा सकता है.

मास्टर साहब डर गए. उन्होंने हा कि जब महाराजा कह रहे हैं तो जरूर ऐरावत हाथी आएगा.

गांव वालों को विश्वास नहीं हुआ. वे सरपंच के पास गए. सरपंच किसी जमाने में हिंदी साहित्य के अच्छे छात्र माने जाते थे. भक्तिकाल उन की रगरग में समाया हुआ था.

उन्होंने भी महाराजा की बात का समर्थन किया. उन्होंने गांव वालों को समझाया कि ऐरावत की लीद में औषधि गुण होते हैं. इसे शरीर पर चुपड़ने से चमड़ी की बीमारी नहीं होती. इस के मूत्र से स्नान करने से गंगा नहाने जितना पुण्य मिलता है.

महामंत्री ने राज खोला कि रावण के पास भी ऐरावत हाथी था, लेकिन ऐन दशहरे के दिन वह नाराज हो कर राम की सेना में चला गया, इसलिए रावण की मौत हो गई.

महाराजा के शिक्षा मंत्री ने कहा कि ऐरावत सिर्फ दूध पीता है और हीरेमोती खाता है. वह हथिनी की गंध पा कर ही अपने शरीर से बच्चा पैदा करता है.

उधर महाराजा ने प्रजा को बताया कि देश के स्वर्णिम काल में ऐरावत हाथी थे, लेकिन पिछली खानदानी राजशाही के पापाचार के चलते वे खत्म हो गए.

उन्होंने आगे कहा कि खानदानी महाराजा तो अरबी गधा तक नहीं ला पाए, लेकिन हम देश का पुराना गौरव वापस लाएंगे. जो अभी भूंक रहे हैं वे देखेंगे कि भले दिन आएंगे और देश में ऐरावत की धूम होगी.

उन्होंने वेदों का हवाला देते हुए कहा कि सूरदास ने भी अपनी कविता रामलला नहछू में ऐरावत का जिक्र किया है. इस पर उन के दीवान ने उन के कान में कहा कि तुलसीदास रामभक्त थे इसलिए उन्होंने रामलला नहछू कविता लिखी.

सूरदास तो कृष्ण भक्त थे. महाराजा ने बिना रुके उसी जोश में कहा कि सूरदास ने कृष्णलला नहछू में ऐरावत हाथी के गुण लिखे हैं.

उन्होंने आगे कहा कि वे देश का स्वर्णकाल वापस लाने को कृतसंकल्प थे. वह ऐरावत पर सवार हो कर आएगा. ऐरावत किसी ऐसेवैसे देश से नहीं बल्कि सूरज के देश से लाएंगे. वे खुद उसे लाने जाएंगे.

अब तो गांव में सिर्फ ऐरावत हाथी की बातें होने लगीं. आखिर महाराजा जो कह रहे हैं. उन के हाथ में जादू है. जानते नहीं, कैसे उन्होंने देखते ही देखते गंदा पैसा गायब कर दिया था. कैसे वे बिना बताए बेधड़क दुश्मन के देश में घुस गए थे और हलवा खा आए थे. अब वे गटर को पवित्र नदी बना कर ही रहेंगे.

महाराजा की जादूगरी के किस्से गरमागरम पकौडि़यों की खुशबू की तरह फैलने लगे. इस वजह से इंद्रदेव की नाराजगी और उस वजह से किसानों की आत्मा का परमात्मा से मिलन, रोजगार की बाट जोहते नौजवान, सस्ती दालरोटी की उम्मीद लगाए गरीब जैसे मुद्दे इतिहास में जमा हो गए.

सभी ऐरावत पर सवार होने की सोचने लगे. बगैर जाने कि वे उस पर सवार होने की हैसियत रखते भी हैं या नहीं. वह कैसे पंख फड़फड़ाते हुए पलक झपकते ही कहां से कहां पहुंच जाएगा. वह बादलों से भी ऊपर उड़ेगा. ऊपर से धरती कैसी दिखेगी, यही सोचसोच कर वे रोमांचित हो रहे थे.

ऐरावत के स्वागत की तैयारियां होने लगीं. वह कोई ऐरागैरा हाथी तो था नहीं इसलिए उस के रास्ते भी खास होने थे. गंदगी भरी धरती पर तो वह चल ही नहीं सकता. उस के लिए रेशम की चादरें बिछाई जाएंगी. धरती के नीचे, धरती पर और धरती के ऊपर भी.

देश में तो इतना रेशम नहीं था इसलिए विदेशों से रेशम की चादरें मंगवाने की कोशिशें की जाने लगीं. सौदा पक्का करने के लिए महाराजा खुद विदेश दौरे पर रहने लगे. सारा देश मानो ऐरावत के सपनों में खो गया.

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