किस्सा कुछ इस तरह से है कि जब मुख्यमंत्री कल्लू सिंह अपनी बीवी जलेबी देवी को अपना ताज दे कर तिहाड़ को गए, तो बहुत लोगों के मन में यह शक पैदा हो गया कि उन की पत्नी इतने बड़े पद को संभाल पाएंगी या नहीं. कल्लू सिंह 8वीं जमात से ज्यादा नहीं पढ़ सके थे, पर बोलचाल व वादविवाद में वे सब के गुरु थे.

जलेबी देवी अपने मिडिल पास शिक्षा मंत्री दुखहरन से भी कम पढ़ीलिखी थीं यानी प्राइमरी फेल थीं. पर वे बातव्यवहार, स्टाइल और अंगरेजी में दोनों से सुपीरियर पड़ रही थीं.

जनताजनार्दन या बड़े अफसरों का उन को ‘मैडम’ कहते कहते मुंह नहीं थकता था. वैसे, जलेबी देवी के इस बदलाव में आईएएस पीए संत तुषार देव यानी एसटीडी उर्फ संतू का बहुत बड़ा हाथ था.

पीए संतू जलेबी देवी को चक्करदार राजनीतिक भंवरों, नुकीली संवैधानिक चट्टानों और तूफानी विरोधी थपेड़ों से बचा कर निकाल लेता था. कम ही लोगों को पता था कि मैडम के पास ईयरफोन भी है, जिस से वे अपनी हिदायतें गाहेबगाहे डायल किया करती थीं.

फर्ज कीजिए, किसी सभा में मैडम का भाषण उबाल बिंदु पर उछाल लगाने वाला हो, तभी ईयरफोन में इंस्ट्रक्शन आ जाता ‘डाउनडाउन’ और वे तत्काल नोज डाइव मार कर नीचे आ जातीं. पर काफीकुछ रटाएसिखाए जाने के बावजूद ऐसा होता कि एसटीडी को ‘कटकट’ कह कर पैकअप कराना पड़ता.

जैसे उस दिन जब सरकारी अस्पताल के जच्चाबच्चा विंग के उद्घाटन के मौके पर जलेबी देवी ने यों कहना शुरू किया, ‘‘देवियो और सज्जनो, यहां मैटरनिटी अस्पताल खोल दिया गया है. जितने बच्चे चाहे पैदा कीजिए, कोई डर नहीं.

‘‘दाई से नाल कटवाने की जरूरत नहीं है. इन दाइयों ने हमारे 3 बच्चे मरवा दिए, नहीं तो इस समय हमारे 17 बच्चे होते. है कोई, जो आज के जमाने में इतने…’’ तभी एसटीडी को बड़े जोर से ‘कटकट’ कह कर उन के भाषण को खत्म कराना पड़ा.

शुरूशुरू में तो जलेबी देवी अपने चतुर पीए संतू की बातें मान लिया करती थीं, पर जैसेजैसे दिन बीतते गए और उन्हें अपनी पोजीशन और पावर का एहसास हुआ, तो वे उस की हिदायतें दरकिनार करने लगीं.

भला हो राज्य की भोलीभाली जनता का, जिस ने जलेबी देवी के कहे को कभी कान नहीं दिया. कान दिया तो उन के अच्छे कामों को, जिन में लगान माफी से ले कर तार काटे जाने की माफी भी शामिल थी.

तकरीबन 2 सौ लोगों को उन्होंने गबन, डकैती, बलात्कार, हत्या जैसे मामलों में जेल जाने से बचाया होगा. कितने अपढ़ बेरोजगारों को निगमों का चेयरमैन, कितने ही जाली डिगरी वालों को वाइसचांसलर बना दिया. क्या इन सब का कोई हिसाब है?

पर बुरा हो उन के विरोधियों का, जिन्हें उन के हर अच्छे काम में ऐब नजर आता. और तो और उन की अपनी पार्टी में भी पंचानन राय और तिलकुट यादव जैसे कई जयचंद थे, जिन्हें जलेबी देवी का दबदबा खाए जा रहा था.

पर धन्य हो भेड़ का दूध पीए जलेबी देवी के कलेजे का, जो सभी दांवपेंचों से बेखबर राज्य की खड़बडि़या मोटरगाड़ी को मर्सिडीज बैंज की शान से लहराए चली जा रही थीं.

जैसे आज ही अविश्वास प्रस्ताव के गहराए बादल को दरकिनार कर उन्होंने 3-4 उद्घाटन के फीते काट डाले और लच्छेदार भाषण दे डाले. हर जगह नियमपूर्वक ‘जब तक सूरज चांद रहेगा…’ वाले नारे के साथ तालियां पिटवा दीं.

भाई के दसलखी ‘ब्यूटी पार्लर’ के उद्घाटन के बाद तो उन्होंने बाकायदा अपना कायाकल्प ही करा डाला. पर ‘ब्यूटी पार्लर’ से निकलते ही एक दिक्कत आ गई. नदी पार गंजी गांव में 5 दलितों की हत्या की खबर आई.

यह सुन कर जलेबी देवी का मूड बिगड़ गया. शाम को बांगड़ू गवर्नर की इफ्तार पार्टी में बिरियानी उड़ानी थी. अब पहले गंजी गांव जाना पड़ेगा. वहां से लौटने पर पता नहीं कितना मेकअप बचा रह पाएगा.

वैसे, पुलिस महानिरीक्षक उन के वहां जाने के पक्ष में नहीं थे. पर पार्टी उपाध्यक्ष राम नगीना ने चेतावनी दी, ‘‘आप को हारना हो, तो मत जाइए.’’

जब जलेबी देवी ने अपने पीए संतू की राय ली, तो उस ने कहा, ‘‘वहां जाने में कोई हर्ज नहीं, पर मेकअप डाउन करना पड़ेगा.’’

जलेबी देवी बोलीं, ‘‘इतनी मेहनत से तो मेकअप कराया था, अब सब गंवा दें?’’

सो लेदे कर काफिला गंजी गांव की ओर बढ़ा. रास्ते में पीए संतू ने लाचारी के भाव के बावजूद जलेबी से ‘खून की आखिरी बूंद’ वाला डायलौग बारबार बुलवा कर चैक किया और कई दूसरी हिदायतें भी दीं, जैसे गले से भर्राई आवाज कैसे निकालनी चाहिए.

दोपहर बाद मुख्यमंत्री का दल घटना वाली जगह पर पहुंच गया. वहां हायतोबा मची हुई थी. प्रशासन के खिलाफ भीड़ नारे लगा रही थी. एक जगह माले नेता राम कटार माइक से आग उगल रहे थे.

भीड़ इतनी थी कि पुलिस कोई भी कार्यवाही करने से हिचक रही थी.

राम कटार ने अपना भाषण बीच में रोक कर गरजती आवाज में भीड़ से पूछा, ‘‘पहचानो… ये कौन हैं?

अरे, ये तो नूरजहां हैं.’’ भीड़ के बीच हंसी की एक लहर दौड़ गई.

‘‘बेगम नूरजहां यहां आई हैं, इंसाफ बांटने. समझे? जहांगीरी इंसाफ तो जानते ही हो, कितना मशहूर है. पहले भी नमूना देख चुके हो,’’ राम कटार चुनचुन कर जहर बुझे बाण जनता के दिल में उतार रहे थे.

‘जलेबी देवी हायहाय’ भीड़ ने नारा बुलंद किया. अफसर चौकन्ने हुए और पुलिस की एक टुकड़ी राम कटार को शांत कराने के लिए लपकाई गई, पर राम कटार लातघूंसों की मार के बावजूद माइक छीने जाने तक जलेबी देवी की अच्छी गत बना चुके थे.

‘‘बड़ी पीर है इन के जिगर में. देखते नहीं हो,’’ वे चिल्लाते रहे, ‘‘लिपस्टिकपाउडर सब गवाह हैं… मारे दुख के अपने आधे बाल कटा दिए हैं. जहांगीर होते, तो पूरा सिर मुंड़वा के आते. नूरजहां बीवी होने के नाते आधे पर काम चला रही हैं.’’

थोड़ी देर बाद राम कटार और उन के साथियों का बंदोबस्त हो जाने के बावजूद भीड़ में जोश बढ़ता जा रहा था.

पीए संतू ने राय दी कि मैडम का अब यहां रुकना ठीक नहीं. जल्द से जल्द इन्हें इस झंझट से निकाल बाहर करना चाहिए. पर राम नगीना ने जोर दिया कि यहां आ कर बिना बोले चले जाना ठीक नहीं है. जनता में गलत संदेश जाएगा.

मैडम के बोलते ही भीड़ शांत हो जाएगी, ऐसा उन्हें यकीन था. शोरगुल के बीच उन्होंने जलेबी देवी को माइक पकड़ा दिया और चिल्लाचिल्ला कर भीड़ को बता दिया कि मुख्यमंत्री आप लोगों से कुछ कहना चाहती हैं.

आखिरकार जलेबी देवी ने अभ्यास की गई भर्राई आवाज में कहना शुरू किया, ‘‘प्यारे भाइयो और बहनो…’’

कड़ी धूप में उन के ऊपर की गई कलाकारी का रंग दूरदूर तक चमक रहा था. एक किनारे पोस्टमार्टम के लिए तैयार की गई पांचों लाशें जमीन पर पड़ी थीं और दूसरी ओर…

अचानक एक जूता जलेबी देवी के सिर पर आ गिरा, जिस से उन का चश्मा दूर जा गिरा और बाल बिखर गए. जब तक वे संभलतीं, तब तक और कई जूतेचप्पलों ने उन का बाकी का हुलिया बदल दिया. पुलिस डंडा फटकारते हुए दंगाइयों की ओर बढ़ी.

गंदे नारों से आसमान गूंजने लगा. ‘हत्यारिन, चोर, पापिन…’ चोट और बेइज्जती से तिलमिलाई जलेबी देवी का सारा सब्र जाता रहा. वे गला फाड़ कर चीखीं, ‘‘मार के बिछा दो सबों को… फिर हम देख लेंगे… किसी को पहनेओढ़े नहीं देख सकते हैं… अच्छा हुआ मर गए. और भी मरे होते तो अच्छा था…’’

पीए संतू ने उन के हाथों से माइक छीन कर दूर फेंका और सिक्योरिटी वालों की मदद से उन्हें तत्काल बाहर निकाल कर रवाना किया. पर कई मीडिया वाले जलेबी देवी की चुनिंदा गालियों और उन के दलित प्रेम की बानगी अंत तक रेकौर्ड करते रहे.

शाम की खबरों में इस महाभारत की खबरें प्रसारित हो गईं और 2 सहयोगी पार्टियों की समर्थन वापसी से सरकार गिर गई.

यह अलग बात है कि 6 महीने बाद ही कल्लू सिंह की अद्भुत कुशलता के चलते जलेबी देवी फिर से पद पर आसीन हो कर जनकल्याण में जुट गईं.

लेकिन उन्होंने अपना मिस्टेक को नहीं दोहराया. अब वे खूनी घटना वाली जगहों पर बिना मेकअप वाले रूप में ही जाती हैं. गंजी गांव में तो 5 खून पर ही महाभारत मच गया था, पर अब 12-13 लाशों पर भी उतना कुहराम नहीं मचता. पीए संतू के डायरैक्शन में वे राज्य को और ज्यादा मजबूती और शांति की ओर बढ़ा रही थीं.

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